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मिशन चंद्र यान के बाद अब बारी ‘एमओएम’ (मार्स आर्बिटर मिशन) की है. पहली बार भारत चांद के पार किसी मिशन पर काम कर रहा है. पृथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर मंगल पर जाने की सारी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं.एक साल की मेहनत के बाद मंगल पर जाने वाला स्पेसक्राफ्ट ‘मंगल यान’ तैयार […]

मिशन चंद्र यान के बाद अब बारी ‘एमओएम’ (मार्स आर्बिटर मिशन) की है. पहली बार भारत चांद के पार किसी मिशन पर काम कर रहा है. पृथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर मंगल पर जाने की सारी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं.एक साल की मेहनत के बाद मंगल पर जाने वाला स्पेसक्राफ्ट ‘मंगल यान’ तैयार कर लिया गया है. इसे पीएसएलवी सी-25 के सहारे श्रीहरिकोटा से लांच किया जायेगा. सब कुछ ठीक रहा, तो 21 अक्तूबर से 10 नवंबर के बीच मंगल यान यात्र पर रवाना होगा. करीब 10 महीने की यात्र के बाद स्पेसक्राफ्ट मंगल की कक्षा में स्थापित हो जायेगा. इसके बाद वह लाल ग्रह पर जीवन की खोज से संबंधित कई जानकारियां भेजेगा.

चांद के बाद भारत अब मंगल तक पहुंचने को बेकरार है. मिशन मंगल के लिए कूच करने को ‘मंगल यान’ तैयार है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंगल पर भेजे जानेवाले अंतरिक्ष यान (मंगल यान) का निर्माण रिकॉर्ड एक साल में पूरा कर लिया है. मंगल यान ने पहला परीक्षण भी पास कर लिया है.

पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से निर्मित मंगल यान 27 सितंबर को बेंगलुरु से श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पहुंचेगा, जहां उसे ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-25 से जोड़ा जायेगा. 450 करोड़ रुपये की लागतवाले मिशन मंगल की शुरुआत 21 अक्तूबर-10 नवंबर 2013 के बीच होगी जब मंगल यान को लांच किया जायेगा. पीएसएलवी सी-25 मंगलयान को लेकर पृथ्वी से लगभग 5.5 से 40 करोड़ किलोमीटर दूर मंगल की यात्र पर निकलेगा. लगभग 300 दिनों के लंबे सफर के बाद यह उपग्रह मंगल की कक्षा में स्थापित होगा. भारत का मंगल यान मंगल ग्रह पर उतरेगा नहीं, बल्कि उसकी सतह से 375-500 किमी दूर रहते हुए परिक्रमा करेगा. संभावना है कि 24 सितंबर, 2014 तक यान मंगल की परिक्रमा शुरू कर देगा.

इसरो द्वारा निर्मित मंगल यान का कुल वजन 1340 किलोग्राम है. उपग्रह में कुल पांच वैज्ञानिक उपकरण (पे-लोड) हैं, जिनका कुल वजन सिर्फ 15 किलोग्राम है. इन उपकरणों में मिथेन सेंसर, मार्स कलर कैमरा, लाइमन अल्फा फोटोमीटर और थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर व मार्सियन एक्सोफेरिक कम्पोजिशन एक्सप्लोरर शामिल हैं.

खुद गलतियां सुधारेगा यान

इसरो द्वारा निर्मित इस उपग्रह में ऐसी प्रणालियां हैं, जिससे यान खुद निर्देशित होगा और अपनी गलतियां भी खुद सुधारेगा. इसमें नेविगेशन प्रणाली है, यानी मार्ग भटकने पर वह खुद सहीरास्ते पर आ जायेगा. चूंकि रॉकेट से अलग होने के बाद मंगल यान को लंबा सफर तय करना है, इसलिए उसके साथ लांचर (लिक्विड मोटर) भी है.

नासा की भी लेंगे मदद

इस अभियान के लिए इसरो ‘नासा’ की भी मदद ले रहा है, ताकि प्रक्षेपण के बाद विश्व के कई जमीनी स्टेशनों से मंगल यान के साथ अटूट संपर्क साधा जा सके. अंतत: ब्यालालू स्थित भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क (आइएसडीएन) से इस उपग्रह को नियंत्रित और निर्देशित किया जायेगा. इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक के शिवकुमार के मुताबिक नासा को अंतर-ग्रहीय अभियानों का काफी अनुभव है और उससे सहयोग लेने में कोई बुराई नहीं है. नासा की भी हमारी परियोजनाओं में रुचि है. उन्होंने बताया कि मंगल की कक्षा में स्थापित होने के बाद से मंगल यान की सेवाएं कम-से-कम छह माह तक मिलेंगी.

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