अनुपम कुमारी
पटना : कभी चिकनी, तो कभी उबड़-खाबड़ सड़कें, दो पहिए घूमते जा रहे हैं, अनवरत… इन पर सवार हैं एक दूत. एक जुनून सवार है इनके िसर पर. जुनून, देश की हर लड़की को सुरक्षित करने का. जुनून हर नागरिक को जागरूक करने का. देश के हर कोने का साइकिल से चक्कर लगाने का.
जी हां, यहां बात उस दूत की हो रही है, जो देश भर में लोगों की सोच बदलने चला है. मुजफ्फरपुर निवासी राकेश कुमार सिंह ने ठाना है कि यदि महिलाओं को सम्मान दिलाना है, तो लॉ एंड ऑर्डर और कानून से हट कर काम करना होगा. इसके लिए वह एक ऐसे सफर पर चले पड़े हैं, जिसका नाम है ‘राइड फोर जेंडर फ्रीडम’. यह कैंपेन किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए है, ताकि उन्हें समाज में सम्मान मिले.
15 माह, 7 राज्य व 8800 किमी की यात्रा
42 वर्षीय राकेश साइकिल से अब तक सात राज्यों का सफर कर चुके हैं. उन्होंने 15 माह में करीब 8800 किमी की यात्रा तय की है. इस बीच उन्होंने सवा लाख लोगों से बात की. वे लोगों को इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि यदि महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो क्यों नहीं हैं? क्या इसकी वजह कोई और है या फिर हम-आप जैसे ही पिता, भाई, पति हैं, जिनकी वजह से कभी हमारी बहनों पर तेजाब के हमले होते हैं, तो कभी गैंगरेप. ऐसे में क्या हमें विधि-व्यवस्था या किसी कानून की जरूरत है. लेकिन बस जरूरत है, तो सोच बदलने की, ताकि सामज में महिलाएं सम्मान पूर्वक जीवन जी सकें.
फिल्म दिखा करते हैं जागरूक
राकेश की यात्रा 15 मार्च, 2014 से चेन्नई से शुरू हुई. इसके बाद तमिलनाडु, पांडिचेरी, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, आेडिसा के बाद अब वे बिहार का सफर तय करेंगे. इसके बाद वे नाॅर्थ इस्ट के साथ वर्ष 2017 दिसंबर तक पूरे भारत का भ्रमण करेंगे. उनके इस सफर में साथ है, तो बस उनके 35 केजी का सामान. इसमें वे लोगों को जागरूक करने के लिए फिल्म प्रोजेक्टर, कठपुतली और कुछ चित्र रखते हैं. जगह-जगह ठहरने के लिए टेंट भी इसमें है. उनकी साइकिल पर एक रंगीन और एक सफेद तिरंगा है, जो सभी को समान रूप से जीने का संदेश देता है. वहीं, सफेद रंग की टी-शर्ट पर कैंपेन का नाम और पीछे महिलाओं की सुरक्षा के स्लोगन लिखे हुए हैं. वे प्रतिदन छह से आठ घंटे साइकिल चला कर 60 से 70 किलो मीटर की यात्रा तय कर रहे हैं.
संक्षिप्त परिचय
मुजफ्फरपुर के मूल निवासी राकेश एक कृषक परिवार से संबंध रखते हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुजफ्फरपुर में हुई. 1990 में उन्होंने बिहार बोर्ड से दसवीं और 1992 में आइएससी तक की पढ़ाई की . इसके बाद वे दिल्ली विवि से स्नात्क तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुरूक्षेत्र विवि से पत्रकािरता एवं जन संचार में पीजी डिप्लोमा किया. इसके बाद कई निजी कंपनियों में नौकरी की.
एसिड पीड़िता ने बदल डाली सोच
वे बताते हैं कि दो वर्ष पूर्व वे भी आम लोगों की तरह नौकरी कर परिवार चलाने का काम कर रहे थे. इसी बीच काम के सिलसिले में उनकी मुलाकात एसिड पीड़िता से हुई. उनके संघर्ष को काफी करीब से देखने के बाद उन्होंने निश्चय किया कि नौकरी करने के लिए तमाम उम्र पड़ी है, पर लोगों की सोच बदलने के लिए कुछ समय है. इसके बाद बस इसकी तैयारी में लग गये और 15 मार्च से शुरूआत कर डाली.
रियल स्टोरी पर बना रहे हैं डॉक्यूमेंट्री
पटना. फिल्में तो कई तरह की बनती हैं, लेकिन उनमें अधिकांश काल्पनिक होती है. मजा तो तब आता है, जब रियल स्टोरी, रियल हीरो पर फिल्म बने. जिसमें एक सच्ची कहानी सामने आये, जो लोगों को इंस्पायर करे. कुछ इन्हीं बातों को देखते हुए पटना के शिव कुमार हमेशा सोशल सब्जेक्ट पर शॉर्ट फिल्म बनाते हैं. हमेशा उन्हें एक नये टॉपिक की तलाश होती है. इस बात की जानकारी देते हुए वे कहते हैं, मैं इन दिनों ट्रैवलिंग मैन पर डॉक्यूमेंट्री बना रहा हूं. यह मुजफ्फरपुर में रहने वाले राकेश कुमार सिंह की कहानी है, जो अब तक आठ राज्यों का भ्रमण कर चुके हैं. अब बिहार के सभी जिलों की सैर पर निकल चुके हैं. इसलिए मैं इनकी लाइफ पर डॉक्यूमेंट्री बनाने जा रहा हूं.
पहला चैप्टर बिहार होगा
इस डॉक्यूमेंट्री के बारे में शिव कहते हैं, ऐसे तो राकेश अब तक आठ राज्य घूम चुके हैं, जिसका कुछ फुटेज मुझे मिल जायेगा, लेकिन मैं इस डॉक्यूमेंट्री का पहला चैप्टर बिहार से शुरू करूंगा, जो 15 से 20 मिनट तक होगा. इसके लिए मैं राकेश के साथ ही जा रहा हूं. उनकी हर एक्टिवटी को अपने कैमरे में कैद करना है, ताकि इसे अच्छे से तैयार कर सकूं. वैसे तो इनका साइकल से पूरा देश घूमना का लक्ष्य 2017 में फाइनल होगा. इसलिए साइकल ट्रैवलिंग पर मेरी डॉक्यूमेंट्री भी 2017 में ही पूरी होगी, जो फाइनल बनने के बाद एक घंटे की होगी. यह डॉक्यूमेंट्री चैप्टर के साथ तैयार की जायेगी, जो कई राज्यों पर बन रहा हैै. इसका प्रिमियर पूरी डॉक्यूमेंट्री बनने के बाद ही तैयार किया जायेगा.
अब तक 8 शॉर्ट फिल्म बना चुके हैं
शिव इससे पहले आठ शॉर्ट फिल्म भी बना चुके हैं, जो अलग-अलग स्टोरी पर हैं. इसके अलावा चार डॉक्यूमेंट्री भी बना चुके हैं, जिसे कई सोशल इश्यू पर बनाया गया है. इससे पहले डॉक्यू ड्रामा भी बनाया है. उन्होंने बताया कि इससे पहले मेरी शॉर्ट फिल्म गोपी को कई बार अवार्ड मिल चुका है. मेरी फिल्में कई शॉर्ट फिल्म कंपीटीशन में जाते रहती हैं, जिन्हें लोगों ने सराहा हैं. लोगों को हमारी फिल्म पसंद आती हैं इसलिए आगे भी बना रहा हूं. साथ ही मैं न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी में एडमिशन लेने की सोच रहा हूं. मुझे फोटोग्राफी में बहुत शौक है. इस तरह के प्रोजेक्ट पूरा करने में मेरे साथ रवि कैमरा मैन, मयूरी सिन्हा, एडिटर है, जो फिल्म एडिट करती हैं.