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बुजुर्ग माता-पिता की बात भी जरूर सुनें
दक्षा वैदकर एक सीरियल है. उसका एक पात्र पिछले कुछ महीनों से एक योग सेंटर जाता है, ताकि उसे शांति मिले. योग सेंटर की वजह से उसके गुस्सैल स्वभाव में भी काफी अंतर आया है. 25 मई के एपिसोड में योग सेंटर में एक कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसमें सभी को अपनी एक गलती माननी […]
दक्षा वैदकर
एक सीरियल है. उसका एक पात्र पिछले कुछ महीनों से एक योग सेंटर जाता है, ताकि उसे शांति मिले. योग सेंटर की वजह से उसके गुस्सैल स्वभाव में भी काफी अंतर आया है. 25 मई के एपिसोड में योग सेंटर में एक कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसमें सभी को अपनी एक गलती माननी थी और बताना था कि किस व्यक्ति से संवाद में कमी रह गयी, जिसका उन्हें आज तक अफसोस है.
नाटक का मुख्य पात्र लक्ष्मीकांत गोखले यहां अपने बुजुर्ग पिता के बारे में बताता है. वह कहता है, बाबा अपने अंतिम दिनों में बहुत बीमार थे. घर पर ही रहते थे. ऑफिस का काम मां संभालती थी. मैं 12वीं में फेल हो गया था, तो घर पर ही रहता था.
बाबा को हमेशा मुझसे कुछ बोलना होता था, लेकिन मुङो हमेशा उनका बोलना निर्थक लगता था. मुङो अपने दोस्तों से बात करना, पार्टी करना पसंद था. इसलिए मैं बार-बार घर के बाहर चला जाता था. बाबा को कॉफी बहुत पसंद थी. एक बार की बात है, घर में कॉफी खत्म हो गयी. बाबा रोज मुङो याद दिलाते कि कॉफी खरीदते हुए आना. मैं ‘हां’ कहता और निकल जाता.
दोस्तों के साथ पार्टी में कॉफी लाना भूल जाता. जब घर आता और बाबा को दरवाजे पर बैठा देखता, तब कॉफी का याद आती. यह सिलसिला कई दिनों तक चला. बाबा एक दिन बोले- तेरी उम्र है दोस्तों के साथ घूमने की, लेकिन कभी-कभी अपने बाबा से भी कुछ बात कर लिया कर. मैंने उनकी बात को फिर टाला और निकल गया. एक दिन दुकान देख अचानक कॉफी की याद आयी. सोचा कि आज कॉफी ले ही जाता हूं. मैं खरीद कर घर ले गया. बाबा दरवाजे पर नहीं थे. मैंने सोचा कि चलो अच्छा है.
आज कॉफी हाथों से बना कर सरप्राइज दूंगा. मैंने किचन में जाकर अच्छी कॉफी बनायी. कॉफी का कप हाथ में लेकर बाबा के कमरे में गया. वे कुर्सी पर लेटे थे. मैंने कहा- बाबा.. बाबा. उठो.. कॉफी लाया हूं. बाबा नहीं देख रहे थे. मैंने कहा, बाबा भाव मत खाओ. क्या बोलना है बोलो आज.. कॉफी पीते पीते.. पर बाबा नहीं बोले. मैंने उनके शरीर पर हाथ लगाया, लेकिन वे गुजर चुके थे. मुङो आज तक पता नहीं चला कि उन्हें क्या बोलना था.
बात पते की..
– मनुष्य जब तक जिंदा है और हमारे सामने है, हमें उससे संवाद करते रहना चाहिए. कब, कौन हमें छोड़ कर चला जायेगा, ये हम नहीं जानते.
– बुजुर्गो के पास बहुत छोटी-छोटी और सादी अपेक्षाएं होती हैं. बच्चों को वो पूरी करनी चाहिए. कम-से-कम उन्हें सुन तो लेना ही चाहिए.
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