।। ल्यौरा एमेजॉन ।।
देवी महात्म्य या देवी का महास्तुतिगान पांचवीं सदी की पौराणिक कथा है
दुनिया आज दोराहे पर खड़ी है. हमारी अमूल्य धरती पर पर्यावरणीय तबाही, आर्थिक उथल–पुथल, राजनीतिक भ्रष्टाचार और मानव–निर्मित हिंसा की चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं. नस्लवाद, लिंग आधारित भेदभाव, लड़ाइयां, हिंसा, नरसंहार, मानव तस्करी–ये सभी हमारी अपनी ही प्रजाति के खिलाफ व्यापक क्षति पहुंचाने की एक बेहद अन्यायपूर्ण प्रक्रिया है और इससे इस धरती पर जिंदगी मुश्किल भरी होती जा रही है.
विध्वंस की समझ हमारे भीतर कैसे पैदा होती है? जब सभी चीजेंमिथ्या प्रतीत होने लगती हैं, तब अपने और दूसरों के लिए करुणाभाव के स्थान पर हम एक विकट जीवन की ओर मुड़ जाते हैं. ऐसे वक्त में हमारा मार्गदर्शन कौन कर सकता है?
पश्चिम में बहुत से लोगों को, उनके भीतर पली रूढ़िवादी धार्मिक परंपराएं सांत्वना देने में असफल रही हैं. हम में से ज्यादातर लोग आज एक ऐसे आध्यात्मिक मॉडल को तलाश रहे हैं, जो हमारी 21 वीं सदी की जरूरतों को इंगित करते हुए समग्रता से हमारे जीवन को पारस्परिक रूप से जोड़ कर रख सके.
हालांकि, कुछ लोगों ने इसके लिए देशी मान्यताओं को आत्मसात किया है. इसे उन्होंने पश्चिमी रहस्यमय परंपराओं या फिर पूर्व के दर्शन के दिव्य देवी की आवाज से महसूस किया है. ग्रीक पौराणिक कथाओं और रोम में बने सभी देवी–देवताओं के मंदिर के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं.
जबकि कुछ ही लोगों को यह पता है कि दक्षिण एशिया में देवी की पूजा की संपन्न परंपरा कायम है, जहां दिव्य शक्ति के प्रति लोग माता के समान समर्पित हैं. वाकई में, दक्षिण एशिया में एक नहीं, बल्कि हजारों ऐसी दिव्य देवियों (नारियों) की अवधारणा कायम है. हिंदुत्व में मानव विविधता की देवताओं के विशाल देवालय के तौर पर व्याख्या की गयी है.कई तरह की मत–विभिन्नताओं के बावजूद, इनमें से सबसे लोकप्रिय दिव्य देवी के बारे में सभी एकमत हैं.
देवी महात्म्य या देवी का महास्तुतिगान पांचवीं सदी की पौराणिक कथा है, जो हमें संबंधित जीवन काल के बारे में शिक्षा प्रदान करती है. इस कथा में दुर्गा को बुराई का विनाश कर अच्छाई को विजय दिलानेवाली देवी, ईश्वरीय न्याय, अजेय शक्तिशाली और अपार करुणा मयी के रूप में दर्शाया गया है.
उनके नाम ‘दुर्गा’ का अर्थ है ‘दुर्ग’ यानी किला. दुर्गा को हमारे भीतर से भय को दूर करनेवाली और हमें बाधाओं से बाहर निकालनेवाली शक्ति के रूप में भी जाना जाता है. कहा जाता है कि निराशा की अवस्था में जो भी उन्हें पुकारता है, वे हमेशा उसकी सहायता के लिए आती हैं.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दैत्यों ने धरती पर लोगों का जीना हराम कर रखा था और उनका आदेश न माननेवालों और उनसे वैचारिक असहमति रखनेवालों को वे मार डालते थे. देवताओं की मंशा थी कि दैत्य किसी तरह का खून–खराबा न करें, लेकिन इसके बावजूद वे उन्हें रोक पाने में असमर्थ थे.
इसकी वजह थी कि दैत्यों के राजा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्म से एक वरदान प्राप्त था. उस वरदान के मुताबिक, कोई भी मनुष्य, देव या दैत्य उसे युद्ध में पराजित नहीं कर सकता था. ब्रह्म ने वरदान देते समय जब उससे पूछा कि क्या वह ऐसा भी चाहता है कि किसी स्त्री कि साथ युद्ध करते हुए भी वह परास्त न हो सके, इस सवाल पर उसका अहंकार जाग गया. दैत्य के लिए किसी स्त्री को युद्ध में परास्त करना बेहद आसान था, इसलिए उसने ब्रह्म के इस अनुरोध को नकार दिया.
अराजक हिंसा के उस दौर के बाद, सभी पुरुष देवताओं ने खून–खराबे से निजात दिलाने के लिए सर्वाधिक शक्तिशाली (माता रूपी नारी) देवी का आह्वान किया. इस हिंसा को रोक पाने में केवल वे ही सक्षम हैं.
दुर्गा की पौराणिक कथा के प्रारंभिक अध्याय में यह दर्शाया गया है कि धरती पर कैसे शांतिप्रियता कायम हुई और दुनिया को यह संदेश दिया गया कि दैत्यों के राजा को एक सुंदर स्त्री ने युद्ध में किस तरह से सबक सिखाया. दैत्य राजा अपने दो निकटतम सेनापतियों को आदेश देता है कि उनके पास तुम लोग विवाह का प्रस्ताव लेकर जाओ. हालांकि, ये सेनापति शक्तिशाली देवी के समक्ष टिक नहीं पाते हैं.
जैसे ही वे उन्हें पकड़ने की कोशिश करते हैं, तो देवी अपने हाथों से दीप की एक लौ उत्सजिर्त करती हैं, जिससे उनके भीतर शांति और करुणा की भावना पैदा हो जाती है. व्यथित होकर ये अत्याचारी दानव देवी को प्रत्यक्ष युद्ध के लिए ललकारते हैं, तो वे इसके लिए तैयार हो जाती हैं.
देवी का सामना करते हुए दैत्य भय से थर–थर कांपने लगता है. क्रोध के आवेश में आकर वह अपनी पूरी ताकत के साथ पर्वतों को उछाल कर फेंक देता है, जंगलों को उखाड़ देता है और धरती पर भूकंप पैदा कर देता है. देवी दुर्गा की ओर छोड़े गये सभी तीर जब उसकी ओर मुड़ जाते हैं, तो वह दैत्य अपना रूप बदल कर कभी भैंस, कभी बाघ तो कभी मनुष्य का रूप धारण कर लेता है.अंतत: दुर्गा उसका सिर धड़ से अलग करते हुए, उसके हृदय में भाले से वार करते हुए उसे खत्म कर देती हैं.
देवी दुर्गा की कथा के लाक्षणिक प्रतीकों के बारे में हम सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों से इतर दिल के ज्ञान से विचार कर सकते हैं. असल में महिषासुर हमारे अज्ञान, प्रतिक्रियाओं और अहंकारी स्वभाव का प्रतीक है. दानवों की लगातार बदलती उपस्थिति हमें उसी के अनुरूप तर्क हीन व्यवहार के लिए प्रेरित कर रही है, जबकि क्रोध, ईष्र्या, अभिमान, लालच और भ्रम जैसी नकारात्मक भावनाओं के विनाशकारी परिणाम को देखते हुए हमें इनसे मुक्ति पाने की जरूरत है.
आज आसुरी इच्छाओं का आकार–प्रकार बदल रहा है और यह नयी–नयी इच्छाओं के रूप में सामने आ रहा है. दानवों का बेकाबू क्रोध अपनी राह में आनेवाले हर चीज को बिना कोई विचार किये खत्म कर देना चाहता है. आज हम दुनिया में जिस तरह के खून–खराबे का सामना कर रहे हैं, यह उसी के सदृश्य है.
इस तरह से विचार करें तो यह हमें अपने गुस्से का सही विकल्प चुनने के लिए प्रेरित करता है. हम अपने गुस्से का इजहार किस तरह से करें, हम इसका उपयोग रचनात्मक तरीके से अन्याय को खत्म करने के लिए करेंगे या फिर हम भी विनाशकारी रास्ते पर चलेंगे? यदि हम विभाजनकारी, कायर या सिर्फ दूसरों को दोष देनेवाले होंगे, तो हम अपने माहौल में ही जहर घोलेंगे.
देवी का दयालु एवं दिव्य स्वभाव हमें अपने अहंकारी स्वभाव से मुक्ति पाने में मदद करेगा और दिव्य प्रेम के मर्मज्ञ ज्ञान की ओर वापस ले जायेगा. देवी दुर्गा पलभर में सारी दुनिया की समस्याओं का समाधान भले नहीं हो सकती हैं, लेकिन यह पौराणिक कथा हमें सिखाती है कि देवी रूप में हमारे दिल के भीतर शांति के लिए पर्याप्त जगह है, जहां हम स्वार्थी और हानिकारक कृत्यों को बढ़ावा देने के बजाय सद्भाव और एकता बढ़ानेवाली क्रियाओं को स्थान दे सकते हैं.
इस मान्यता में, अंत में दानवों का नाश होता है और देवी की पूजा की जाती है. मां दुर्गा किसी भी संकट में अपने भक्तों के साथ होने का वादा करती हैं. एक ऐसे समय में, जब हम व्यक्तिगत और वैश्विक स्तर पर अनेक संकटों का सामना कर रहे हैं, हमें इस बात का संतोष है कि हम साहस, दया और करुणा की इस प्राचीन दिव्य नारी शक्ति को धरती पर खतरों से ग्रस्त प्राणियों में साहस का संचार करने और हालात को बदलने के लिए पुकार सकते हैं.
देवी महात्म्य हमें सिखाता है कि देवी की कृपा हर किसी को बिना किसी शर्त के मिलती है और कभी किसी से वापस नहीं ली जाती–वह चाहे अहंकार रूपी दानव से ग्रस्त ही क्यों न हो. स्वयं और सभी के प्रति असीम प्रेम के माध्यम से ही दुनिया में शांति और सौहाद्र्र की स्थापना हो सकती है. हम सभी को अपने अंदर वास्तविक स्वभाव और दिव्य प्रेम को जिंदा रखने में मदद के लिए केवल देवी दुर्गा का आह्वान करने की जरूरत है.
(लेखिका अमेरिका के लास एंजिल्स स्थित लोयोला मेरी माउंट यूनिवर्सिटी में योग और दर्शन की प्राध्यापिका हैं. उन्होंने इनसाइक्लोपीडिया ऑन हिंदुइज्म और इनसाइक्लोपीडिया ऑन गॉडेसेज ऑफ वर्ल्ड कल्चर पर काफी काम किया है. ‘गॉडेस दुर्गा एंड सेक्रेड फीमेल पावर’ नामक पुस्तक भी लिखा है.)
(हफिंगटन पोस्ट से साभार)