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फिर पाठकों के द्वार
– हरिवंश – लोकसभा के आमचुनाव संपन्न हुए. इसलिए फिर पाठकों की अदालत में या उनके द्वार पर. चुनावों में पत्रकारिता ने क्या खोया, क्या पाया, देश में इस पर खूब चर्चा हो रही है. स्तब्ध करनेवाले तथ्य आ रहे हैं.पर हम प्रभात खबर की चर्चा तक ही सीमित रहेंगे. चुनाव के दिनों में ही […]
– हरिवंश –
लोकसभा के आमचुनाव संपन्न हुए. इसलिए फिर पाठकों की अदालत में या उनके द्वार पर. चुनावों में पत्रकारिता ने क्या खोया, क्या पाया, देश में इस पर खूब चर्चा हो रही है. स्तब्ध करनेवाले तथ्य आ रहे हैं.पर हम प्रभात खबर की चर्चा तक ही सीमित रहेंगे. चुनाव के दिनों में ही पाठक भाई मो शकील (जोन्हा) ने संदेश भेजा, ‘आपने कहा हम विज्ञापन को खबरों की तरह नहीं छापेंगे, फिर आपने ‘चेंज इंडिया’ चलाया. आज आपने वादाखिलाफी की. प्रभात खबर नहीं बंधु का अखबार हो गया’.
(नोट – उल्लेखनीय है कि बंधु तिर्की झारखंड में निर्दलीय मंत्री थे. वह चुनाव भी नहीं लड़ रहे थे. पर अपनी उपलब्धियों का विज्ञापन छपवाया था.)
इस विज्ञापन परिशिष्ट पर बड़े हरफों में लिखा था, ‘प्रभात खबर मार्केटिंग मीडिया इनिशियेटिव’. हर पेज पर. आमतौर पर अखबारों में छोटे प्वांइट में इस तरह के मार्केटिंग इंपैक्ट के विज्ञापन छपते हैं.
हर पेज पर नहीं छपते. कहीं एक जगह न दिखनेवाले प्वाइंट में छपते हैं. पर प्रभात खबर ने बड़े प्वाइंट में इन्हें छापा. इसके बाद यह प्रतिक्रिया मिली. जमशेदपुर से भी चुनाव के दौरान एक पाठक का नाराजगी भरा पत्र मिला, जो हूबहू पहले पेज पर जमशेदपुर संस्करण में छपा.
इस बार भी चुनाव के आरंभ में प्रभात खबर ने पुन: आचारसंहिता प्रकाशित की (देखें प्रभात खबर 15 मार्च 2009, बैक पेज). पिछले 20 वर्षों से हर चुनाव के पहले प्रभात खबर संवाददाताओं के लिए अखबार के माध्यम से खुला निर्देश जारी करता रहा है, ताकि अखबार की कार्यप्रणाली महज काम करनेवालों के बीच तक ही सीमित न रहे, बल्कि पाठक भी जानें. इस बार भी हमने सात निर्देश जारी किये. अखबार में छाप कर. इसके कुछ बिंदु पाठकों को पुन: स्मरण कराना चाहेंगे.
– चुनाव में कोई भी संवाददाता या प्रतिनिधि किसी दल या प्रत्याशी के पक्ष – विपक्ष में नहीं, बल्कि तथ्यात्मक तरीके से रिपोर्टिंग और विश्लेषण सुनिश्चित करें.
– किसी प्रत्याशी या दल के हारने या जीतने की आधारहीन बात के बजाय, पूरी सावधानी से निष्पक्षता की गारंटी सुनिश्चित करें, ताकि पाठकों और लोगों के बीच हमारी विश्वसनीयता कायम रहे.
– अनावश्यक बढ़ा-चढ़ा कर या चरित्रहनन की चीजों से परहेज करें. झूठी, तथ्यहीन व अफवाह फैलानेवाली खबरें किसी भी हाल में न भेजें. चुनाव के दौरान ऐसी चीजें बेहद संवेदनशील होती हैं. कवरेज के दौरान आरोप-प्रत्यारोप के संदर्भ में संबंधित का पक्ष अवश्य प्रमुखता से लें.
– हमारे लिए सभी प्रत्याशी महत्वपूर्ण हैं. इसलिए सबका परिचय और तसवीर हम लोग छापेंगे.
– अपने क्षेत्र विशेष की बदहाली की सूचनाओं, उभर रही विकास की मांगों व जनमुद्दों पर सबसे ज्यादा फोकस करें. जनसरोकार के इन विषयों से ही जनपक्षधर पत्रकारिता की बुनियाद को मजबूत करें……..
इस तरह अन्य निर्देश थे. पिछले दो-तीन दशकों से ऐसा करनेवाला प्रभात खबर शायद देश में पहला व अकेला अखबार है.
हमने यह क्यों किया?
आमतौर पर चुनावों में एक दूसरे पर कीचड़ उछालने की प्रतियोगिता चलती है. एक पक्ष से मिल कर दूसरे पक्ष को टारगेट किया जाता है, क्योंकि हमारे राजनीतिक दलों या समाज में स्वस्थ्य मापदंड या आचारसंहिता तो है नहीं.
आमतौर से जो अखबार सत्ता में बैठे लोगों की या सत्ताधारी दल की आरती उतारते हैं, पूजा करते है, वे चुनावों में निराधार, सनसनीखेज चीजें देकर उन पर ही हमला बोलते हैं. इसके पीछे के उद्देश्य स्पष्ट हैं. हम इस चक्कर में नहीं रहना चाहते. क्यों? इसलिए कि जब ऐसे लोग सत्ता में होते हैं, इनकी कारगुजारियों को बेबाक ढंग से सामने लाना, बिना निजी राग द्वेष के तथ्य छापना, यह हम करते हैं.
पर चुनाव में हमारी अपनी मर्यादा और आचारसंहिता है. हम किसी के खिलाफ किसी के इस्तेमाल होने की पत्रकारिता नहीं करते. इसलिए हम इस आचारसंहिता का पालन करते हैं. इन चुनावों में भी हमने यही किया. चुनावों में झारखंड के कई ताकतवर राजनेता प्रभात खबर से पता कराते रहे कि हमारे खिलाफ कोई नया अभियान तो नहीं चलेगा या पुरानी चीजें तो नहीं उठायी जायेंगी. हमने सबसे स्पष्ट कहा था, जब आप सत्ता में थे, आपने गड़बड़ियां की, हम इन्हें सामने लाये. यह सच कहने की कीमत भी चुकायी.
पर चुनावों में हम किसी के पक्ष-विपक्ष में नहीं हैं, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है. जनता की अदालत में आपका मामला है. जनता आपको चुननेवाली है. जब जरूरत पड़ी, जनता को हमने सही बातें बता दीं. अब जनता जाने और आप जानें. हमने इस अपने पूर्व घोषित आचारसंहिता का पूर्णत: पालन किया. पुन: 26 मार्च के अखबार में हमने लंबा लेख छापा, ‘खबरों का धंधा’. इसमें दो बॉक्स छपे थे.
अब ऊपर लिखे भाई शकील के आरोप के संदर्भ में. आप कृपया पता करें, देश में कितने अखबार इस तरह की पारदर्शी नीति पर चलते हैं या चल रहे हैं. दो-दो बार अपनी नीतियां स्पष्ट की. सार्वजनिक रूप से. लिख कर बताया कि जहां स्पांसर्ड, प्रायोजित, पीके मार्केटिंग मीडिया इनिशियेटिव लिखा होगा, वे विज्ञापन होंगे. खबर की शक्ल में हम विज्ञापन नहीं छापेंगे (देखें प्रभात खबर, 26-03-09).
यह लिख कर घोषित करने, छापने के बाद, पाठकों को स्पष्ट करने के बाद बंधु जी का वह प्रचार छपा, जिसका उल्लेख शकील जी ने किया है. पूरे चुनाव में हम इसी रास्ते चले.
यह लिख कर बताना कि जहां ये चीजें छपीं होंगी, वह विज्ञापन होगा, देश में कितने अखबारों ने अब-तक किया है. हाल में या पहले? आपके आसपास कितने लोगों ने किया है? पहले लिख करके पाठकों को बता देना. खबरों और विज्ञापन के बीच के फर्क को विस्तार से लिख कर स्पष्ट करना. यह हमने किया. हां, अगर आपका सवाल यह है कि विज्ञापन ही क्यों छापते हैं, तो यह प्रसंग अलग है.
इसमें मैं आपकी भावना से सहमत हूं कि विज्ञापन के बिना अखबार चल पाते, तो वह सर्वश्रेष्ठ स्थिति होती. पर यह संभव नहीं है, क्योंकि अखबारों की आमद का सिर्फ और सिर्फ एक ही स्रोत है, विज्ञापन. एक अखबार जो आपके हाथ में जाता है, उसकी न्यूनतम लागत कीमत है, 10 रुपये के आसपास. कीमत है, चार रुपये. पर वितरण कमीशन वगैरह में आधे से अधिक हिस्सा निकल जाता है. इस तरह एक अखबार पर शुद्ध रूप से आठ रूपये का घाटा है. फिर भी राजनीतिक विज्ञापन छापने में पहल कर प्रभात खबर ने सार्वजनिक घोषणा करके अपनी आचारसंहिता बनायी.
पर मूल सवाल यह नहीं है, भाई शकील जी. असल प्रसंग है यह जानना इन चुनावों में पत्रकारिता ने क्या किया? जिन अखबारों के पास बड़ी पूंजी है, शेयर मार्केट के पैसे हैं, विदेशी पूंजी (एफडीआइ) है, वहां क्या हुआ है, यह पता करना चाहिए. इन चुनावों में पत्रकारिता को लेकर मूल मुद्दा क्या था? यह भी प्रभात खबर के लंबे लेख ‘खबरों का धंधा’ में छपा. 26.3.09 को चुनाव प्रचार में दम आने के पहले. इस लेख के आरंभिक अंश को पुन: हम उद्धृत करते हैं.
प्रभात खबर (झारखंड) के एक स्थानीय संपादक के पास एक प्रतिनिधि आये. इन्होंने पहले सूचना दी कि अखबारों ने राजनीतिक दलों या चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति, बयान या प्रेस कांफ्रेंस के लिए रेट तय किये हैं. मसलन अगर प्रत्याशी को इंटरव्यू कराना है, तो 25000 रुपये देना होगा. अपने पक्ष में विश्लेषण करवाना है, तो फी अलग है.
प्रत्याशी के साथ चुनावी दौरे पर जाना है, तो इसका शुल्क अलग है. ये चीजें छपेंगीं, खबरों के शक्ल, रूप, आकार या फार्मेट में. पर इनका भुगतान विज्ञापन की तरह करना होगा. यह अंडरहैंड डीलिंग होगी. फिर पूछा कि आपके अखबार में इन चीजों के लिए क्या रेट तय किये हैं?
प्रभात खबर के उक्त स्थानीय संपादक ने कहा, हमें अन्य अखबारों के बारे में नहीं मालूम. हम दूसरों के बारे में न कुछ जानते हैं. न कुछ बता सकने की स्थिति में हैं. पर प्रभात खबर ने 15.03.09 को अंतिम पेज पर चुनाव कवरेज की अपनी आचार संहिता छापी थी. प्रभात खबर लगभग हर चुनाव में यह करता रहा है. वह आचारसंहिता स्पष्ट है कि चुनावों का कवरेज किस तरह प्रभात खबर में छपेगा.
फिर दोबारा लंबा लेख लिख कर प्रभात खबर ने स्पष्ट किया कि इसके यहां चुनाव कवरेज कैसे छपेगा? साफ व घोषित नीति.इन चुनावों में बड़ी चीजें हुईं हैं, जिसने पत्रकारिता की नींव ध्वस्त कर दी है. खबरों, इंटरव्यू, प्रेस रिलीज, रिपोतार्ज, विश्लेषण वगैरह यानी पत्रकारिता के कंटेंट पर सौदेबाजी हुई है. कंटेट के पैकेज बेचे गये हैं. प्रभात खबर ने इसलिए पहले घोषणा कर दी थी कि हमारे कंटेंट पर कोई शिकायत मिले, तो हमें बताएं.
खुद पहल कर हमने अपनी आचारसंहिता बनायी. जिस प्रत्याशी ने विज्ञापन दिया या नहीं दिया, इसकी हैसियत और महत्व के अनुसार इसकी खबरें छपीं. आप पता करें. एके राय जैसे प्रत्याशी है. देश में जो गिने चुने धवल चरित्र के प्रतिबद्ध राजनीति करनेवाले ईमानदार राजनेता बचे हैं, इनमें से हैं, एके राय. वह धनबाद से चुनाव में खड़े थे. वह गरीबों का नेतृत्व करते हैं. कई बार सांसद- विधायक रह चुके हैं.
पता करें कि इन पर कितनी रिपोर्ट कहां छपी? और नहीं छपी तो क्यों? इसी तरह बिहार से लेकर झारखंड तक जो भी महत्वपूर्ण प्रत्याशी चुनाव में खड़े हए, हमने कोशिश की कि इनके महत्व और हैसियत के अनुसार जगह और महत्व मिले. इस तरह प्रभात खबर ने अपनी संपादकीय मर्यादा और आचारसंहिता का पालन किया. खबरों, इंटरव्यू, प्रेस रिलीज, रिपोतार्ज, विश्लेषण यानी हमने पत्रकारिता की सौदेबाजी नहीं की.
अब नेताओं का क्या कहेंगे? राहुल गांधी की रामगढ़ और लोहरदगा में अच्छी सभा हुई. प्रभात खबर ने अच्छी तरह छापा, तो इस दिन इसे कांग्रेस समर्थक होने का आरोप लगा. एक्सएलआरआइ जैसी प्रतिष्ठित संस्था से जुड़े प्रो गौरववल्लभ और इनकी टीम से प्रभात खबर ने झारखंड चुनाव सर्वे करवाया.
इसका रिजल्ट छपा. एक पाठक ने फोन कर कहा, आपका झुकाव भाजपा की ओर है? जमशेदपुर में एक प्रतिष्ठित मुसलिम वर्ग ने कहा, हम फलां समूह को समर्थन देंगे. यह खबर जमशेदपुर संस्करण में छपी, तो किसी ने कहा, झामुमो समर्थक हो गये.
इसी तरह मुसलमानों के एक प्रभावशाली तबके के प्रवक्ता ने चाईबासा में कांग्रेस को वोट देने की अपील की. यह खबर छपी, तो वहां चुनाव लड़ रहे एक पूर्व मुख्यमंत्री के खेमे ने कहा, यह हमें हराने की साजिश है. ये कुछ बानगियां हैं. मोटा तथ्य और सच यह है कि प्रभात खबर न किसी व्यक्ति, दल का पक्षधर है, न विरोधी. प्रभात खबर की प्रतिबद्धता समाज के प्रति है. भ्रष्टाचार के खिलाफ है.
अच्छा काम करनेवालों के साथ है. बेलाग व साफ तरीके से खबर देने की है. साफ पत्रकारिता ही नहीं, इसी अनुरूप साफ-सुथरे ढंग से विज्ञापन लाने की भी है. पर जहां लोकहित में बिजनेस की कुरबानी तय करनी पड़ी, वह भी अखबार ने किया है. सरकारों से लेकर अनेक निजी समूहों ने इसके लिए प्रभात खबर को भारी नुकसान पहुंचाया है. इतना ही नहीं, चापलूसी करनेवालों को काफी मदद भी की है.
कभी इस पर भी हम पाठकों को बतायेंगे. फिर यह याद दिला दें कि हम पैसेवाले न्यूजपेपर हाउस नहीं हैं. संकट में रहते हैं, पर अपने घोषित वसूलों पर चलते हैं. सिर्फ आप पाठकों के बल. प्रभात खबर इसी परंपरा पर अब तक चला, आगे भी चलेगा. हां, पाठकों की यह सजगता अच्छी लगी. यह सजगता और बढ़े.
इसके लिए एक सुझाव. जगह-जगह रीडर्स काउंसिल (पाठक समूह) बनाइए. पता करिए कि अखबार या मीडिया की दुनिया में क्या हो रहा है? इन पर सवाल उठाइए. समाज को जागरूक बनाइए. प्रभात खबर आपके साथ खड़ा रहेगा. आपको झलक दे दें. कुछ वर्षों पूर्व यूपी में चुनाव हुए, जब मायावती चुनी गयीं, तब शरद यादव (जनता दल यू) ने खुलेआम सवाल उठाया था कि अखबारों ने चुनाव में कैसे पैसे देनेवालों के बयान, खबरें व रिपोर्टें छापीं. कैसे राजनीतिक दलों को ब्लैकमेल किया. संभवतया वह प्रेस काउंसिल भी गये.
इस बार भी कुछेक राज्यों में कुछ नेताओं ने यह साहस किया है. इस बार के चुनाव में एक लोकप्रिय टीवी चैनल पर बहस के दौरान भाकपा के युवा नेता अतुल अंजान ने यह सवाल उठा दिया. उन्होंने अखबारों के नाम भी लिये. आज की राजनीति ने साहस खो दिया है, वरना साहसी और ईमानदार नेता होते, तो अखबारवाले उन्हें खबरों में ऐसा ब्लैकमेल करते?
यह भी उल्लेख कर दें कि टीवी चैनलों ने जो कुछ किया है, वह तो कल्पना से परे है. अब आप यकीन नहीं कर सकते कि कौन सी खबर सही है, कौन सी गलत? यह भी कि भविष्य में जो पैसा देने की ताकत रखते हैं, खरीदने की क्षमता रखते हैं, इनकी ही खबरें अब दिखाई जायेंगी या छपेंगी.
इन चुनावों में क्या हुआ, इसकी एक बानगी. एक राज्य में एक प्रत्याशी की चुनावी सभा हुई. देश के एक महत्वपूर्ण समाचार पत्र ने अंदर के पेजों पर एक छोटी खबर के रूप में इसे छापा. तीन दिनों बाद यही खबर पुन: पहले पेज पर बड़ी सुर्खियों में, बहुत बड़ी छपी. यह खबर उसी मीटिंग की थी, जिसकी खबर उसी अखबार में तीन दिन पहले छपी थी.
वहां के मुख्यमंत्री की उक्त क्षेत्र के चुनाव में दिलचस्पी थी. उन्होंने उक्त अखबार के मालिक को फोन किया. पूछा कि पहले दिन यह खबर बहुत छोटी छपी थी. तीन दिनों बाद वही घटना, इतनी बड़ी? पहली खबर में भीड़ का उल्लेख नहीं, इस खबर में तीन लाख से अधिक भीड़ की बात? सच क्या है. मालिक ने जवाब दिया, पता कर बताता हूं. पता चला. फिर उन्होंने सूचना दी, कि पहले दिन खबर छपी थी, वह सच थी. छोटी थी. अंदर थी. दूसरे दिन प्रीमियम विज्ञापन का भुगतान किया, तो उसी खबर को पुन: तड़क-भड़क के साथ, अतिरंजित तथ्यों के साथ छापा गया. पहले पेज पर टॉप बॉक्स के रूप में.
मालिक ने बताया कि वह खबर नहीं, विज्ञापन था. फिर उक्त मुख्यमंत्री ने पूछा कि अखबार में विज्ञापन कैसे खबरों के रूप में छपते हैं? पहले पेज पर टॉप बाक्स खबर के रूप में. अखबार के लोग इसका कोई जवाब नहीं दे सके. यह जवाब जनता को ढ़ूंढ़ना है. पाठकों को ढूंढ़ना है. पाठक, जनता और ईमानदार नेता, इस काम में आगे बढ़ें, प्रभात खबर उनके साथ खड़ा है और रहेगा.
दिनांक : 11.05.2009
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