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किताबों की डिजिटल दुनिया : प्रकाशन की परंपरागत व्यवस्था में नयी तकनीक का हस्तक्षेप
डिजिटल हो रही दुनिया में किताबों की छपाई और उसके पढ़ने के तौर-तरीकों में भी परिवर्तन आ रहा है. हाल तक यह माना जा रहा था कि किताबों को दौर खत्म हो रहा है, लेकिन डिजिटल माध्यम ने इसे एक नयी ताकत दी है. इससे पाठकों की पहुंच किताबों तक बढ़ रही है और लेखक […]
डिजिटल हो रही दुनिया में किताबों की छपाई और उसके पढ़ने के तौर-तरीकों में भी परिवर्तन आ रहा है. हाल तक यह माना जा रहा था कि किताबों को दौर खत्म हो रहा है, लेकिन डिजिटल माध्यम ने इसे एक नयी ताकत दी है.
इससे पाठकों की पहुंच किताबों तक बढ़ रही है और लेखक भी सीधे पाठक से जुड़ रहे हैं. इसके जरिये पढ़ने-लिखने और प्रकाशन का तेजी से विकास हो रहा है. किताबों की दुनिया में हो रही तकनीकी हलचलों को जानें आज के नॉलेज में..
– पेड्रेग बेल्टन और मैथ्यू वाल
(व्यापार एवं तकनीक के जानकार)
कि ताबें हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं. प्रिंट तकनीक के आगमन से आज तक इनकी छपाई, वितरण और विक्रय के तौर-तरीकों में कई उतार-चढ़ाव आये हैं.
इस विकास-क्रम का ताजातरीन पड़ाव है डिजिटल तकनीक. जैसे यह तकनीक जिंदगी के अन्य क्षेत्रों में बदलाव की क्रांतिकारी प्रक्रिया को संचालित कर रही है, उसी तरह पुस्तकों के प्रकाशन और बाजार पर भी इसका जोरदार प्रभाव पड़ा है. इस प्रभाव ने किताबों के पारंपरिक व्यवसाय के स्वरूप में उल्लेखनीय परिवर्तन किये हैं.
कुछ साल पहले जब किताबें इ-बुक के रूप में आना शुरू हुईं, तो उनकी कम कीमत तथा इंटरनेट के माध्यम से दूर-दूर तक आसानी से सुलभ होने से यह चिंता जतायी गयी कि छपी किताबों के प्रकाशक और विक्रेता कारोबार से बाहर हो सकते हैं.इस चिंता में अमेजन के किंडल और बार्न्स एंड नोबल के नूक जैसे इ-बुक रीडरों का भी बड़ा योगदान था. एक छोटे से यंत्र में हजारों किताबों का संग्रहण और कहीं भी ले जाने की सहूलियत अपनेआप में अद्भुत परिघटना थी.
कॉमा प्रेस के डिजिटल एडिटर जिम हिंक्स कहते हैं, ऐसा लग रहा था कि साहित्य इंटरनेट के साथ युद्ध में है.लेकिन, संभावनाओं और आशंकाओं के विपरीत छपी हुई किताबें अपने नवागत बिरादर इ-बुक के साथ अब भी अस्तित्व में हैं तथा डिजिटल तकनीक के माध्यम से और उसकी मदद से प्रकाशक और वितरक किताबों को नये पाठकों तक पहुंचा रहे हैं.
प्रिंटेड पुस्तकों का संघर्ष
इसमें कोई संदेह नहीं कि डिजिटल फॉर्मेट के कारण छपी किताबों की बिक्री को भारी झटका लगा है, लेकिन गिरावट की गति के धीमी होने के संकेत भी मिलने लगे हैं. इ-पाठकों को लेकर बनी चहल-पहल कुछ थम रही है.
किंडल की बिक्री 2011 में 13.44 मिलियन डॉलर की थी, जो अगले वर्ष यानी 2012 में 9.7 मिलियन डॉलर रह गयी थी. तब से उसमें स्थिरता बनी हुई है.
बार्न्स एंड नोबल का नूक इ-रीडर हर साल करीब 70 मिलियन डॉलर के घाटे में है. इस अमेरिकी किताब विक्रेता के इ-रीडर विभाग को कोई खरीदार नहीं मिल पा रहा है. नीलसेन बुक रिसर्च के स्कॉट मोरटन के मुताबिक, ब्रिटेन में पिछले साल छपी किताबों पर 1.7 बिलियन पाउंड खर्च हुआ था. इ-बुक पर यह खर्च 393 मिलियन पाउंड का था.
इ-बुक का बाजार फिलहाल 30 फीसदी हिस्सेदारी के साथ स्थिर बना हुआ है. ब्रिटेन में क्रिसमस के समय वाटरस्टोंस ने छपी किताबों की बिक्री में पांच फीसदी की वृद्धि दर्ज की. फॉयलेस के अनुसार, यह बढ़ोतरी 8.1 फीसदी थी. इन तथ्यों से साफ है कि निकट भविष्य में छपी किताबों के खत्म होने के आसार नहीं हैं. लेकिन यह किताबों के अलग-अलग क्षेत्रों पर भी काफी हद तक निर्भर करता है.
वयस्क फिक्शन विशेषकर रोमांटिक और इरोटिक का बड़ा हिसा इ-बुक की ओर रुख कर गया है, जबकि कुकरी और धार्मिक किताबें तथा चिंत्रकन के साथ छपी किताबें प्रिंट में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं. इस रुझान के कारण भी स्पष्ट हैं.
क्या फॉर्मेट भी महत्वपूर्ण हैं?
तकनीक के बूते अब प्रकाशक ऐसी सेवाएं और उत्पाद भी देने लगे हैं, जो प्रिंटेड किताब और डिजिटल फॉर्मेट के अंतर को कम कर रहे हैं. ऐसे में किताब की परिभाषा भी बदल रही है. वर्ष 2014 में आयी ‘द लिटिल गर्ल हू लॉस्ट हर नेम’ एक ऐसी छपी किताब है, जिसमें डिजिटल तरीके से बदलाव कर उसमें पढ़नेवाले बच्चे का नाम शामिल किया जा सकता है.
बच्चों के लिए बनी तसवीरों भरी किताब ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में खूब बिकी थी. स्पेन की सीबुक कंपनी दुकानों में और ऑनलाइन माध्यमों से एक कार्ड बेचती है. इस कार्ड पर छपे क्यूआर कोड को किसी स्मार्टफोन या टैबलेट से स्कैन कर किताब की इ-बुक प्रति डाउनलोड की जा सकती है.
सीबुक की निदेशक डॉ रोजा साला रोज कहती हैं, किताबों के कुछ विक्रेता डिजिटल को किसी बड़े दानव की तरह देखते हैं, जो उन्हें निगल जायेगा और वे अपना चेहरा बालू में छिपाना पसंद करते हैं. लंदन की नयी टेक कंपनी बुकिंडी तकनीक के इस्तेमाल से लोगों को संघर्षरत स्थानीय पुस्तक विक्रेताओं की मदद के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इस कंपनी ने क्रोम ब्राउजर का एक प्लग-इन बनाया है.
आप जब भी अमेजन पर कोई किताब खोजते हैं, तो स्क्रीन पर एक विंडो खुल जाती है, जो यह बताती है कि इस किताब की कीमत आपके किसी निकटवर्ती दुकान में क्या होगी. खुद को एक सामान्य पाठक बतानेवाले बुकिंडी के संस्थापक विलियम कुकसन कहते हैं कि इस प्रोग्राम के कोड को उन्होंने तीन दिन में बना लिया था.
इस प्रोग्राम से हाइवे नेटवर्क के तहत 350 स्वतंत्र पुस्तक विक्रेताओं को जोड़ा गया है. इससे खुदरा विक्रेता अपने स्टॉक की जांच कर लेते हैं और ग्राहकों की मांग पूरी करते हैं.
धारावाहिक को पुनर्जीवन
डिजिटल प्रकाशन कुछ बहुत पुराने विचारों को भी नया जीवन दे रहा है. ऐसा मानना है अभी हाल तक पेंग्विन बुक्स डिजिटल की प्रमुख रहीं अन्ना रैफर्टी का.
जिस तरह से चाल्र्स डिकेंस का ‘द पिकविक पेपर्स’ 1836 में कई किश्तों में प्रकाशित हुआ था, उसी तरह एक पुरस्कृत अमेरिकी अपराध कथा ‘सो सीरियल’ पिछले साल 12 भागों में पॉडकास्ट हुआ. इसे बहुत सराहा गया था.
रैफर्टी का कहना है कि डिजिटल तकनीक व डिजिटल पठन संस्कृति के उद्भव ने लेखकों और प्रकाशकों को अनेक नये रचनात्मक अवसर मुहैया कराये हैं, जिनके द्वारा किताबों को बेहतर स्वरूप देकर पाठकों का मन बहलाया जा सके. इससे अब लेखक सीधे प्रकाशक बन कर अपने पाठकों से जुड़ सकते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण तथ्य यह कि अपनी अभिव्यक्ति के लिए नयी राह रच सकते हैं.
रैंडम हाउस की पूर्व कर्मचारी अन्ना ज्यां ह्युगस और उनके सहयोगी जैकब कॉकक्रॉफ्ट ने पिजनहोल नामक एक एप्प बनाया है, जिसमें किताबों को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है और पाठक टिप्पणियों के माध्यम से लेखक के साथ सीधे संवाद कर सकते हैं. यह एक डिजिटल बुक क्लब की तरह है.
इसी तरह कॉमा प्रेस का मैकगफिन किताबों के स्पॉटिफाइ के रूप में काम करता है. इसमें आप लेखकों की आवाज में उनकी कहानियां सुन सकते हैं.
इसका एनालाइटिक्स यह बता सकता है कि कहां, क्या पढ़ा जा रहा है और किस जगह पाठक की रुचि कहानी में कम हो जाती है. पाठक किसी कहानी के साथ उसके रूप के बारे में ‘साइंस फिक्शन’, ‘डाइस्टोपियन’ या ‘फेमिनिस्ट’ जैसे टैग लगा सकते हैं. इन टैगों के सहारे अन्य नयी कहानियां भी खोजी जासकती हैं. यह किताब की दुकान में किताबें खोजने जैसा है.
ध्यान का डिजिटल भटकाव
किंडल की बिक्री कम होने का एक कारण मोबाइल यंत्रों से प्रतिस्पर्धा है. हिंक्स के अनुसार, मोबाइल फोन के स्क्रीन बड़े आने लगे हैं और पहले की तरह उनका अनुभव धीमा और अनाकर्षक नहीं है.
लेकिन भले ही स्मार्टफोन सुविधाजनक हों और उनमें कुछ ही सेकेंड में किताबें खरीदी और डाउनलोड की जा सकती हैं, लेकिन वे पाठकों के ध्यान को भटकाती भी हैं.
इ-बुक विक्रेताओं के लिए यह एक अतिरिक्त समस्या हैं. लोकप्रिय प्रकाशन नेटवर्किग वेबसाइट बुकमशीन की सह-संस्थापक लौरा समर्स कहती हैं कि इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों पर किताबों की प्रतिस्पर्धा गेम, न्यूज और सोशल मीडिया से है, इसलिए उन्हें संक्षिप्त और आकर्षक होना होगा.
लोगों को अधिक-से-अधिक पढ़ने के लिए प्रेरित करने के लिए एक अन्य स्टार्ट-अप रूक लंदन के चुनिंदा वाइ-फाइ हॉट्सपॉट्स पर मुफ्त में इ-बुक पढ़ने की सुविधा प्रदान कर रहा है.
इसके सह-संस्थापक कर्टिस मोरान के अनुसार, उन जगहों से निकलते समय तक लोग किताब में इतने रम जायेंगे कि वे उस किताब को खरीद कर पढ़ना चाहेंगे. वे अपनी इस पहल की तुलना किताबों की पारंपरिक दुकान से करते हैं, जहां आप देर तक बैठ कर किताबों को देख और पढ़ सकते हैं, पर उन्हें बाहर ले जाने के लिए आपको उनकी कीमत देनी होती है.
तो, कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि किताब अभी मृत नहीं हुई है, तकनीक उसके वस्तुगत प्रिंटेड स्वरूप से परे विकसित होने में मात्र मदद कर रहा है. किताबें जिंदाबाद!
(बीबीसी डॉट कॉम से साभार/ अनुदित एवं संपादित)
प्रिंट ऑन डिमांड
प्रकाशन में क्रांति
प्रिंट ऑन डिमांड (पीओडी) किताब छापने की एक विधि है, जिसमें डिजिटल प्रिंट तकनीक के इस्तेमाल से सीमित संख्या में किताबें छापी जाती हैं. परपंरागत छपाई में किताबों की एक न्यूनतम संख्या होती है और किताबों की संख्या बढ़ने के साथ लागत कम होती जाती है.
अधिक लोकप्रिय और ज्यादा बिकनेवाली किताबों के लिए तो यह विधि कारगर है, परंतु एक से लेकर सौ तक की संख्या में इस प्रक्रिया में छपाई बहुत खर्चीली हो जाती है. ऐसे में पीओडी के द्वारा एक समय में एक किताब प्रकाशित कर पाठक तक पहुंचायी जा सकती है.
इस कारण किताबों के भंडारण की समस्या भी समाप्त हो जाती है. अक्सर किताबें लागत और बिक्री की मुश्किलों की वजह से छप नहीं पाती हैं, और अगर किसी तरह से छप भी गयीं, तो किसी कोने में पड़ी रहती हैं.
अब किताबों के ऑनलाइन मार्केट के कारण इस समस्या का समाधान हो गया है. जैसे ही किसी रिटेलर के पास किताब का ऑर्डर आता है, उसे छाप कर और साज-सज्ज के साथ एक प्रति पाठक को भेज दी जाती है.
परंपरागत तकनीक में पूरी किताब की पेज-सेटिंग कर कागज और स्याही का बंदोबस्त कर एकमुश्त छपाई होती है.अब एक ही प्रिंटर विभिन्न किताबें कभी-भी छाप सकता है. इससे लेखक, प्रकाशक, वितरक और पाठक को सहूलियत भी हुई है और कीमतों पर भी सकारात्मक असर पड़ा है. इस तरीके से किताब कभी-भी दुनिया के किसी भी कोने में उपलब्ध हो सकती है.
इ-बुक : डिजिटल किताब क्रांति
डि जिटल प्रकाशन में इ-बुक यानी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में पाठ्य-सामग्री की उपलब्धता ने लेखकों, प्रकाशकों और पाठकों के परंपरागत अनुभवों और संबंधों में आमूल-चूल बदलाव को अंजाम दिया है.
इस रूप में अब कोई भी किताब या पत्रिका प्रिंट फॉर्मेट के अलावा डिजिटल माध्यमों से भी पाठकों तक पहुंच रही हैं. छपी हुई किताबों की बिक्री और उन्हें पाठकों तक आसानी से पहुंचाना लेखकों और प्रकाशकों के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रही है.
लागत से लेकर वितरण की श्रृंखला से होते हुए पाठक के हाथ में किताब के आने तक उसकी लागत भी बढ़ जाती है और मूल्य अधिक होने के बावजूद लेखक को मिलनेवाली रॉयल्टी भी पर्याप्त नहीं हो पाती. लेकिन इ-बुक ने बहुत हद तक इस समस्या का समाधान कर दिया है. डिजिटल फॉर्मेट में होने के कारण प्रिंट की तुलना में किताब की लागत बहुत कम हो जाती है.
इ-बुक को इ-कॉमर्स और प्रकाशक साइटों पर अपलोड कर दिया जाता है, जहां से मामूली कीमत चुका कर कोई भी पाठक दुनिया के किसी भी हिस्से में उसे डाउनलोड कर सकता है. किताब की कीमत का बड़ा हिस्सा रॉयल्टी के रूप में सीधे लेखक के पास जाता है. इ-बुक ने प्रकाशन के समीकरणों को भी बदल दिया है.
परंपरागत रूप में किसी लेखक को किताबें छपवाने के लिए स्थापित प्रकाशक के पास जाना पड़ता है. प्रकाशक लेखक की लोकप्रियता और बिक्री की संभावनाओं के आधार पर छापने या न छापने का फैसला करता है.
यही कारक रॉयल्टी की रकम का निर्धारण भी करते हैं. अमूमन नये लेखकों के लिए छपना एक कठिन और लंबी प्रक्रिया होती है. लेकिन, डिजिटल तकनीक ने लेखक को छपने, कीमत और रॉयल्टी तय करने, पाठक से सीधे जुड़ने का प्लेटफॉर्म मुहैया कराया है.
इस वजह से अब बड़ी संख्या में किताबें सिर्फ इ-बुक के रूप में प्रकाशित हो रही हैं. पाठक के लिए मोबाइल, किंडल, टैबलेट या लैपटॉप में हजारों किताबें रखने और पढ़ने की सुविधा ने भी इ-बुक को एक सफल पहल के रूप में स्थापित कर दिया है.
इतना ही नहीं, पाठक अपनी पसंद-नापसंद और किताबों पर अपनी राय को भी सीधे लेखकों तक पहुंचा सकता है. साइटों पर पाठकों की समीक्षाएं भावी पाठकों को भी किताब के बारे में उत्सुक करने में मददगार हो रही हैं.
इ-बुक के फॉर्मेट ने नवोदित लेखकों को प्रकाशन-जगत में अपनी दखल देने का एक अवसर भी उपलब्ध कराया है. अब उन्हें प्रकाशकों की चिरौरी करने और अपने हिस्से की रॉयल्टी के लिए हाथ पसारने की जरूरत नहीं है.
हिंदी डिजिटल किताबों की आमद
ती न साल पहले विदेश में मैनेजमेंट की पढ़ाई और फिर नौकरी के दौरान नीलाभ श्रीवास्तव ने महसूस किया कि इंटरनेट पर डिजिटल फॉर्मेट में हिंदी की स्तरीय साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाएं उपलब्ध नहीं है.
इससे पैदा हुई बेचैनी ने उन्हें नौकरी छोड़ कर एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जो आज ‘नॉटनल डॉट कॉम’ के रूप में हमारे सामने है. फिलहाल इस वेबसाइट पर करीब 40 पत्रिकाएं उपलब्ध हैं, जिन्हें कुछ कीमत चुका कर पीडीएफ के रूप में कंप्यूटर या मोबाइल डिजिटल यंत्र पर डाउनलोड किया जा सकता है.
इस साइट पर लेखकों द्वारा अपनी रचनाएं सीधे अपलोड कर पाठकों तक पहुंचने की सुविधा भी है और धीरे-धीरे नॉटनल पर प्रकाशित रचनाकारों की संख्या बढ़ती जा रही है.
नीलाभ श्रीवास्तव ने हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी और तेलुगु साहित्य के लिए भी इस सुविधा का विस्तार किया है. नॉटनल के माध्यम से लेखकों को बेहतर रॉयल्टी भी मिल रही है.
संजीव सराफ अपने उपक्रम रेख्ता डॉट ऑर्ग के जरिये उर्दू साहित्य को मूल भाषा के अलावा हिंदी और अंगरेजी में पाठकों को सुलभ करा रहे हैं.
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