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गूगल हैंगआउट: अंशु गुप्ता के साथ

मैग्सैसे अवॉर्ड से सम्मानित अंशु गुप्ता अपने रचनात्मक नज़रिए के ज़रिए बेकार कपड़े और अन्य सामान से ग़रीबों की मदद के लिए जाने जाते हैं. वो गूंज नाम का एक एनजीओ चलाते हैं. अंशु का मक़सद है शहरी और ग्रामीण जीवन के बीच की खाई पाटना. इस लिंक पर आप अंशु गुप्ता के साथ बीबीसी […]

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गूगल हैंगआउट: अंशु गुप्ता के साथ 3

मैग्सैसे अवॉर्ड से सम्मानित अंशु गुप्ता अपने रचनात्मक नज़रिए के ज़रिए बेकार कपड़े और अन्य सामान से ग़रीबों की मदद के लिए जाने जाते हैं.

वो गूंज नाम का एक एनजीओ चलाते हैं.

अंशु का मक़सद है शहरी और ग्रामीण जीवन के बीच की खाई पाटना.

इस लिंक पर आप अंशु गुप्ता के साथ बीबीसी हिंदी का गूगल हैंगआउट देख सकते हैं. दोपहर बारह बजे.

जानिए उनके बारे में कुछ ख़ास बातें

1. अंशु, अर्थशास्त्र में मास्टर्स डिग्री प्राप्त हैं. उन्होंने जर्नलिज़्म और मास कम्युनिकेशन में भी कोर्स किए हैं.

एक छात्र के तौर पर उन्होंने 1991 में उत्तरकाशी में आए भूकंप के बाद वहां राहत कार्यों में हिस्सा लिया था.

2. उसके बाद उन्होंने गांव में रह रहे लोगों और ग़रीबों के लिए कुछ करने की ज़रूरत महसूस की. अंशु ने पाया कि कपड़ों की कमी एक मूलभूत समस्या है जिसकी तरफ़ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है.

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3. उन्होंने अपनी अच्छी नौकरी छोड़ कर गूंज नाम का एनजीओ शुरू किया. अपनी पत्नी के साथ कुछ कपड़े इकट्ठा कर उन्होंने अपने मिशन की शुरुआत की.

4. अंशु के दिमाग़ में ‘क्लोथ फॉर वर्क’ का आयडिया आया. यानी काम के बदले कपड़े.

5. अंशु के एनजीओ ने कई राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं के वक़्त राहत कार्यों और सामाजिक विकास कार्यों में हिस्सा लिया. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों को ख़ास ख़्याल रखा.

6. उनके काम के लिए उन्हें नासा ने उनकी सराहना की. फ़ोर्ब्स पत्रिका ने अंशु को भारत के सबसे प्रभावशाली ग्रामीण उद्योगपतियों में से एक माना.

7. उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के लिए सैनेटरी पैड्स की कमी की समस्या को दूर करने के लिए पुराने कॉटन से हायजिनिक सैनेटरी पैड्स बनाने का आयडिया भी निकाला और गांवों में इस मुद्दे पर जागरुकता फैलाने की कोशिश की.

अंशु गुप्ता और उनकी पत्नी मीनाक्षी गुप्ता से आप सात अगस्त, शुक्रवार को गूगल हैंगआउट में अपने सवाल पूछ सकते हैं.

गूगल हैंगआउट का वक़्त है दोपहर 12 बजे.

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