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खतरे में धरोहर: अवशेषों में तब्दील हो रहे सैकड़ों साल पुराने जैन मंदिर

कोलकाता. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और बांकुडा जिलों के करीब 150 ग्रामों में दिगंबर जैन धर्म के जिनेंद्र भगवानों की हज़ारों साल प्राचीन कलात्मक सैकड़ों मूर्तियां और मंदिर यत्र तत्र पाये गये हैं, जिन्हें श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा के द्वारा संरक्षण देने का एक भागीरथी प्रयास किया जा रहा है. उक्त बातें […]

कोलकाता. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और बांकुडा जिलों के करीब 150 ग्रामों में दिगंबर जैन धर्म के जिनेंद्र भगवानों की हज़ारों साल प्राचीन कलात्मक सैकड़ों मूर्तियां और मंदिर यत्र तत्र पाये गये हैं, जिन्हें श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा के द्वारा संरक्षण देने का एक भागीरथी प्रयास किया जा रहा है. उक्त बातें महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राजकुमार सेठी ने बतायी.
श्री सेठी ने बताया की महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्मल कुमार सेठी के मार्गदर्शन में यह महतवपूर्ण कार्य 1990 से चल रहा है. उन्होंने कहा कि बंगाल प्रांत प्राचीन काल से ही जैन धर्म का मूल स्थान रहा है. बर्दवान, सिंहभूम, मानभूमि, वीरभूमि, 24 परगना आदि स्थानों के नाम भगवान महावीर से ही संबंधित हैं. 1890 में अंगरेज पुरातत्वविद सी जे बगलर ने बंगाल में 100 से ज्यादा स्थानों पर जैन मंदिरों और मूर्तियों का पता लगाया था, जो बंगाल पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में भी है.
उन्होंने बताया कि हज़ारों साल पुराने कई जैन मंदिर और मूर्तियां काल के थपेड़े खाकर या तो बिलुप्त हो गयी हैं या फिर अवशेषों में तब्दील हो गयी हैं. फिर भी सैकड़ों की संख्या में बचे मंदिरों और मूर्तियों को जैन समाज के लोगों, पुरातत्व विभाग, पुरातत्वविद और ग्रामवासियों के सहयोग से उन्हें संरक्षण प्रदान किया जा रहा है. मंदिरों का जीर्णोद्धार कर मूर्तियों को स्थापित किया जा रहा है. श्री सेठी ने कहा कि अभी तक पाकिबरा, भाखड़ा, बारहमसिया, भाषकरडांगा,आड़सा, मानबाज़ार, चालका, लखारा आदि में मंदिरों का जीर्णोद्वार किया गया और जिनालय बना कर जिन प्रतिमाओं को विराजमान किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि परंतु दुलसी, दुसासा, गुरुडीह, बुद्धपुर, धनियाडांगा, सिंदूरपुर, नंदयारा, झालदा, तुसियाना, तवारी, बलरामपुर, बड़ाबाजार, डेलाग, बड़ग्राम, रामनगर जैसे सैकड़ों स्थल हैं, जहां मंदिरों के जीर्णोद्धार के साथ-साथ मूर्तियों को संरक्षण की जरुरत है.

इन कार्यों हेतु महासभा की ओर से 22 मार्च को पुरुलिया में एक सेमिनार का आयोजन किया गया और 31 मई को बांकुड़ा के विष्णुपुर और अगस्त माह में कलकत्ता विश्वविद्यालय में भी एक बृहद सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें काफी बड़ी संख्या में पुरातत्वविद भाग लेंगे.

श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा बंगाल शाखा के अध्यक्ष अनिल कुमार बड़जात्या ने बताया कि भगवान महावीर का समवशरण भी यहां आया था. हज़ारों की संख्या में प्राप्त इन प्राचीन दिगंबर जैन मूर्तियों और मंदिरों को देख कर साफ प्रतीत होता है कि यह इलाका निश्चित रूप से हज़ारों साल पूर्व में दिगम्बर जैन तीर्थ स्थल था. श्री बड़जात्या ने कहा कि कई मूर्तियों को तो अन्य धर्म के लोग अपनी विधि से पूज रहे हैं और उन्हें विविध नाम दे दिये हैं, जिनसे उनकी अवमानना हो रही है. महासभा की और से इन्हें संरक्षण देने और इस इलाके को तीर्थस्थल का रूप देने के लिए एक भागीरथी प्रयास किया जा रहा है. श्री बड़जात्या ने कहा कि इन इलाकों में प्राप्त मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए महासभा की और से कई योजनाएं चल रही है, जिनको समाज का भरपूर सहयोग मिल रहा है. एक गुल्लक योजना भी चल रही है, जो काफी सफल है.
महासभा की पश्चिम बंगाल की शाखा के कार्यधक्ष संजय काला ने कहा कि 1960 में जब दामोदर नदी पर बांध बनाया गया था तो काफी बड़ी संख्या में दिगंबर जैन मंदिर नदी में विलुप्त हो गये. बांध के किनारे बसे ग्रामों में अभी भी जहां-तहां सैकड़ों की संख्या में मूर्तियां और उनके अवशेष बिखरे पड़े हैं. श्री काला ने कहा कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के ये मंदिर और मूर्तियां जैन समाज की धरोहर हैं. विलुप्त होती इन मूर्तियों और मंदिरों को संरक्षण देना ना केवल पुण्य का काम है, बल्कि जैन समाज का कर्तव्य है. उन्होंने दिगंबर जैन समाज से आह्वान किया कि वो लोग पुरु लिया और बांकुड़ा के विभिन्न ग्रामों का भ्रमण करें और इन ऐतिहासिक धरोहरों का दर्शन कर इन्हें संरक्षण दें. महासभा की और से उन्हें भ्रमण हेतु भरपूर सहयोग दिया जायेगा.
महासभा की पश्चिम बंगाल शाखा के सूचना और प्रसारण मंत्री ललित सरावगी ने कहा कि दिगंबर जैन धर्म की इन कलात्मक और ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने और सुरिक्षत करने के लिए और समाज में जन चेतना जगाने के लिए महासभा की तरफ से देश में जगह-जगह सभाएं आयोजित की जा रही हैं और लोगों का भरपूर समर्थन भी मिल रहा है. श्री सरावगी ने कहा कि हज़ारों साल पुरानी कलात्मक और वास्तुशिल्प के इन नायाब मंदिरों और मूर्तियों को अगर समय रहते संरक्षण नहीं दिया गया तो समय और काल के थपेड़े में ये धरोहर अपना पूरा अस्तित्व खो देंगे. उन्होंने कहा कि फेसबुक, व्हाट्सअप और इंटरनेट के अन्य माध्यमों आदि से भी लोगों को जानकारी दी जा रही है और इन धरोहर पर एक फिल्म भी बनाने का प्रयास किया जा रहा है जिससे दुनियां भर में फैले लाखों दिगंबर जैन बंधु इन धरोहर की रक्षा में अपना सहयोग दे सकें. श्री सरावगी ने जैन समाज के लोगों से आग्रह किया कि व्हाट्सअप और फेसबुक से मिले संदेशों को वो लोग आगे फॉरवर्ड भी जरूर करें, जिससे काफी बड़ी संख्या में लोग इस पुनीत कार्य में शामिल हो सके.

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