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बिहार में बूथ लूट का इतिहास पुराना
चुनाव आयोग बिहार में चुनाव को चुनौती मानता रहा है. यही वजह है कि यहां नामांकन व चुनाव प्रचार से लेकर मतदान और मतगणना तक के लिए सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किये जाते हैं. इसका एक पक्ष तो यह भी है कि राज्य के करीब 20 जिले नक्सलग्रस्त हैं, जहां मतदान के दौरान पोलिंग पार्टी […]
चुनाव आयोग बिहार में चुनाव को चुनौती मानता रहा है. यही वजह है कि यहां नामांकन व चुनाव प्रचार से लेकर मतदान और मतगणना तक के लिए सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किये जाते हैं.
इसका एक पक्ष तो यह भी है कि राज्य के करीब 20 जिले नक्सलग्रस्त हैं, जहां मतदान के दौरान पोलिंग पार्टी को सकुशल बूथों तक पहुंचाना और फिर इवीएम को सुरक्षित तरीके से स्ट्रांग रूम तक लाना बड़ा टास्क है. लेकिन, दूसरा और अहम पक्ष यह भी है कि बिहार बूथ लूट को लेकर बदनाम रहा है.
हालांकि मतपत्रों की जगह इवीएम के प्रयोग से चुनाव के दौरान बूथ लूट और हिंसा में काफी कमी आयी है, लेकिन बूथों पर झड़प जैसी घटनाएं पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में भी देखी गयीं. आजादी के बाद पहले आम चुनाव में भी गड़बड़ियों की शिकायत मिली थी. आइए जानते हैं बिहार में बूथ लूट और चुनावी गड़बड़ियों का संक्षिप्त इतिहास.
आरके नीरद
बिहार का चुनावी इतिहास बूथ लूट के साथ शुरू ही हुआ और 1985 से 2000 तक स्थिति ऐसी बन गयी कि राजनीतिक दलों के लिए चुनावी तैयारी का यह अहम हिस्सा बन गया. हालांकि 2010 के विधानसभा चुनाव से यहां की तसवीर बदली है. चुनाव के दौरान हिंसा को लेकर ही चुनाव आयोग बिहार में मतदान को चुनौती के रूप में लेता रहा है.
आजादी के पहले हुए चार चुनावों में बूथ लूट की शिकायतें आयीं थीं. कुछ जगहों पर दुबारा मतदान कराने की स्थिति बनी थी. 1927 में जिला परिषदों का चुनाव हुआ. इसमें चकाई और गोगरी में बूथ लूट की शिकायत मिलीं थीं. गोगरी में दुबारा वोट कराने पड़े थे. हालांकि स्वेच्छा से मताधिकार के इस्तेमाल और प्रतिरोध की परिस्थितियां अन्य इलाकों में भी कम नहीं बनीं थीं.
1933 में पूर्णिया अंचल के रैयतों को वहां के करीब आधा दर्जन जमींदारों ने चुनाव के वक्त एक तरह से नजरबंद कर दिया था, ताकि वे स्वेच्छा से वोट न डाल सकें. जमींदर चाहते थे कि चुनाव वही जीते, जिसे वे जिताना चाहते थे. यानी जनतंत्र या जनप्रतिनिधि की अवधारणा को वे स्वीकार नहीं कर रहे थे.
आजादी के पहले, 1937 में विधानसभा का चुनाव हुआ. इस चुनाव में प्रदेश के करीब-करीब सभी क्षेत्रों में तनाव की स्थिति बनी और हर जगह ऊंची जाति के लोगों ने समाज के कमजोर तबके को वोट करने से रोका, अपने पसंद के उम्मीदवार और पार्टी को वोट करने के लिए उन पर दबाव बनाया तथा जबरन वोट डालने का प्रयास किया. जहां प्रतिरोध हुआ, वहां हिंसा हुई थी. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, भभुआ, गया, खूंटी, बिहारशरीफ, शाहाबाद में ऐसी घटनाएं ज्यादा हुईं. इस इलाके में हिंसा में एक व्यक्ति की मौत भी हुई थी.
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना की तैनाती की गयी. खूंटी में आदिवासी महासभा के लोगों ने कांग्रेस समर्थकों को मारा-पीटा. 1939 में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चुनाव के दौरान सिलाव, जहानाबाद, महुआ और रघोपुर आदि इलाकों में लोगों को स्वेच्छा से वोट करने से रोका गया.
पहले चुनाव में गड़बड़ी के आरोप
यानी बूथ लूट की जो परिस्थिति आजादी के बाद बने चुनाव आयोग ने बतायी, वह आजादी के पहले आजमायी जा चुकी थी. लिहाजा आजादी के बाद के चुनावों में भी ऐसी घटनाएं दुहरायी गयीं. जैसे-जैसे लोकतंत्र विकसित हुआ, बूथ लूट और हिंसा की घटनाएं बढ़ीं. स्वतंत्र भारत में बिहार विधानसभा के पहले ही चुनाव में 41 केंद्रों पर दुबारा वोट कराने पड़े. यह देश के सभी राज्यों में पुनर्मतदान के लिए अनुशंसित मतदान केंद्रों का 51.25 फीसदी था.
दरअसल बूथ लूट उस सामाजिक व्यवस्था का विकृत चेहरा था, जो वर्ग भेद की बुनियाद पर टिकी थी. चुनाव में वोट डालने के अधिकार को यह व्यवस्था कबूल नहीं कर पा रही थी. बाद में राजनीतिक महत्वाकांक्षा, वर्चस्व की लड़ाई तथा शासक होने के भाव ने इसके रंग को और गाढ़ा बनाया. 1957 के चुनाव में हालांकि चार मतदान केंद्रों पर ही दुबारा वोट कराये गये, लेकिन उस साल भी बूथ कब्जा और फर्जी मतदान हुए.
1962 से आयी तेजी
1962 के चुनाव में राघोपुर मतदान केंद्र पर मतपेटी की छीना-छपटी हुई. पुलिस को हवा में तीन राउंड फायरिंग करनी पड़ी. बरबीघा सहित कई इलाकों में समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को वोट नहीं करने दिया गया.
उनके नाम पर वोगस वोटिंग हुई. इस काम में कोई एक दल या नेता नहीं था. सभी दलों और नेताओं ने अपने-अपने प्रभाव और सरोकार वाले इलाकों में यही किया, भले ही उनकी सार्वजनिक छवि, उनका राजनीतिक ओहदा और वैचारिक विशिष्टता कुछ भी रही हो. इसके बाद से चुनावों में बूथ कब्जे को लेकर संगठित सेवाएं शुरू हो गयीं.
भाड़े पर बूथ लुटेरे आने लगे. हथियारों और गोला-बारूद इस्तेमाल होने लगे. चुनाव आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भी इसकी चर्चा की और राज्य सरकार हो अपनी चिंता से अवगत कराया. 1972 की उसकी रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार में चुनाव के दौरान जघन्य अनियमितताओं का आलम यह है कि यहां छोटे-छोटे बच्चे तक वोट डालते हैं.
जाहिर है कि वह वोगस वोट ही होता है. चुनाव आयोग ने 1980 में पहली बार बूथ लूट को रोकने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किया, लेकिन तब तक बिहार का राजनीतिक परिवेश बिगड़ चुका था. 1980 के चुनाव में 57 बूथों पर कब्जा किया गया और 146 केंद्रों पर मतपेटियां लूटी गयीं. लिहाजा 295 केंद्रों पर चुनाव आयोग को दुबारा वोट कराना पड़ा था.
1985 में पुनर्मतदान वाले केंद्रों की संख्या में सात फीसदी की वृद्धि हुई. छह बूथों पर कब्जा किया गया और 162 केंदों पर मतपत्र लूटे गये. 1990 के चुनाव में पुनर्मतदान वाले केंद्रों की संख्या में 39 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. यह बताया कि चुनाव आयोग की चिंता के विपरीत परिस्थितियां किस तरह बिगड़ी चली गयीं.
उस चुनाव में 1239 मतदान केंद्रों पर दुबारा वोट कराये गये. 2000 के चुनाव में इसमें थोड़ी कमी आयी, लेकिन फिर भी यी संख्सा 1420 पर टिकी रही.2010 के विधानसभा चुनाव को अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण माना गया. नक्सली हिंसा की घटना को छोड़ दें, तो अन्य कोई बड़ी वारदात नहीं हुई. सिर्फ 118 बूथों पर पुनर्मतदान की नौबत आयी थी.
लोकसभा, पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनाव की हकीकत इससे अलग नहीं रही है. 1952 के लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में केवल 26 केंद्र ऐसे थे, जहां बूथ लूट और चुनावी गड़बड़ियों के कारण दुबारा मतदान कराया गया था. 1980 तक यह संख्या बढ़ कर 77 हुई, लेकिन उसके बाद से इसमें बेतहाशा बढ़ोतरी हुई.
अन्य राज्यों से आगे
चुनवी गड़बड़ी और उसके कारण पुनर्मतदान दूसरे राज्यों में भी होते हैं, लेकिन बिहार में इसकी संख्या कुछ ज्यादा रही है. यह स्थिति आज की नहीं, चार दशक पहले भी थी. 1971 में देश में 63 मतदान केंद्रों पर दुबारा मतदान कराया गया था, इनमें बिहार के 53 मतदान केंद्र थे.
1984 में नौ राज्यों के कुल 264 मतदान केंद्रों पर दुबारा वोट कराये गये, जिनमें 159 केवल बिहार के थे. मतपेटी की जगह मशीन से वोटिंग की नयी व्यवस्था ने इसमें थोड़ी कमी तो लायी है, लेकिन इसकी छाया पूरी तरह अब भी खत्म नहीं हुई है.
विस चुनाव में पुनर्मतदान
चुनाव का वर्ष केंद्र, जहां पुनर्मतदान हुआ
1952 41
1957 4
1962 –
1967 15
1969 20
1972 70
1977 7
1980 127
1985 295
1990 1239
1995 1668
2000 1420
2010 118
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