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हर सीट पर उम्मीदवारी की मारा-मारी

जुटे उम्मीदवारी जताने में नरपतगंज नरपतगंज विधानसभा सीट ज्यादातर दो ही परिवारों के कब्जे में रही. केवल एक बार ऐसा हुआ, जब इस क्षेत्र से बाहर का व्यक्ति चुनाव जीत सका. यहां से जनार्दन यादव चार बार विधायक चुने गये. रामघाट के सत्यनारायण यादव यहां के पांच विधायक रहे. यादव के बाद उनके पुत्र दयानंद […]

जुटे उम्मीदवारी जताने में
नरपतगंज
नरपतगंज विधानसभा सीट ज्यादातर दो ही परिवारों के कब्जे में रही. केवल एक बार ऐसा हुआ, जब इस क्षेत्र से बाहर का व्यक्ति चुनाव जीत सका. यहां से जनार्दन यादव चार बार विधायक चुने गये. रामघाट के सत्यनारायण यादव यहां के पांच विधायक रहे. यादव के बाद उनके पुत्र दयानंद यादव ने तीन बार राजद के टिकट पर यहां से चुनाव जीता. यह बात दीगर है कि बुनियादी सुविधाओं के मामले में यह विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा हुआ है. पिछले चुनाव में भाजपा की देवयंती देवी ने राजद के विजय कुमार सिंह को हराया था. लोकसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गंठबंधन टूटने का लाभ राजद को मिला. इस विधानसभा क्षेत्र में उसे भाजपा से करीब छह फीसदी तथा जदयू से करीब 12 फीसदी ज्यादा वोट मिले. यहां भाजपा व राजद में सीधा मुकाबला हो सकता है, लेकिन इससे पहले घटक दलों के बीच सीट का बंटवारा अहम विषय है.
होने के आसार हैं. अभी राजद व जदयू में सीटों का तालमेल नहीं हुआ है फिर भी राजद व जदयू के लोग अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
लोकसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गंठबंधन टूटने का लाभ राजद को मिला. इस विधानसभा क्षेत्र में उसे भाजपा से करीब छह फीसदी तथा जदयू से करीब 12 फीसदी ज्यादा वोट मिले. यहां भाजपा व राजद में सीधा मुकाबला हो सकता है, लेकिन इससे पहले घटक दलों के बीच सीट का बंटवारा अहम विषय है.होने के आसार हैं. अभी राजद व जदयू में सीटों का तालमेल नहीं हुआ है फिर भी राजद व जदयू के लोग अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
अब तक
पांच बार कांग्रेस , चार बार भाजपा व तीन बार राजद को जीत मिली है. एक बार कांग्रेस के विधायक रहे सत्य नारायण यादव मंत्री बने थे.
इन दिनों
भाजपा व राजद-जदयू अपने-अपने हिसाब से तैयारी कर रहे हैं. जदयू हर घर दस्तक दे रहा है. भाजपा का परिवर्तन रथ गांव-गांव घूम रहा है.
नजर नये समीकरण पर
फारबिसगंज
विधान सभा क्षेत्र 1951 से ही अस्तित्व में है. इसके क्षेत्र का परिसीमन समय-समय पर होता रहा है. वर्ष 1990 के चुनाव में फारबिसगंज में पहली बार बदलाव आया, जब भाजपा के उम्मीदवार मायानंद ठाकुर ने सरयुग मिश्र को शिकस्त दी. 1995 के चुनाव में मायानंद ठाकुर दोबारा चुनाव जीते, लेकिन 2000 के चुनाव में बसपा के जाकिर हुसैन खान ने उन्हें हराया. खान बिहार में बसपा के इकलौते विधायक थे. वर्ष 2005 के फरवरी व अक्तूबर में हुए चुनावों में भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मी नारायण मेहता ने जीत दर्ज की. वर्ष 2010 में उनका टिकट पार्टी ने काट दिया और पद्म पराग राय वेणु को उम्मीदवार बनाया. वेणु पहली बार विधायक बने. फिलवक्त पूर्व विधायक लक्ष्मी नारायण मेहता राजद के साथ हैं, जबकि मायानंद ठाकुर भाजपा से लोजपा और फिर भाजपा में शामिल हुए हैं. ठाकुर 2010 में लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे. इधर लोजपा व भाजपा एक ही गंठबंधन में हैं. टिकटार्थियों की लंबी फेहरिस्त है. राजद-जदयू महागंठबंधन में भी टिकट पाने की उम्मीद रखने वाले कई नेता एड़ी-चोटी एक करने में लगे हैं.
अब तक
आठ बार कांग्रेस, पांच बार भाजपा, एक-एक बार बसपा व पीएसपी को जीत मिली. सरयू मिश्र सात बार विधायक व एक बार मंत्री भी बने थे.
इन दिनों
भाजपा की ग्रास रूट पर बैठक का सिलसिला जारी. परिवर्तन रथ यात्र जारी. जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम चल हरा है.
बदल गया है चुनावी गणित
अररिया
इस विधानसभा क्षेत्र में दल-बदल की घटनाएं ज्यादा हुई हैं. इससे स्थानीय स्तर पर भी राजनीतिक समीकरण बदला है. भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़नेवाले अजय झा और पिछली बार यहां से लोजपा के टिकट पर चुनाव जीतनेवाले जाकिर अब जदयू में हैं. 1995 में यहां से बिहार पीपुल्स पार्टी के विजय कुमार मंडल चुनाव जीते थे. बाद में उन्होंने जनता दल की सदस्यता ले ली. 2000 के चुनाव में जनता दल से टिकट नहीं मिलने पर वे स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और जीते. 2005 के दोनों चुनाव में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह विजयी हुए थे. उनके लोकसभा चुनाव जीतने से इस सीट पर हुए मध्यावधि चुनाव में लोजपा के विजय कुमार मंडल विधायक बने. 2010 में लोजपा के जाकिर अनवर ने चुनाव जीता. अब वे जदयू के सदस्य हैं. इस विधानसभा क्षेत्र की खासियत यह रही है कि बिहार पीपुल्स पार्टी, इंसाफ पार्टी व लोजपा का खाता यहीं से खुला था. इस बार के चुनाव में सभी दलों से संभावित उम्मीदवारों की सूची लंबी है.
अब तक
पांच बार कांग्रेस , चार बार निर्दलीय व दो बार भाजपा को जीत मिली है. भाजपा के अजय झा व लोजपा के जाकिर हुसैन जदयू में शामिल.
इन दिनों
जदयू का दस्तक कार्यक्रम चल रहा है, तो भाजपा का परिवर्तन रथ गांव-गांव घूम रहा है. लोजपा व राजद भी कार्यकर्ता सम्मेलन कर रहे हैं.
टिकट को ले जोड़-तोड़
जोकीहाट
जोकीहाट के विधानसभा चुनावों पर तसलीमुद्दीन का प्रभाव रहा है. तस्लीमुद्दीन 1969 से लगातार यहां से विधायक रहे. जब 1980 में वह अररिया सीट से विधानसभा चुनाव लड़े, तब मोइदुर्रहमान को कांग्रेस ने टिकट दिया और वह जीते. वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में पहली बार आरजेडी के चुनाव चिह्न् पर सरफराज ने चुनाव जीता, लेकिन 2005 के फरवरी व अक्तूबर में हुए चुनाव में वह चुनाव हार गये. जदयू के मंजर आलम ने उन्हें हरा कर विधानसभा की दहलीज पर कदम रखा, लेकिन 2010 के चुनाव में मंजर का टिकट काट दिया गया. पार्टी ने सरफराज को टिकट दिया और वे जीते भी. उन्होंने निर्दलीय कौशर जिया को हराया. जिया अब लोजपा में हैं. वे पप्पू यादव के भी करीबी माने जाते हैं. वहीं निर्दलीय चुनाव लड़े रंजीत यादव भाजपा के टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. सैय्यद शहनवाज हुसैन से उनकी निकटता है. राजद के अरुण यादव अब भी पार्टी में सक्रिय हैं. देखना यह होगा कि किस गंठबंधन में यह सीट किस घटक दल को मिलती है.
अब तक
तीन बार कांग्रेस, तीन बार जदयू व दो बार जनता पार्टी को जीती.ज्यादा समय तक तसलीमुद्दीन व उनके बेटे सरफराज आलम विधायक रहे.
इन दिनों
भाजपा गांव-गांव में छोटे-छोटे कार्यक्रम कर रही है. जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम चल रहा है. लोजपा भी सक्रिय है.
टिकट की खातिर घमसान
सिकटी
सिकटी विधानसभा क्षेत्र 1977 में अस्तित्व में आया. इसके पहले सिकटी प्रखंड पलासी विधानसभा का अंग था. वर्तमान परिसीमन के अनुसार सिकटी विधानसभा क्षेत्र में पूरा कुर्साकांटा व पूरा सिकटी प्रखंड एवं पलासी प्रखंड की दस पंचायतें शामिल हैं. 1977 में मो अजीमउद्दीन यहां से चुनाव जीते थे. 1980 के चुनाव में कांग्रेस के शीतल प्रसाद गुप्ता विधायक बने. 1985 में कांग्रेस के रामेश्वर यादव एवं 1990 में जनता दल के मो अजीमउद्दीन चुनाव जीते, जबकि 2000 में भाजपा के टिकट पर आनंदी यादव विधानसभा पहुंचे, लेकिन 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में व अक्तूबर में जदयू के टिकट पर मुरलीधर मंडल चुनाव जीते, लेकिन 2010 में बीजेपी के आनंदी प्रसाद यादव फिर से विधायक बने, जबकि पिछला चुनाव हारे विजय कुमार मंडल लोजपा छोड़ जदयू में हैं. यहां भाजपा व जदयू से टिकट के लिए ज्यादा दावेदारी है.
अब तक
तीन-तीन बार कांग्रेस तथा दो-दो बार जेडीयू भाजपा को जीत मिली. विजय कुमार मंडल लोजपा छोड़ जदयू में शामिल हुए हैं.
इन दिनों
जदयू का भाजपा के खिलाफ अभियान जारी. भाजपा का पर्विन रथ गांव-गांव घूम रहा है. राजद वोटरों को एकजुट करने में जुटा है.
चुनावों में बदलते रहे हैं चेहरे
रानीगंज (अजा)
रानीगंज विधानसभा क्षेत्र 1962 में अस्तित्व में आया था. इस क्षेत्र से पहले विधायक गणोश लाल वर्मा निर्दलीय चुनाव जीते थे, लेकिन 1967 में यह क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया. चूंकि यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है, इसलिए यहां सवर्ण व पिछड़ा वोटर किंग मेकर का काम करते रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव तक भाजपा व जदयू के एक साथ होने के कारण महादलित व पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी नहीं हुई थी. इस बार अतिपिछड़ा व महादलित वोट बैंक में जबदस्त सेंधमारी के आसार हैं. भाजपा का सीटिंग विधायक होने के कारण इस सीट पर उसका दावा मजबूत है. महागंठबंधन में यह तय होना है कि यह सीट किसके खाते में जाती है. 2010 में इस सीट से भाजपा के परमानंद ऋषिदेव ने राजद की शांति देवी को भारी मतों के अंतर से हराया था. लोकसभा चुनाव में भाजपा-जदयू गंठबंधन टूटने का लाभ राजद को मिला था. भाजपा दूसरे और जदयू तीसरे स्थान पर चले गये थे. फिलवक्त, सभी दलों में टिकट के दावेदारो की सूची लंबी है.
अब तक
पांच बार कांग्रेस , चार बार राजद व तीन बार भाजपा जीती. कांग्रेस के यमुना राम, राजद की शांति देवी व भाजपा के आरडी ऋषिदेव मंत्री बने.
इन दिनों
जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम चल रहा है. भाजपा का परिवर्तन रथ गांव-गांव घूमने लगा है. केंद्र की नीतियों के खिलाफ राजद सक्रिश् है.

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