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सियासत में घटती जा रही है हिस्सेदारी

अजय कुमार बिहार की राजनीति में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व क्रमिक रूप से सिमटता जा रहा है जबकि उनकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 16.9 फीसदी है. आबादी की कसौटी पर विधानसभा में करीब 40 मुसलिम जन प्रतिनिधियों को पहुंचना चाहिए था. लेकिन 2010 के चुनाव में केवल 15 विधायक ही विधानसभा पहुंच सके. विधानसभा […]

अजय कुमार

बिहार की राजनीति में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व क्रमिक रूप से सिमटता जा रहा है जबकि उनकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 16.9 फीसदी है. आबादी की कसौटी पर विधानसभा में करीब 40 मुसलिम जन प्रतिनिधियों को पहुंचना चाहिए था. लेकिन 2010 के चुनाव में केवल 15 विधायक ही विधानसभा पहुंच सके. विधानसभा की कुल सीटें हैं 243. लोकसभा की कुल 40 सीटों में से चार पर ही मुसलिम उम्मीदवार चुनाव जीत सके. वर्ष 2014 के दौरान भले ही राजनीति में बहुसंख्यकवाद प्रभावी होकर उभरा, पर उसके पहले के विधानसभा चुनाव में भी अल्पसंख्यकों की भागीदारी अच्छी नहीं रही. राज्य में 50 ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां मुसलमानों के वोट निर्णायक हो सकते हैं. इन क्षेत्रों में मुसलमानों के वोट न्यूनतम 18 फीसदी और अधिकतम 75 फीसदी हैं. कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र म्में 74 मुसलिम आबादी है.

आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में मुसलिम विधायकों की संख्या 24 थी. तब से लेकर 1977 तक मुसलिम विधायकों की संख्या 18 और 28 के बीच रही. इस दौरान विधानसभा के आठ चुनाव हुए. विधानसभा के नौवें चुनाव मुसलिम विधायकों की संख्या बढ़कर 34 पर पहुंच गयी थी. 1985 के चुनाव में यह रिकार्ड बना था. इन 34 मुसलिम विधायकों में 29 कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. नब्बे के दशक से राजनीति का नया दौर शुरू हुआ. कांग्रेस से मुसलमान वोट छिटक गया और यह वोट जनता दल के साथ जुड़ गया. 1990 के चुनाव में चुनाव जीतने वाले 20 मुसलमान विधायकों में सिर्फ पांच कांग्रेस के टिकट निर्वाचित हुए थे. जबकि 11 जनता दल के टिकट पर निर्वाचित हुए थे.

इसी दौर में दो बड़ी घटनाएं घटीं जिसने मुसलिम आबादी को गहरायी तक प्रभावित किया. 1989 में भागलपुर दंगा हुआ था, तब राज्य में कांग्रेस की हुकूमत थी. उसके बाद बाबरी मसजिद के गिराये जाने की घटना के बाद मुसलमानों का कांग्रेस से पूरी तरह मोहभंग हो गया. इस उथल-पुथल भरे दौर में मुसलमानों को जनता दल ने अपनी ओर आकर्षित किया. बाद के दौर में यह वोट लालू प्रसाद के साथ जुड़ा रहा तो 2005 के बाद इसमें नया रूझान पैदा हुआ. तब लालू प्रसाद के खिलाफ नीतीश कुमार नयी राजनीतिक ताकत बनकर सामने आ चुके थे. हालांकि यह भी सच है कि बिहार की सियासत में कांग्रेसकी ओर से सबसे ज्यादा मुसलिम विधायक बने. पर राजनीति की अवधारणा बदली तो तसवीर का रुख भी बदल गया.

राज्य विधानसभा के लिए अब तक हुए 15 चुनावों में 333 मुसलिम उम्मीदवार विधायक बने. इसमें 2005 के फरवरी में हुआ वह चुनाव भी शामिल है जब विधासभा का गठन नहीं हो पाया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू

करना पड़ा था. उस चुनाव में 24 मुसलिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. लेकिन उसी साल अक्टूबर में हुए चुनाव में मुसलिम विधायकों की संख्या घटकर 16 हो गयी थी. 2010 के चुनाव में कुल 15 मुसलिम उम्मीदवार ही चुनाव जीत सके थे. संख्या के लिहाज से मुसलमान विधायकों की यह अब की सबसे कम तादाद है.

अगर संसदीय चुनाव की बात करें, तो बिहार से अब तक 59 सांसद निर्वाचित हुए हैं. इनमें सबसे ज्यादा तादाद छह सांसदों की रही है. 1985 और 1991 के मध्यावधि चुनाव में राज्य से छह-छह मुसलिम सांसद चुने गये थे. यह तादाद सबसे बड़ी है. जबकि सबसे कम, दो सांसद 1967 में निर्वाचित हुए थे. पार्टियों के संगठन में भी इस तबके की हिस्सेदारी कम है.

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