व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के सोच, अनुभूति और व्यवहार का आईना होता है. कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से ही पहचाना जाता है. व्यक्तित्व ही उसे दूसरे व्यक्तियों से अलग बनाता है. कार्य करने के ढंग, विभिन्न परिस्थितियों में अभिक्रिया करने के तरीके, शारीरिक हाव-भाव आदि से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है. अपने व्यक्तित्व की वजह से ही कोई व्यक्ति महान बनता है, तो कोई सामान्य, कोई व्यक्ति विख्यात, तो कोई कुख्यात होता है. आप अपने व्यक्तित्व को जिस सांचे में ढालने की कोशिश करेंगे वह वैसा ही आकार लेगा. किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में सबसे पहले उसके शारीरिक हाव-भाव से ही पता चलता है.
व्यक्तित्व सोचने-समझने और व्यवहार करने के तौर-तरीकों का परिचायक होता है. यह व्यक्ति के हाव-भाव, दृष्टिकोण और विचारधारा को दर्शाता है और लोगों के साथ किये जा रहे व्यवहार में स्पष्ट रूप से दिखता है.
व्यक्ति की शारीरिक भाषा उसके व्यक्तित्व के विषय में बहुत कुछ बयां कर देती है. इसलिए आपको हमेशा कमर सीधी रखते हुए चलना चाहिए और बैठते समय उचित मुद्रा पर ध्यान देना चाहिए. एक मीठी मुस्कान के साथ उचित अभिव्यक्ति आपके व्यक्तित्व में चार चांद लगा सकती है. बातचीत के दौरान हंसमुख और आत्मविश्वास से लबरेज लगना चाहिए. साथ ही एकाग्र रहना भी जरूरी होता है.
एकाग्रचित्तता का अर्थ सामनेवाले व्यक्ति की इच्छा और आवश्यकता के साथ तालमेल बैठाना होता है. जिस व्यक्ति से आप बातचीत कर रहे हों उसकी बात को ध्यान पूर्वक सुनना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति चाहता है कि दूसरे व्यक्ति के साथ उसकी बातचीत फायदेमंद और सूचनाप्रद हो, तो ऐसे समय सुनने की कला को विकसित करना आवश्यक हो जाता है. मौखिक व अमौखिक (शारीरिक भाषा) अभिव्यक्तियां जब मिल जाती हैं, तो अभिव्यक्ति की क्षमता और बढ़ जाती है.
किसी से बात करते समय संयमित लहजे में स्पष्ट रूप से अपनी बात कहें. आवश्यकतानुसार लहजे में परिवर्तन करें और एकरसता से बचें.
साक्षात्कार में अलग व्यक्तित्व को प्रदर्शित करना आवश्यक
इतना ही नहीं हाथों को इधर-उधर हिलाना, पलकों को जल्दी-जल्दी ऊपर-नीचे करना और अजीब तरह से मुंह बनाना आदि गतिविधियां साक्षात्कार लेनेवाले व्यक्ति के मन पर गलत प्रभाव डालती हैं. इसी प्रकार की कुछ अन्य गतिविधियां भी हैं, जिन पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की जरूरत होती है, जैसे दरवाजा खोलते या बंद करते समय अनावश्यक आवाज करना, चलते वक्त जूतों या चप्पलों की आवाज करना या कुर्सी को खींचते समय चीखने जैसी आवाज उत्पन्न होना. इस प्रकार की गतिविधियों से साक्षात्कार लेनेवाले व्यक्ति पर न केवल विपरीत प्रभाव पड़ता है, बल्कि वह चिड़चिड़ापन भी महसूस करता है और उम्मीदवार के प्रति उदासीन हो सकता है.