कई बार ऐसा होता है कि ऑफिस में लोग हमारे खिलाफ हो जाते हैं, हमारी बुराई करते हैं और हमारे कार्यो में कमियां निकालने लगते हैं. जब ऐसा होता है, तो हम निराश हो जाते हैं और उन लोगों के पास जा–जाकर अपनी सफाई देते हैं.
हम सभी को साबित करने की कोशिश करते हैं कि मैं ऐसा नहीं हूं, मैंने यह नहीं किया, मेरे ऐसा करने का मतलब वह नहीं था, वह जो बोल रहा है वह सरासर झूठ है.. आदि. लेकिन, ऐसा करना हमारे अंदर आत्मसम्मान की कमी दर्शाता है. जब हमें यह पता है कि हम जो कर रहे हैं या हमने जो किया है, वह सही है, तो हम क्यों लोगों को साबित करने की कोशिश में इतने परेशान हों? यह लोगों की गलती है कि वे हमें नहीं समझ रहे.
कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ लोग हमारी किसी खूबी से जलन करने लगते हैं, इसलिए बुराई करना शुरू कर देते हैं. ऐसे लोगों के सामने अपना आत्मसम्मान खोने की जरूरत नहीं हैं. वे लोग तो खुद दर्द, जलन, घाव में जी रहे हैं, आपसे डरे हुए हैं. उनसे कैसा शिकवा? उन्हें माफ कर दीजिए. ऐसे लोगों के प्रति नफरत भी दिल में बिल्कुल न आने दें. बस अपना काम करते जाएं.
इस तरह का दौर हर इनसान की जिंदगी में आता है, जब हमें लगता है कि हम अकेले पड़ गये हैं. बस यही वो समय है, जब हमें अपने आत्मसम्मान को मजबूत करना होगा. अपना संयम बनाये रखना होगा, यह सोच कर कि यह छोटा–सा दौर भी निकल जायेगा. यही वह समय है जब आप अपनी विशेषताओं को और बढ़ा सकते हैं. ऐसे समय में आप अपने काम पर ही फोकस करें. लोग पीठ पीछे क्या कहते हैं, उस पर कतई ध्यान न दें.
एक बात और यह कि अपनी विशेषताओं को खुद तक सीमित न रखें. अपनी प्रतिभा को दूसरों के साथ बांटें. कई बार हम डरते हैं कि यदि मैंने इसे सब कुछ सिखा दिया, तो यह मुझसे आगे निकल जायेगा. इस गलतफहमी को दूर करें. आप जितना ज्ञान बांटेंगे, वह उतना ही बढ़ेगा. एक फायदा और होगा कि ज्ञान बांटने से आपको सुकून मिलेगा. यदि सामनेवाला आपसे आगे भी निकल जाये, तो आपको यह खुशी जरूर होगी कि इसे आपने ही सिखाया है.
बात पते की..
– जिस तरह माता–पिता अपने बच्चे से और टीचर अपने स्टूडेंट से जलन नहीं रखते, भले ही उन्होंने सब सिखाया हो, हमें भी वैसा ही करना चाहिए.
– लोग भले ही आपको स्पर्धा के लिए उकसायें, आपके खिलाफ बुरी बातें कहें. आप मन ही मन बस एक ही बात दोहरायें कि ‘मैं इस दौड़ में नहीं हूं.’