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पढ़ना और महिलाओं को जागरूक करना जिंदगी का लक्ष्य

मुंबई के रेड-लाइट एरिया में पैदा हुई श्वेता कट्टी ने बार्ड कॉलेज की स्कॉलरशिप हासिल करके एक मिसाल पेश की है. अगर जुनून और जज्बा मन में हो, तो परिस्थितियां अपने आप ही आपके आगे झुकने को तैयार हो जाती हैं, श्वेता की इस उपलब्धि से यह बात एक बार फिर साबित हुई है. अगस्त, […]

मुंबई के रेड-लाइट एरिया में पैदा हुई श्वेता कट्टी ने बार्ड कॉलेज की स्कॉलरशिप हासिल करके एक मिसाल पेश की है. अगर जुनून और जज्बा मन में हो, तो परिस्थितियां अपने आप ही आपके आगे झुकने को तैयार हो जाती हैं, श्वेता की इस उपलब्धि से यह बात एक बार फिर साबित हुई है. अगस्त, 2013 में अमेरिका के लिए भरी गयी उड़ान ने श्वेता का अमेरिका में पढ़ने का बचपन का सपना पूरा किया.

हाल ही में श्वेता कट्टी पर मीडिया ही नहीं पूरे देश का ध्यान गया. श्वेता ने क्रांति स्वयं सेवी संस्था के साथ रह कर पढ़ाई की है. दरअसल क्रांति लड़कियों के लिए पुनसरुधार की व्यवस्था के लिए काम करती है.

बारहवीं कक्षा के दौरान श्वेता इस स्वयंसेवी संस्था के संपर्क में आयीं. वे बारहवीं की पढ़ाई के लिए अच्छी जगह की तलाश में थीं. धीरे-धीरे 18 वर्षीय श्वेता इस एनजीओ का चेहरा बन गयीं और अब वे देश के कोने-कोने में क्रांति के बारे में लोगों को बताती हैं. हाल ही में ‘न्यूजवीक’ ने श्वेता को वैश्विक परिदृश्य में अंडर-25 वुमेन में शामिल किया है. इसमें पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई भी शामिल हैं. श्वेता ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है. उन्हें न्यूयॉर्क के बार्ड कॉलेज ने सितंबर सेमेस्टर के लिए छात्र बनने का मौका दिया है. बार्ड कॉलेज ने उन्हें 30 हजार डॉलर की स्कॉलरशिप प्रदान की है, जिसमें इस वर्ष की ट्यूशन फीस और रहने का आधा खर्च शामिल है.

एक इंटरव्यू में अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताते हुए श्वेता कहती हैं कि मेरी मां ‘देवदासी’ हैं, इसलिए शादी नहीं कर सकती थीं. जब श्वेता पहली बार ‘क्रांति’ से मिली थीं, तो क्रांति की संचालिका रॉबिन चौरसिया से उन्होंने कहा था कि मैं पढ़ना चाहती हूं और चार्टर्ड एकाउंटेंट बनना चाहती हूं. श्वेता ने एक साल के लिए अपनी पढ़ाई रोक कर नेपाल, झारखंड, बेंगलुरू और गोवा में युवतियों को संबोधित किया. उनसे लैंगिकता और स्वास्थ्य के संबंध में बात करती थीं. श्वेता कहती हैं, मैं उनसे पूछती थी कि वे इन चीजों का क्या अर्थ समझती हैं.

श्वेता आज के दौर के कई युवाओं से बेहतर अंगरेजी बोलने में सक्षम हैं, पर वे हिंदी में बात करने में खुद को बहुत सहज मानती हैं. बचपन में अभद्रता के माहौल में पली-बढ़ी श्वेता ने उन दिनों में अपने नाना के अनाथ आश्रम को ही अपनी दुनिया बना ली थी. वे बताती हैं, मेरी मां ने मुङो स्कूल से कभी भी दूर नहीं रखा, पर उस समय और बच्चों की तरह श्वेता को भी पढ़ने में मन नहीं लगता था, पूरे दिन टीवी देखती थीं और घर का कोई भी काम नहीं करती थीं. ऐसा करने पर श्वेता की मां उन्हें खूब डांट लगाती थीं. तब उनके साथ रहनेवाली सेक्स वर्कर राधा ने उन्हें समझाया कि न पढ़ने से उनकी जिंदगी का अंत कहां और कैसे होगा. उस दिन से श्वेता ने कड़ी मेहनत शुरू की. बारहवीं में आने के बाद भी श्वेता किसी को अपना दोस्त नहीं बना सकीं, क्योंकि उनके दिमाग में मां के साथ रहनेवाले शख्स की अभद्र भाषा, बचपन के साथियों द्वारा उनके नाम को लेकर मजाक बनाना और पहले के घावों ने उसे आगे भी दोस्ती करने से रोका. पासपोर्ट बनवाने के समय जब श्वेता ने अपने पड़ोसियों से उसमें रिफरेंस देने के लिए कहा, तो सभी ने मना कर दिया. श्वेता शुरू से ही अमेरिका जाकर पढ़ना चाहती थीं.

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