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ठीक नहीं है कृषि पर ऐसी निर्भरता

बीएन पटनायक क्षेत्रीय निदेशक, सीड बिहार में रोजगार देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर कृषि है. आबादी का 80 फीसदी से भी ज्यादा की निर्भरता कृषि पर ही है. पर आप गौर करें, कि इस सेक्टर से पैदा होने वाला रोजगार कैसा है? उससे होने वाली आमदनी क्या आपकी जरूरतों को पूरा कर रही है? इसका […]

बीएन पटनायक
क्षेत्रीय निदेशक, सीड
बिहार में रोजगार देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर कृषि है. आबादी का 80 फीसदी से भी ज्यादा की निर्भरता कृषि पर ही है. पर आप गौर करें, कि इस सेक्टर से पैदा होने वाला रोजगार कैसा है? उससे होने वाली आमदनी क्या आपकी जरूरतों को पूरा कर रही है?
इसका जवाब होगा-नहीं. कृषि क्षेत्र की हालत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. जब हम इसकी बात करते हैं, तो ध्यान रखना चाहिए कि इसका संदर्भ राष्ट्रीय या दूसरे कृषि प्रधान राज्य हैं.
बिहार में पिछले कुछ सालों में कृषि सेक्टर में बदलाव लाने की दिशा में पहल की गयी है. रोड मैप लाने की वजह इस क्षेत्र में निवेश और उत्पादकता बढ़ाना है. लेकिन एक बात रखने की जरूरत है कि कृषि आधारित रोजगार टिकाऊ नहीं हो सकता. वह काम चलाऊ है.
दुनिया के किसी भी हिस्से को देखें, तो वहां पहले कृषि क्रांति हुई और उसके साथ-साथ औद्योगिक क्रांति. नियम है कि एक क्षेत्र में आपकी उत्पादकता बढ़ती है, रोजगारमिलने लगता है, तो इसके आधार को व्यापक बनाने की जरूरत होती है. आपको औद्योगिकरण की ओर जाना पड़ेगा.
मैन्यूफैरिंग यूनिटें लगानी होंगी. अर्थशास्त्र की जुबान में इसे नन फार्म एक्टिविटिज कहा जाता है. इस परिप्रेक्ष्य में हमें देखना होगा कि बिहार में ग्रामीण व शहरी क्षेत्र को जोड़ने की दिशा में कितना आगे बढ़ पाये. इस तरह के लिंकेज से आर्थिक गतिविधियों का दायरा बढ़ता है.
इस सिलसिले में हम एक छोटा उदाहरण रखना चाहते हैं. देश में फल और सब्जी का जितना उत्पादन होता है, उसका 13 फीसदी बिहार में उपजता है. लेकिन जानकर हैरानी होगी राज्य में फूड प्रोसेसिंग यूनिट महज 1.28 फीसदी ही है. इस तथ्य को देखते हुए पहली जरूरत है कि इस तरह की यूनिटें लगायी जायें.
कृषि क्षेत्र का विस्तार होगा तो उसका उत्पादन कहां खपेगा. अगर यह हमारे यहां उपलब्ध नहीं है, तो संभव है कि उसे दूसरी जगहों पर ले जाया जायेगा. इससे किसानों का हित भी मारा जाता है. इसका नुकसान दो तरह से है. पहला यह कि हमारे उत्पाद का वाजिब दाम नहीं मिलता और दूसरा उत्पाद कहीं दूसरी जगह चला जाता है. अगर ऐसी यूनिट हमारे यहां लगे, तो उससे रोजगार भी पैदा होगा.
एक बात तय मानिए कि सरकार अपनी नौकरियों के बूते बेरोजगारी दूर नहीं कर सकती. ऐसा कहीं होता नहीं है और ऐसा होगा भी नहीं. अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि नीचे के पदों पर काम के लिए आउटसोर्सिग की जा रही है. वहां भी नौकरी का कोई स्कोप नहीं बचा है. हां, सरकार के स्तर से चलने वाली विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से रोजगार एक स्तर तक ही सृजन हो सकता है. मनरेगा को ही लीजिए. इसके तहत जितना कार्य सृजन होना चाहिए, वह भी कम हो जा रहा है.
राज्य में दस फीसदी के हिसाब से ग्रोथ हुआ, तो उसका बड़ा भाग इसी क्षेत्र में हुआ है. पुल-पुलिया, सड़क, स्कूल भवन वगैरह बनाने में जो पैसा खर्च हुआ, वह ग्रोथ को प्रतिबिंबित करता है. लेकिन बिहार को जिस वास्तविक ग्रोथ की जरूरत है, उससे हम दूर हैं.
आपको अलग-अलग क्षेत्रों में ग्रोथ लाना पड़ेगा. मान लीजिए दस लोगों में से छह लोग कृषि कार्य से जुड़े हैं. तीन लोगों को निर्माण कार्यो के सहारे काम मिला हुआ है. एक आदमी मैन्यूफरिंग सेक्टर से जुड़ा है. रोजगार के इस पैटर्न को बदले बिना बात नहीं बनेगी. यह भी जरूरी है कि निजी क्षेत्र में निवेश हो रहा है या नहीं.
राज्य सरकार कौशल विकास का कार्यक्रम चला रही है. केंद्र ने भी योजना शुरू की है. इन कार्यक्रमों का ध्येय कुशल कामगारों को तैयार करना है. बिहार में अगर रोगजार के अवसर पैदा हुए तो वहां इन कामगारों को रोजगार मिल सकेगा. अगर ऐसा नहीं होता है, तो उन्हें दूसरी जगहों पर रोजगार के लिए जाना पड़ेगा.

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