बच्चो! गर्मियां आ चुकी हैं. ऐसे मौसम में आइसक्रीम हर किसी को ललचाती है. आज बाजार में आइसक्रीम वनीला, चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी, मैंगो, पाइनऐपल आदि के स्वाद के साथ कोन, कप, स्टिक आदि के आकर्षक पैकेज में मौजूद है. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर तरह-तरह की वेरायटी वाली आइसक्रीम बनी कैसे, इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई? आइए जानें इस बारे में..
एक किंवदंती के अनुसार
वैसे यह निश्चित रूप से मालूम नहीं है कि सबसे पहले आइसक्र ीम कैसे बनी और इसकी शुरुआत कैसे हुई, लेकिन एक किंवदंती के अनुसार, लगभग दो हजार साल पहले रोमन सम्राट नीरो ने अपने गुलामों से कहा था कि वे पास के पहाड़ों से बर्फ ले आयें. नीरो ने उस बर्फ में फलों का रस, शहद आदि मिलाया और उसका आनंद लिया. इसे ही आइसक्रीम की शुरुआत माना जा सकता है.
समय बीतने के साथ लोग बर्फ में अन्य स्वादिष्ट चीजें मिलाकर खाने लगे और सन् 1600 तक आइसक्रीम काफी लोकप्रिय हो युकी थी. इसके बाद लोग अनेक प्रकार के प्रयोग करके इसे नया-नया रूप, आकार व स्वाद देकर और लोकप्रिय बनाते चले गये. एक बार पार्टियों में वेटर का काम करने वाले रॉबर्ट ग्रीन नामक व्यक्ति ने मजबूरीवश एक प्रयोग कर डाला.
उस समय क्रीम और काबरेनेटेड पानी मिला कर एक पेय बनाया जाता था जो कई दशकों तक खासा लोकप्रिय रहा था. एक पार्टी में उस पेय के लिए क्रीम कम पड़ गयी. ग्रीन ने उसकी जगह वनीला आइसक्रीम डाल दी. आइसक्रीम एक फोम के रूप में गिलास में ऊपर तक भर गयी और वह घोल काफी स्वादिष्ट बन पड़ा था. और जल्दी ही वह लोकप्रिय हो गया. इसे आइसक्रीम सोडा के नाम से पुकारा जाने लगा. इसी तरह के मजबूरीवश किये प्रयोगों ने अन्य प्रकार की आईसक्रीम्स को जन्म दिया.
संडे आइसक्रीम
स्मिथसन नामक व्यक्ति के पास एक छोटा-सा रेस्त्रं था, जिसमें लोग आइसक्रीम खाने अक्सर आते थे. 1890 के एक रविवार के दिन उसके रेस्त्रं में आइसक्रीम कम पड़ने लगी और दूसरी चीजें, जैसे फल, विभिन्न प्रकार की चॉकलेटें, क्रीमें आदि काफी थीं. रविवार को आइसक्रीम की आपूर्ति नहीं होती थी इसलिए स्मिथसन ने आइसक्रीम की मात्र कम कर दी तथा उसके ऊपर फल, चॉकलेट सिरप और दूसरी गाढ़ी क्रीम डालना प्रारंभ कर दिया. जब ग्राहकों ने इसकी तारीफ करना प्रारंभ कर दिया तो उसने इस आइसक्रीम का नाम संडे आइसक्रीम रख दिया. अब वह हर रविवार को संडे आइसक्रीम देने लगा. धार्मिक कारणों से कुछ लोगों द्वारा संडे नाम का विरोध करने पर स्मिथसन ने संडे आइसक्रीम में संडे की स्पेलिंग बदल डाली.
कोन वाली आइसक्रीम
कुरकुरे कोन में आइसक्रीम खाने का अलग ही आनंद है. इसकी शुरुआत भी मजबूरी में ही हुई. 1904 में सेंट लुई मेले में दो व्यक्ति खाने की वस्तुओं के काऊंटर पर अगल-बगल खड़े थे. एक पेपर की प्लेटों में आइसक्रीम बेच रहा था और दूसरा वेफर पर (पेस्ट्री जैसा लगने वाला) जिसके ऊपर चीनी के दाने चिपके हुए थे.
अगस्त का महीना था और लोग धड़ाधड़ आइसक्रीम ले रहे थे. वेफर बेचने वाला मुंह ताक रहा था. तभी अचानक कागज की प्लेटें कम पड़ गयीं और आइसक्रीम वाले को लगा कि अब उसे अपना काऊंटर बंद करना पड़ेगा. तभी वेफर बेचने वाला उसकी मदद के लिए आगे आया. उसने वेफल से कोन बनाया और दोनों उसमें आइसक्रीम भर कर बेचने लगे. लोगों को कुरकुरा वेफ र आइसक्रीम के साथ बहुत भाया तथा अब वह खूब बिकने लगा. 1920 तक एक-तिहाई आइसक्रीम कोन में बिकने लगी.
चॉकलेट आइसक्रीम
एक दिन क्रि श्चियन नेल्सन नामक व्यक्ति अमेरिका के आयोवा में स्थित अपनी दुकान में आइसक्रीम व चॉकलेट बेच रहा था. तभी एक बालक हाथ में सिक्के लिए दुकान में आया और आइसक्रीम की फरमाइश की. फिर उसने इरादा बदल दिया और चॉकलेट की फरमाइश कर डाली.
नेल्सन को लगा कि यह बालक तभी संतुष्ट हो पायेगा जब उसे दोनों स्वाद मिलेंगे. उसने आइसक्रीम की एक स्लाइस काटी तथा उसके दोनों ओर चॉकलेट की पतली परत चिपका दी और तभी चॉकलेट आइसक्रीम की खोज हो गयी. अब वह नयी चॉकलेट वाली आइसक्रीम जमाने लगा. उसने इस दिशा में अनेक प्रयोग भी कर डाले ताकि चॉकलेट उसकी आइसक्रीम से भली प्रकार चिपक जाये. उसे सफलता आसानी से नहीं मिल रही थी.
तभी उसको एक सेल्समैन ने सलाह दी कि वह कोको बटर का प्रयोग करे. अब नेल्सन ने नये सिरे से प्रयोग प्रारंभ कि ये. 1920 में एक रात उसने आइसक्रीम की एक स्लाइस चॉकलेट के मिश्रण में डाली. कुछ देर बाद चॉकलेट ठंडा होकर आइसक्रीम के चारों ओर जम गया. इसके साथ ही चॉकलेट लगी आइसक्रीम खासी लोकप्रिय हो गयी.