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न्यायप्रियता का मानवतावाद

।। रवि दत्त बाजपेयी ।। न्यायमूर्ति नहीं न्यायप्रिय-8 मानव अधिकारों के लिए लड़ते रहे जस्टिस वीएम तारकुंडे औपनिवेशिक शासन से भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में अनेक कार्यकर्ता थे, जिनका उद्देश्य मात्र शासक वर्ग की राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, हर भारतीय की संपूर्ण स्वतंत्रता और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण था. न्यायमूर्ति विट्ठल महादेव तारकुंडे ने […]

।। रवि दत्त बाजपेयी ।।

न्यायमूर्ति नहीं न्यायप्रिय-8

मानव अधिकारों के लिए लड़ते रहे जस्टिस वीएम तारकुंडे

औपनिवेशिक शासन से भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में अनेक कार्यकर्ता थे, जिनका उद्देश्य मात्र शासक वर्ग की राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, हर भारतीय की संपूर्ण स्वतंत्रता और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण था.

न्यायमूर्ति विट्ठल महादेव तारकुंडे ने सफल अधिवक्ता और सम्मानित जज होने के बाद अपना सारा जीवन, आम लोगों के अधिकारों की सुरक्षा को समर्पित कर दिया. तारकुंडे का जन्म तीन जुलाई, 1909 को समाज सुधारक वकील महादेव राजाराम तारकुंडे के घर हुआ. 1925 में मैट्रिक में पूरे बंबई प्रांत में वह अव्वल आये.

पुणो कृषि महाविद्यालय से स्नातक में भी अव्वल रहे. तारकुंडे, भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी के उद्देश्य से इंगलैंड गये, लेकिन वहां लिंकन इन्न से पढ़ाई कर बैरिस्टर बने. वर्ष 1932 में इंगलैंड से लौटकर वकालत के साथ ही तारकुंडे ने कांग्रेस और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की.

पुणो में अपनी वकालत के दौरान तारकुंडे ने कम्युनिस्ट आंदोलन के मानवेंद्र नाथ रॉय (एमएन रॉय) की लिखी पुस्तकें पढ़ीं. एक समय तारकुंडे, कांग्रेस छोड़ कर राय की रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य बने. 1946 तक एमएन रॉय और तारकुंडे का कम्युनिस्ट व्यवस्था से मोहभंग हो गया, आजादी के बाद तो उनका दलगत राजनीति से ही भरोसा उठ गया. वर्ष 1948 में वीएम तारकुंडे ने बंबई हाइकोर्ट में वकालत शुरू की और बहुत थोड़े से समय में बेहद सफल अधिवक्ताओं में शुमार हो गये. वर्ष 1957 में हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और न्यायिक प्रतिभा के पारखी, मोहम्मद करीम छागला ने तारकुंडे को हाइकोर्ट का जज बनाने का प्रस्ताव किया.

तारकुंडे ने आर्थिक तौर पर एक बहुत लाभदायक वकालत का काम छोड़कर हाइकोर्ट में जज का पद स्वीकार कर लिया. कुछ समय बाद, जब जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता तारकुंडे को माननीय न्यायाधीश तारकुंडे की आधिकारिक पाबंदियां बहुत खटकने लगीं, तो वर्ष 1969 में पद त्याग कर सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता का काम शुरू किया.

वर्ष 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता क्र में उलटफेर के निर्णय का विरोध करनेवाले न्यायविदों में तारकुंडे अग्रणी भूमिका में थे. दिल्ली प्रवास के दौरान ही तारकुंडे, इंदिरा सरकार के विरोधी आंदोलन के प्रमुख लोक नायक जयप्रकाश नारायण से जुड़ गये और अप्रैल, 1974 में उन्होंने अनेक प्रख्यात कानूनविदोंविचारकोंचिंतकों के साथ मिलकर एक गैर राजनीतिक संगठन सिटीजन फॉर डेमोक्रेसी की स्थापना की.

जयप्रकाश के आग्रह पर तारकुंडे की अध्यक्षता में एक समिति ने भारतीय चुनाव व्यवस्था के सुधार पर गंभीर अध्ययन किया और भारत में चुनाव पद्धति को आनुपातिक प्रतिनिधित्व पर आधारित करने का सुझाव दिया. जून, 1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के बाद न्यायमूर्ति तारकुंडे एवं अन्य सेवानिवृत्त जजों एमसी छागला, जेसी शाह के साथ मिलकर अहमदाबाद में इस असंवैधानिक कदम का सार्वजनिक विरोध किया. वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान ही जयप्रकाश नारायण की सलाह पर तारकुंडे ने एक पूर्णत: गैर राजनीतिक, लोक स्वातंत्र्य संगठन (पीयूसीएल) की स्थापना की थी.

आपातकाल की समाप्ति पर तारकुंडे ने कोई प्रशासनिक या राजनीतिक पद लेने से इनकार कर दिया और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए पूरी मुस्तैदी से जुटे रहे. दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरु द्वारा अपने कुछ सुधारवादी धर्मावलंबियों पर क्रूरतापूर्ण व्यवहार की जांच को गठित न्यायमूर्ति नाथवानी आयोग में एक सदस्य के रूप में जस्टिस तारकुंडे भी शामिल थे.

आयोग ने भारत में किसी पंथ या धर्म प्रमुख के क्रूरतापूर्ण व्यवहार पर पहली बार साहसिक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. आंध्र में नौजवानों को नक्सली बताकर फरजी मुठभेड़ के नाम पर हत्या की घटनाओं की तारकुंडे के नेतृत्व में जांच की गयी और तारकुंडे समिति की रिपोर्ट को सरकारी आतंक के विरुद्ध प्रामाणिक दस्तावेज माना जाता है.

भारतीय न्यायपालिका में लोक हित याचिकाओं की सुनवाई संभव होने पर जस्टिस तारकुंडे और पीयूसीएल ने आम लोगों के जीवन से संबंधित समस्याओं पर अनेक याचिकाएं दाखिल कीं और कोर्ट से उन पर समुचित राहत भी प्राप्त की. जुलाई, 1981 में मुंबई शहर सौंदर्यीकरण अभियान में सड़क के किनारे बनी झुग्गीझोपड़ियों को हटाने की राज्य सरकार की मुहिम के विरुद्ध हाइकोर्ट से तत्काल राहत का आदेश लाने और निर्वासितों को पुन: उसी स्थान पर बसाने जैसे कारगर अभियान भी चलाये.

वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों में मारे गये लोगों और दंगों में शामिल राजनीतिक लोगों के बारे में तारकुंडे ने विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी, लेकिन इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.

पंजाब में सिख आतंकवाद से निबटने में प्रशासन पुलिस द्वारा अपनाये गये गैरकानूनी तरीकों पर न्यायमूर्ति तारकुंडे ने बहुत विस्तृत अध्ययन किया और इस पर एक पुस्तक भी लिखी. पंजाब में सरकारी दमन की सार्वजनिक तौर पर आलोचना के लिए एक बार सत्ताधारी कांग्रेस दल के एक प्रवक्ता ने तारकुंडे को जेल भेजने की धमकी भी दी. न्यायमूर्ति तारकुंडे जम्मूकश्मीर, उत्तरपूर्व के राज्यों, नक्सल समस्या से प्रभावित राज्यों में आतंकवाद निरोधक सख्त कानूनों और सरकारी दमन चक्र के बड़े विरोधी थे.

भारतीय राजनीति में सांप्रदायिक शक्तियों के बढ़ते प्रभाव के विरु द्ध तारकुंडे ने सार्वजनिक अभियान छेड़ा था. वे भारत के परमाणु शस्त्र कार्यक्र के मुखर विरोधी थे और भारत द्वारा अपनी पहल पर एकपक्षीय परमाणु नि:शस्त्रीकरण के हिमायती थे.

नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए आजीवन संघर्षशील न्यायमूर्ति तारकुंडे का 22 मार्च, 2004 को देहांत हो गया. एमएन रॉय के मौलिक मानवतावाद सिद्धांतों में विश्वास करनेवाले तारकुंडे ने नागरिक अधिकारों के संघर्ष में असाधारण मानवतावाद प्रदर्शित किया.

आइए, जानते हैं न्यायमूर्ति विट्ठल महादेव तारकुंडे को. वर्ष 1948 में वीएम तारकुंडे ने बंबई हाइकोर्ट से वकालत की शुरु आत की और बहुत थोड़े समय में अपनी प्रतिभा के बल पर कोर्ट के बेहद सफल अधिवक्ताओं में शुमार हो गये. सेवानिवृत्ति से पहले ही न्यायमूर्ति तारकुंडे ने अपना पद त्याग दिया और वकालत करने सुप्रीम कोर्ट चले आये, जहां कॉरपोरेट के स्थान पर उन्होंने हमेशा श्रमिकों और गैर सरकारी संगठनों के पक्ष में मुकदमे लड़े.

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