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मंगल पर जीवन की उम्मीद!

पृथ्वी से इतर अन्य ग्रहों पर इनसान को बसाने का ख्वाब दशकों पुराना है. वैज्ञानिकों की यह मान्यता रही है कि अगर सौर मंडल में किसी एक ग्रह पर जीवन की संभावना है, तो वह है मंगल. यही कारण है कि मंगल ग्रह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ समेत दूसरे देशों के वैज्ञानिकों की जिज्ञासाओं का […]

पृथ्वी से इतर अन्य ग्रहों पर इनसान को बसाने का ख्वाब दशकों पुराना है. वैज्ञानिकों की यह मान्यता रही है कि अगर सौर मंडल में किसी एक ग्रह पर जीवन की संभावना है, तो वह है मंगल. यही कारण है कि मंगल ग्रह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ समेत दूसरे देशों के वैज्ञानिकों की जिज्ञासाओं का भी केंद्र रहा है. पिछले दिनों मंगल की धरती पर कार्यरत ‘नासा’ के ‘क्यूरियोसिटी रोवर’ ने ग्रह की सतह पर पानी की मौजूदगी के संकेत दिये हैं. इसे मंगल पर मानवयुक्त मिशन भेजने के हिसाब से एक क्रांतिकारी खोज माना जा रहा है. क्यूरियोसिटी रोवर द्वारा मंगल पर पानी की खोज और वहां जारी दूसरे अनुसंधानों के बारे में विस्तार से बता रहा है आज का नॉलेज..

-नॉलेज डेस्क नयी दिल्ली-

दुनियाभर के वैज्ञानिक अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं की तलाश में जुटे हैं. हाल ही में, मंगल ग्रह पर चहलकदमी कर रहे अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन ‘नासा’ के ‘क्यूरियोसिटी’ रोवर ने इस ग्रह से कुछ आंकड़े भेजे हैं. इन आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि वहां पानी मौजूद है. इस क्यूरियोसिटी रोवर द्वारा मिट्टी का सैंपल चेक किये जाने के दौरान यह पता चला कि इस ग्रह की सतह में मौजूद महीन पदार्थो में तकरीबन दो फीसदी पानी की मात्र है.

पानी के अलावा भी तत्व

सैंपल का विश्लेषण करने पर उसमें प्रभावी मात्र में कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और सल्फर की मौजूदगी पायी गयी है. मालूम हो कि मार्स रोवर क्यूरियोसिटी छह अगस्त, 2012 को मंगल ग्रह की सतह पर उतरा था. इस मिशन का मकसद मंगल ग्रह पर किसी भी वक्त जीवन की मौजूदगी की संभावनाओं को तलाशना था. क्यूरियोसिटी तब से अब तक मंगल ग्रह के बारे में कई नयी जानकारियां भेजता रहा है. यह पत्थरों और मिट्टी के सैंपल को इकट्ठा करने और उनका विश्लेषण करने में पूरी तरह सक्षम है.

क्यूरियोसिटी रोवर ने मंगल से संबंधित कई चीजों की जांच-पड़ताल की है. लंबे समय से जारी इस जांच-पड़ताल ने मंगल की धरती और वहां के वायुमंडल के बारे में व्यापक जानकारियां मुहैया करायी है. ढीले चट्टानों, रेत और धूलकणों के अध्ययन ने मंगल पर होनेवाली स्थानीय और ग्रहीय प्रक्रियाओं के बारे में नयी समझ पैदा की है. अगस्त, 2012 में मंगल पर पहुंचने के पहले चार माह के दौरान इसके द्वारा भेजे गये आंकड़ों का व्यापक विश्लेषण किया गया था. मंगल की जिस सतह पर यह यान उतरा था, अब वहां की मिट्टी में पानी के अणुओं की मौजूदगी ने वैज्ञानिकों को रोमांचित कर दिया है. पानी के इन अणुओं की मौजूदगी की मात्र तकरीबन दो फीसदी आंकी गयी है.

वैश्विक नतीजा

मंगल की धरती के विेषण से निकले नतीजे पूरे मंगल के के लिए सही साबित हो सकते हैं, क्योंकि यह पदार्थ लाल ग्रह यानी मंगल के पूरे दायरे में फैला हुआ है. यह यान जिस जगह उतरा था, वहां आसपास की जमीन में गड्ढे ज्यादा हैं. यहां पास ही में पांच किलोमीटर की चढ़ाईवाला एक पहाड़ भी पाया गया है, जिससे वैज्ञानिकों को इस ग्रह के इतिहास को समझने में मदद मिल सकती है.

एक घन फुट मिट्टी में दो बोतल पानी

मंगल की मिट्टी के प्रत्येक क्यूबिक यानी घन फुट दायरे में तकरीबन दो पिंट (द्रव्य को मापने की एक ब्रिटिश प्रणाली) जल की मौजूदगी है. यद्यपि, ये अणु मुक्त रूप से नहीं पाये जाते हैं, लेकिन मिट्टी में मौजूद खनिज पदार्थो में तो यह है ही. नासा के वैज्ञानिकों की ओर से ‘साइंस’ जर्नल में इस संबंध में पांच दस्तावेजों की श्रृंखला प्रकाशित की गयी है. इसमें बताया गया है कि क्यूरियोसिटी ने मंगल पर पहुंचने के पहले चार महीनों में विविध वैज्ञानिक प्रयोगों की जानकारी दी. रेनसेलियर पॉलिटेकनिक इंस्टीट्यूट के डीन ऑफ साइंस और इस शोध से संबंधित प्रमुख विज्ञानपत्र जारी करनेवाले लौरी लेशिन ने लिखा है,’हम यह मानते थे कि मंगल ग्रह एक सूखी जगह है, इसलिए इसकी सतह पर पानी का पाया जाना वाकई में अचंभित करनेवाली खबर है. यदि आप एक क्यूबिक फु ट धूलकणों को गरम करेंगे, तो आपको वहां तकरीबन दो बोतल पानी हासिल हो सकता है.’

मंगल पर भेजे गये रोवर के उपकरणों ने नमूनों का विश्लेषण करने के बाद जो रिपोर्ट भेजी है, उससे कई अन्य तथ्यों की भी पुष्टि हुई है. लेशिन लिखते हैं,’हमने मिट्टी (मौजूद धूलकणों) को 835 सेंटीग्रेड तक गरम किया और सभी वाष्पशील तत्वों की माप की. हमने देखा कि ऐसा होने पर पानी समेत अन्य कई चीजें उसमें से बाहर छोड़ी गयी हैं.’ इतना ही नहीं, मिट्टी को गरम करने पर उसमें से सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के अलावा कई खनिज विघटित हुए.

जीवन की संभावनाएं

क्यूरियोसिटी का एक मुख्य मिशन इस बात की जांच-पड़ताल करना है कि क्या मंगल पर जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं? मंगल को एक ऐसी जगह माना जाता है, जहां शायद पहले कभी जीवन का अस्तित्व था. लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज के ग्रह वैज्ञानिक पीटर ग्रीनडोर्ड (जो क्यूरियोसिटी के आंकड़ों के विश्लेषण में शामिल नहीं हैं) कहते हैं कि वहां मौजूद चट्टानों और खनिजों की प्रक्रियाओं का एक पूरा रिकॉर्ड है, जिससे इन बातों का पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है कि वहां का पर्यावरण जीवन के योग्य हो सकता है या नहीं!

किसी समय मंगल ग्रह की सतह पर बड़ी मात्र में बहते हुए पानी के होने का अनुमान लगया गया था. लेकिन, फिलहाल ऐसा कुछ भी नहीं है. अब तक यहां पानी की मौजूदगी के जो भी प्रत्यक्ष स्नेत पाये गये हैं, वे सभी इस ग्रह के ध्रुवों पर बर्फ के रूप में ही हैं.

द्वीपों की तरह चट्टान

इस मिट्टी की एक्स-रे विवर्तन तसवीरों समेत अन्य दस्तावेजों में दर्शाया गया है कि मंगल की सतह पर खनिजों की क्रिस्टलीय संरचना है. यहां की ज्वालामुखी चट्टानों के विश्लेषण को ‘जैक एम’ (जो नासा के एक इंजीनियर हैं) नाम दिया गया है. विश्लेषण में बताया गया है कि इस प्रकार के चट्टान, धरती पर पाये जानेवाले ‘म्यूगियाराइट’ की तरह हैं, जो समुद्री द्वीपों और दरार वाले क्षेत्रों में खास तौर से पाया जाता है.

लेशिन के मुताबिक इन आंकड़ों ने दुनिया में हलचल पैदा की है. भविष्य में मंगल से आनेवाले आंकड़ों की गंभीरता इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि इससे वहां पर इनसानों को बसाने की योजना को बल मिलेगा. अब तक के विभिन्न प्रयोगों में पानी की मौजूदगी से जीवन की संभावना को बल जरूर मिला है, लेकिन मंगल की सतह में ‘परक्लोरेट’ नामक एक प्रकार का रसायन भी पाया गया है, जो इनसान के लिए जहरीला हो सकता है. हालांकि, मिट्टी में इसका स्तर महज 0.5 फीसदी ही पाया गया है, लेकिन यह थॉयरायड की कार्यप्रणाली में व्यवधान पैदा करता है. इस संबंध में अभी व्यापक शोध करना होगा कि यदि इनसान मंगल ग्रह पर जायेंगे, तो वहां के धूलकणों का शरीर पर क्या प्रभाव हो सकता है और वे हमारे जीवन को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं! इसलिए जब तक इनसान खुद वहां नहीं जायेगा और प्रत्यक्षत: वहां जाकर शोध कार्य नहीं करेगा, तब तक क्यूरियोसिटी रोवर के आंकड़ों के आधार पर इस बारे में कुछ भी जान पाना मुश्किल जरूर है.

(स्रोत: नासा और द गाजिर्यन)

मंगल पर बहती हुई नदियां!

क्यूरियोसिटी द्वारा मंगल ग्रह की सतह पर कैल्शियम सल्फेट की खोज से अतीत में वहां नम क्षेत्र होने की पुष्टि हुई है. सतह पर मौजूद चट्टान में दरार इसकी पुष्टि करते हैं. माना जा रहा है कि इन दरारों में जो पानी है, उन्हीं के माध्यम से इसके भीतर पानी गया होगा और खनिज पदार्थो का निर्माण हुआ होगा. यह वहां पानी की अन्य तरह की क्रियाशीलता का भी एक सूचक हो सकता है और इससे वहां नदियों का वजूद होने की उम्मीद की जा सकती है.

जब यह रोवर मंगल की धरती पर पहुंचा, उस समय वहां एक छोटी सी अवसादीय संचरना पायी गयी थी. इसे ‘येलोनाइफ बे’ के तौर पर जाना जाता है. उस स्थान पर तलछट के नीचे की ओर ढलान वाले स्तर भी पाये गये थे. जिस तरह की भौगोलिक परिस्थितियां और स्थलाकृतियां मंगल पर पायी गयी हैं, पृथ्वी पर वैसी स्थलाकृतियां आम तौर पर नदियों द्वारा निर्मित होती हैं. तीव्र प्रवाहित जल से नदी के तल में ‘टिब्बे’ बनते हैं, जो पानी की धारा के साथ धीरे-धीरे एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर प्रवाहित होते हैं. क्यूरियोसिटी ने कुछ इसी तरह की प्रक्रिया के अवशेषों को वहां पाया है.

क्यूरियोसिटी की टीम के एक सदस्य और इंपीरियल कॉलेज, लंदन से जुड़े संजीव गुप्ता ने अपने शोध में बताया है, ‘वहां पाये गये कंकड़ और रुखड़े कणों के दाने कुछ ज्यादा ही बड़े आकार के हैं. माना जा रहा है कि ये सभी हवा में अपने आप उड़ कर इधर-उधर नहीं जा सकते. इसलिए इस बात की उम्मीद बढ़ गयी है कि ये टिब्बे पानी से ही बने होंगे. किसी भी शोध के निष्कर्ष को समझने के लिए हम उसे पृथ्वी पर मौजूद चीजों और उनकी संरचना तथा प्रक्रिया से जोड़ते हैं. उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ये सभी वहां जल के सतत प्रवाह और टिब्बों के इधर से उधर जाने की कहानी की कहानी हो सकते हैं.’

तीव्र चढ़ाई की ओर क्यूरियोसिटी

क्यूरियोसिटी अब अपनी यात्र के बेहद अहम चरण में है. अब वह एक पहाड़ (माउंट शार्प) की चढ़ाई की तैयारी में जुटा है. इस पहाड़ की ऊंचाई मंगल पर मौजूद गेल क्रे टर के केंद्र से 3.4 मील (5.5 किलोमीटर) बतायी गयी है. उम्मीद है कि अगले वर्ष मई या जून तक यह पहाड़ी की पादस्थली तक पहुंच जायेगा. इसके बाद ही इसकी पहाड़ी पर चढ़ने की यात्रा की शुरुआत हो पायेगी.

कौन जानता है कि वहां क्या है? शोध से जुड़े संजीव गुप्ता को उम्मीद है कि वे प्राचीन स्थलाकृतियों को खोज पायेंगे और यह पता लग सकेगा कि पर्यावरण में परिवर्तन किस तरह से होता है! इसके अलावा, यह जानकारी भी मिलेगी कि पहाड़ी के आसपास किस तरह की चट्टानें हैं और उनमें क्या-क्या पाया जाता है. यह भी जाना जा सकेगा कि ये चट्टानें सल्फेट लवणों में कैसे परिवर्तित हुई हैं. इन चट्टानों के निर्माण की प्रक्रिया को भी समझने में सहायता मिलेगी. साथ में यह भी पता चल सकेगा कि क्या झील में किसी प्रकार का क्ले मिनरल था?

जब से इस यान को छोड़ा गया है, तभी से माउंट शार्प तक पहुंचना इस क्यूरियोसिटी मिशन का प्रमुख लक्ष्य है. मिशन से जुड़े वैज्ञानिक इस बारे में काफी उत्सुक हैं कि रोवर वहां क्या ढूंढ़ पायेगा.

(स्रोत: स्पेस डॉट कॉम)

भारत का मार्स आर्बिटर मिशन

भारत के महत्वाकांक्षी ‘मंगल मिशन’ की लॉन्चिंग 28 अक्तूबर को होने की संभावना है. हाल ही में विशेषज्ञों की राष्ट्रीय समिति ने वैज्ञानिकों से व्यापक विमर्श के बाद इसे हरी झंडी दिखा दी है. 450 करोड़ रुपये की लागतवाली इस महत्वाकांक्षी योजना का मुख्य उद्देश्य मंगल ग्रह की कक्षा में उपग्रह भेजने की भारत की प्रौद्योगिकी क्षमता का प्रदर्शन करना, साथ में मंगल ग्रह से संबंधित अर्थपूर्ण प्रयोगों को अंजाम देना है. इसके उद्देश्यों में मंगल पर जीवन के संकेतों की खोज करना, वहां के वातावरण से जुड़े प्रयोग करना तथा मंगल ग्रह की तसवीरें लेना शामिल हैं. मिशन से जुड़े पैनल में इसरो के पूर्व अध्यक्ष यूआर राव समेत प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक आर नरसिम्हा और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) बेंगलुरु के प्रोफेसर शामिल हैं. मार्स ऑरबाइटर मिशन (एमओएम) स्पेसक्राफ्ट की कुल लागत 150 करोड़ है. एमओएम को श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से पीएसएलवी लांच व्हीकल (पीएसएलवी-सी25) द्वारा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जायेगा.

अगर मौसम ठीक रहा, तो भारत के मंगल मिशन को 28 अक्तूबर को लॉन्च किया जा सकता है. पीएसएलवी सी25 के पहले चरण को जोड़ा जा चुका है और रॉकेट 10 अक्तूबर तक उपग्रह से जोड़े जाने के लिए तैयार है. उपग्रह पर तकरीब 15 किलोग्राम का पेलोड समन्वित वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. इसके साथ पांच उपकरण जुड़े होंगे, जो मंगल ग्रह के सतह, वायुमंडल और खनिज संबंधी अध्ययन करेंगे. पृथ्वी की कक्षा को छोड़ने के बाद अंतरिक्ष यान अपने प्रणोदक प्रणाली का उपयोग करके करीब 10 महीने तक अंतरिक्ष में रहेगा और मंगल ग्रह के दायरे में सितंबर 2014 में प्रवेश करेगा. इसके बाद यह मंगल ग्रह के दीर्घवृत्ताकार कक्ष में प्रवेश करेगा और मंगल ग्रह से जुड़े रहस्यों का पता लगायेगा.

मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) का मुख्य लक्ष्य यह पता लगाना है कि इस लाल ग्रह पर मीथेन उपलब्ध है या नहीं. मालूम हो कि मीथेन को इनसान की जिंदगी से जुड़ा महत्वपूर्ण रसायन माना जाता है. भारत के मंगल अभियान में अंतरिक्ष यान में पांच पेलोड जुड़े हैं. इसमें से एक मीथेन सेंसर शामिल हैं. यह मंगल ग्रह पर मीथेन की मौजूदगी का पता लगायेगा. इसके अलावा, यह अन्य कई प्रकार के शोधकार्यो को भी अंजाम देगा.

मंगल पर झील?

मंगल पर पहुंचे क्यूरियोसिटी रोवर ने चट्टानों की खुदाई की है. शोधकर्ताओं ने इसके भीतर खनिज पदार्थो के पाये जाने की पुष्टि की है. हालांकि, यह जानकारी परिवर्तनशील है, लेकिन पाया गया पानी तटस्थ और सौम्य है. मानव को वहां बसाने के मामले में यह एक बड़ी जानकारी साबित हो सकती है. हालांकि, वर्ष 2004 में भी मंगल पर पानी की मौजूदगी का पता चला था, लेकिन इसमें अत्यधिक मात्र में अम्लता पायी गयी थी. ट्यूस्कॉन, एरिज में प्लेनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट के क्यूरियोसिटी साइंस टीम के सदस्य ऐलीन यिंग्स्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हमने मडस्टोन की खोज की है, जो वाकई में आश्चर्यजनक है. मडस्टोन का मतलब चट्टान के भीतर बहुत अच्छे किस्म के कण से है, यानी ये कण धीरे-धीरे उसके भीतर समाये हैं. धरती पर तो आमतौर पर यही माना जाता है कि ऐसा हवा या पानी की वजह से हो सकता है. और हम यह सोचते हैं कि शायद ऐसा पानी की वजह से मुमकिन हुआ हो. शोधकर्ताओं का मानना है कि मडस्टोन ऐसे स्थान पर टिके होंगे, जहां ठहरे हुए जल का स्नेत होगा, जैसे कोई झील- जो शायद माइक्रोब्स (जीवाणुओं) के जिंदा रहने और पुनरोत्पादन के लिए आदर्श स्थान हो सकते हैं. यदि आपके पास कोई जीवाणु हो, जो जिंदा रहने के लिए किसी स्थान की तलाश में हो, तो वह निश्चित रूप से किसी ठहरे हुए जल को खोजेगा. ऐसे में पानी (शांत झील) को बेहतर स्थान माना जा सकता है. (स्रोत: स्पेस डॉट कॉम)

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