झारखंड में पंचायती राज व्यवस्था के इस साल के अंत तक तीन साल पूरे हो जाएंगे. इन तीन सालों में विभाग की क्या उपलब्धियां रहीं. पंचायती राज को लेकर जो सपने देखे गये थे वे कहां तक पूरे हो सके?
पिछले पौने तीन साल में हमलोगों ने लगभग 90 प्रतिशत पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया. राज्य में लगभग 53608 पंचायत प्रतिनिधि हैं, इनमें 48217 प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है. पंचायत प्रतिनिधियों को उनके कामकाज संचालन के लिए हमने आधारभूत प्रशिक्षण उपलब्ध कराया. झारखंड पंचायती राज अधिनियम के आधार पर हमलोगों ने 16 नियमावली बनायी. ज्यादातर 2010-11 में बनीं. इनकी प्रतियां जिला के माध्यम से जनप्रतिनिधियों को उपलब्ध कराने के लिए भेजी गयी. हमलोगों ने एक वैधानिक आधार उनके लिए तैयार कर दिया है. 23 फरवरी 2013 को मोरहाबादी में पंचायत प्रतिनिधियों का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया. पॉयस योजना के तहत भी पहली बार हमारी तीनों स्तर की पंचायतों को पुरस्कार मिलना एक प्रमुख उपलब्धि रही. त्रिस्तरीय पंचायत निकाय को क्रमश:(नीचे से) पांच लाख, 10 लाख व 25 लाख की योजनाओं की मंजूरी का अधिकार दिया गया.
हमलोगों ने इ पंचायत के लिए ट्रेनिंग शुरू की. पंचायतों की अकाउंटिंग योजनाएं शुरू की जा रही हैं. पंचायतों के लिए 11 तरह के सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जा रहा है. इसमें प्रिया सॉफ्ट व प्लॉन प्लस प्रमुख हैं. उन्हें संसाधन उपलब्ध कराये गये. पंचायतों की डायरेक्टरी तैयार की गयी. कर्मियों का लेखा-जोखा तैयार किया गया. पंचायतों की मैपिंग भी करवायी गयी है कि उनके पास कितने संसाधन हैं. क्या-क्या हैं, कौन-कौन गांव हैं. 99 प्रतिशत पंचायतों में यह काम हो चुका है. नेशनल पंचायत पोर्टल से भी पंचायतों को जोड़ा जा रहा है. राज्य में 4423 पंचायतें, 259 पंचातय समिति व 24 जिला परिषद हैं, जिसमें लगभग 4400 का रजिस्ट्रेशन इसके लिए हो चुका है. पंचायतें खुद अपना कंटेट वेबसाइट पर अपलोड कर रही हैं.
पंचायतों को कई विभागों के अधिकार दिये गये. इसके संकल्प जारी किये गये हैं, पर अधिसूचना जारी नहीं की गयी. पंचायत प्रतिनिधि कहते हैं संकल्प से हम ठगे गये हैं. क्या उनके कामकाज के लिए नियमावली बनाने की प्रक्रिया आगे बढ़ायी जा रही है? पंचायत प्रतिनिधियों की शिकायत है कि जिन कर्मचारियों का स्थानांतरण उन्हें करना है, उनका स्थानांतरण भी अफसर कर दे रहे हैं. ऐसे में उनके होने का क्या मतलब है?
नौ विभागों को अधिकार सौंपने के लिए चुना लिया गया है. इनमें कृषि, स्वास्थ्य, समाज कल्याण, मानव संसाधन, मत्स्यपालन व पशुपालन, जल संसाधन, पेयजल एवं स्वच्छता, उद्योग, खाद्य एवं आपूर्ति शामिल हैं. इन विभागों ने संकल्प निर्गत कर दिया है. विस्तृत दिशा-निर्देश पर अभी ये अपने-अपने स्तर काम कर रहे हैं. हालांकि इनमें समाज कल्याण, पशुपालन, पेयजल एवं स्वच्छता व खाद्य आपूर्ति ने दिशा-निर्देश भी जारी कर दिया है.
फिर दूसरी श्रेणी में वैसे विभाग हैं, जिनका काम पंचायतों को ही करना है. इसलिए हमलोगों ने अभी उसको छुआ नहीं है. नयी चीजों पर ही हम फोकस कर रहे हैं, काम कर रहे हैं. इसके लिए हम डीसी, डीडीसी के साथ बैठक करते हैं व तालमेल बैठाने की कोशिश करते हैं. फिर थ्री एफ यानी फंड, फंक्शन व फंक्शनरीज के स्तर पर हम पंचायतों को सशक्त करने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि वे शक्ति का प्रयोग चरणबद्ध रूप से करें.
हाल के दिनों में अफसरों व पंचायत प्रतिनिधियों के झगड़े की कई खबरें राज्य भर से आयी हैं. पंचायत प्रतिनिधि कहते हैं कि अफसर उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रम में पूछते नहीं. अफसर कहते हैं कि उन पर दबाव बनाया जाता है. इससे विकास का काम प्रभावित हो रहा है. क्या पंचायत, प्रखंड व जिला स्तर पर प्रोटोकॉल को लेकर व इस तरह के तनाव को खत्म करने को लेकर कोई व्यवस्था बनायी गयी है? जनप्रतिनिधि पर मुकदमे भी हो रहे हैं?
ऐसे मामलों को कोई आधिकारिक जानकारी या शिकायत हमें नहीं मिली है. मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से पत्रंक 407, दिनांक 20-2-2012 राज्य के सभी प्रधान सचिव, सचिव, कमिश्नर, डीसी व डीडीसी को भेजा गया है. इसमें कहा गया है कि ऑफिसियल कार्यक्रम में जनप्रतिनिधियों को जरूर आमंत्रित करना है. यह सरकार का निर्देश है. समय-समय पर योजना के मुताबिक हमलोग पत्र भी लिखते हैं कि योजना के स्थल चयन में जनप्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित करें.
फिर भी अगर राज्य में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, तो मैं समझता हूं कि यह स्थानीय समस्या है.
बीआरजीएफ के फंड खर्च करने को लेकर भी झगड़ा है? उसका पैसा भी ढंग से खर्च नहीं हो पा रहा है?
हमलोग बीआरजीएफ का फंड खर्च कर रहे हैं. इसके लिए पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद के स्तर पर जिला योजना समिति की अनुशंसा से योजनाएं ली जाती हैं. मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी इसकी प्राथमिकताओं पर विचार करती है. हमलोगों ने पंचायत भवनों के निर्माण को इसमें प्राथमिकता दी है. अन्य योजना भी चल रही है. वित्तीय वर्ष 2008-09 से अबतक कुल 116895.50 लाख रुपये राज्य को बीआरजीएफ से मिले हैं, इसमें 98898.67 लाख रुपये यानी 84.06 प्रतिशत राशि खर्च हुई है.
हमलोग इसके लिए मासिक बैठक करते हैं. जुलाई-अगस्त में भी बैठक की. लगातार इसकी योजनाओं की समीक्षा की जा रही है. राशि को जिला परिषद को तबतक उपलब्ध करायी जा रही है, जबतक ग्राम पंचायत में आधारभूत संरचना नहीं तैयार हो जाती है.
राज्य में पंचायत सचिवों की काफी कमी है. एक-एक के पास दो-दो, तीन-तीन पंचायतें हैं. इससे विकास का काम प्रभावित नहीं हो रहा है?
4423 पंचायतें राज्य में हैं. जबकि हमारे पास 2827 पंचायत सचिव हैं. हमलोग झारखंड पंचायत सचिव (नियुक्ति, सेवा शर्त एवं कर्तव्य) नियमावली 2013 तैयार कर रहे हैं. इसके तैयार होते ही इस समस्या के हल के लिए कदम बढ़ाया जाएगा.
झारखंड में प्रखंड क्षेत्र काफी बड़े क्षेत्र में फैले हैं. प्रमुख के लिए वाहन की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में क्या प्रखंड कार्यालय में उपलब्ध वाहन की सुविधा उनके क्षेत्र के दौरे के लिए नहीं उपलब्ध करायी जा सकती है?
इसके संबंध में बिहार के समय से स्टेंडिंग इंस्ट्रेक्शन है. इसके तहत उन्हें गाड़ी उपलब्ध करायी जा सकती है.
पंचायत सचिवालय के निर्माण की क्या प्रगति है. राज्य में कितने पंचायत सचिवालय बने हैं, कितने निर्माणाधीन हैं. गांवों में जब हमलोग जाते हैं तो देखते हैं कि जेनसेट व कंप्यूटर मुखिया के घर की शोभा बढ़ा रहे हैं. उनका उपयोग नहीं हो रहा है. कई जगह तो पंचायत सचिवालय होने के बावजूद सुरक्षा नहीं होने के कारण चोरी हो जाने की बात कह कर मुखिया उसे अपने घर पर ही रखते हैं? ऐसे में पंचायतें कैसे सशक्त होंगी?
राज्य में 4423 पंचायतों की तुलना में 4295 पंचायतों में पंचायत भवन निर्माण की स्वीकृति है. इसमें 2436 बन गये हैं. 1809 में निर्माण कार्य चल रहा है. ऐसे जहां पर पंचायत कार्यालय हैं, वहां ऐसी समस्या नहीं है. पंचायत भवनों में राज्य में 1200 प्रज्ञा केंद्र भी चल रहे हैं. फिर घर में चीजें रखे जाने की कोई सूचना हम तक नहीं है.
13वें वित्त आयोग से जो राशि मिलती है, उसे सीधे ग्राम पंचायतों को दे दिया जाता है. इसमें 60 प्रतिशत पंचायत को, 40 प्रतिशत पंचायत समिति को व 20 जिला परिषद को दिया जाता है. वे लोग अपने-अपने स्तर पर स्कीम लेते हैं. इस पैसे को पंचायतें अपने हिसाब से आधारभूत संरचना, जरूरी चीजें, पुल-पुलिया निर्माण आदि में खर्च करती हैं. राजीव गांधी पंचायत सशक्तीकरण अभियान भी चलाया जा रहा है.
पंचायत प्रतिनिधियों के लिए विभागीय प्रमुख के नाते कोई संदेश देना चाहेंगे?
पंचायत प्रतिनिधि जनता से अपनी ताकत पाते हैं. उनका प्राधिकारी जनता है. वे अपने शक्तियों का प्रयोग उनके विकास व उत्थान के लिए करें. विभाग बस उनके सहयोग के लिए है.