।। दक्षा वैदकर ।।
आंटी ने उपवास रखा था. शाम को बेटा डोसा पैक करा लाया. दरअसल वह भूल गया था कि मम्मी का उपवास है. क्योंकि अब डोसा आ चुका था, आंटी को छोड़ कर घर के अन्य सदस्यों ने उसे खा लिया. रात को अंकल के पेट में दर्द होने लगा. उन्होंने आंटी को कहा, ‘जब मैं डोसा खा रहा था, तो जरूर तुमने जलन की होगी, इसलिए मेरा पेट दुख रहा है.’
हम सभी के साथ अक्सर इस तरह के घटनाएं होती हैं. हम अपने साथ होनेवाली किसी भी बुरी चीज का इलजाम सामनेवाले पर लगा देते हैं. ऑफिस में कुछ बुरा हो जाता है और हम कहते हैं कि आज सुबह न जाने किसका चेहरा देखा था.
एक बुजुर्ग महिला को मैं जानती हूं, जो किसी काम से बाहर जाती है और किसी खास महिला का चेहरा देख वापस आ जाती है और कहती है ‘आज फिर उस मनहूस को देख लिया, अब काम न होगा.’
हम सभी को यह समझना होगा कि हमारा दिन कैसा गुजरेगा? हमारा काम पूरा होगा या नहीं? यह किसी के चेहरे से या किसी के श्रप से तय नहीं होता. यह सब हमारे विचारों से तय होता है. सुबह–सुबह आपने अपने दिमाग में किस तरह के विचार बनाये, पूरा दिन उसी पर निर्भर होता है.
यदि आप किसी को देख कर सोचेंगे कि सुबह–सुबह इस आदमी की शक्ल देख ली, अब तो मेरा काम होगा ही नहीं.. तो आप इसी विचार को इतनी बार सोचेंगे कि सच में फिर आपका काम नहीं होगा. ऐसे में आपका काम उस आदमी ने नहीं बल्कि आपके नकारात्मक विचारों ने बिगाड़ा है.
माता–पिता अपने बच्चे को परीक्षा के पहले कहते हैं कि ‘बेस्ट ऑफ लक, भगवान करे कि अच्छा पेपर जाये.’ और मन में सोचते हैं कि ‘पता नहीं इसका पेपर कैसा जायेगा. साल भर तो इसने बिल्कुल पढ़ाई की ही नहीं. रात को भी फिल्म देखी. खराब नंबर आ गये तो?..आदि.’ इस तरह आपने बच्चे को दुआ नहीं दी. आपने बच्चे की तरफ नकारात्मक ऊर्जा भेजी.
इस बात को भी याद रखे कि शब्दों की ताकत से विचारों की ताकत ज्यादा होती है. इसलिए हम क्या बोल रहे हैं, उससे कही ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम क्या सोच रहे हैं.
बात पते की..
– इस बात को बहुत ध्यान रखें कि जो भी बोले, जो भी सोचें, वह अच्छी बात ही हो. क्योंकि जो हम सोचते हैं, जो हम बोलते हैं, वह सच हो जाता है.
– एक बार आपने किसी को आशीर्वाद दे दिया, तो अब उस बारे में नकारात्मक न सोचें. खुद के शब्दों पर विश्वास रखें और केवल अच्छे विचार बनाएं.