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चंदे से लेकर रोटी तक की फिक्र जनता करती थी

ध्रुपनाथ चौधरी पूर्व विधायक,बरौली 1990 के दशक में बरौली विधान सभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक बने ध्रुपनाथ चौधरी आज के बदलते राजनीतिक परिवेश से खासे नाराज है. 1990 में निर्दलीय विधायक बने चौधरी बीते विधान सभा चुनाव तक चुनावी मैदान में रहे है. चौधरी कहते है कि राजनीतिक झूठ, पैसा, लालच और जातिवाद का गढ़ […]

ध्रुपनाथ चौधरी

पूर्व विधायक,बरौली
1990 के दशक में बरौली विधान सभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक बने ध्रुपनाथ चौधरी आज के बदलते राजनीतिक परिवेश से खासे नाराज है. 1990 में निर्दलीय विधायक बने चौधरी बीते विधान सभा चुनाव तक चुनावी मैदान में रहे है. चौधरी कहते है कि राजनीतिक झूठ, पैसा, लालच और जातिवाद का गढ़ बन कर रह गयी है. पहले का चुनाव प्रत्याशी और एजेंडे पर होता था.
नेताओं में जनता के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा होता था. लेकिन, आज के राजनीतिक माहौल में नेताओं को कार्यकर्ता भी पैसे के बल पर बनाने पड़ते है.
19 वर्षो तक बरौली के प्रखंड प्रमुख रहे एवं 25 वर्षो तक मुखिया रहे श्री चौधरी 1990 में राम प्रवेश राय को हरा कर विधान सभा में प्रवेश किया था. तब उनके चुनाव लड़ने पर 35 हजार रूपये का खर्च आया था. श्री चौधरी कहते है कि उस समय मुङो किसी चंदे की जरूरत नहीं थी.
एक पुरानी मोटरसाइकिल और घर से जाै और गेंहू बेच कर चुनावी मैदान में उतरा था. मेरे सामने पूंजीपति और प्रभावशाली लोग मैदान में खड़े थे. लेकिन आम जनता ने मुङो हाथों-हाथ लिया. चुनाव प्रचार के लिए जनता ही गाड़ी उपलब्ध कराती थी. समय बदला तो राजनीति का ढंग भी बदल गया. चुनाव प्रचार के लिए क्षेत्र में जाने से पहले कार्यकर्ता अपने-अपने घर से भोजन कर आते थे, साथ ही प्रचार के दौरान मेरे खाने-पीने का इंतजाम भी जनता द्वारा ही किया जाता था. 1990 में चुनाव जितने के बाद श्री चौधरी 1990 से लेकर 2010 के विधान सभा चुनाव में लगातार चुनाव लड़ते रहे है.
80 वर्षीय श्री चौधरी बताते है कि विकास का दंभ भरने वाले नेता जब जात-पात की राजनीति करे, राजनीति को विरासत समझने वाले लोग वंशवाद की राजनीति कर रहे है, जिससे न तो जनता का भला हो रहा है, और ना ही देश का विकास. इसी को लेकर 80 वर्ष की उम्र में भी समाजिक व्यवस्था को दुरूस्त करने की ठान लेने वाले श्री चौधरी लगातार जीत-हार के बाद भी चुनाव में चुनौती देतेआ रहे है.

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