पति का पेट्रोल पंप डूबा, तो अपने बूते खड़ी की डेयरी
धनबाद :यह कहानी उस महिला की है जिसने पति का व्यवसाय डूबने के बाद हाथ पर हाथ धर कर बैठने की बजाय अपने बूते नया व्यवसाय शुरू किया और आज कामयाबी उनके पांव चूम रही है. एक गाय से शुरू उनकी डेयरी में आज तीस गायें हैं. वह महिला हैं रश्मि सिंह. उनकी ‘सिटी फ्रेश डेयरी’ कोयलांचल में जाना-पहचाना नाम है. डेयरी कुसुम विहार फेज टू में बीस कट्ठा जमीन पर स्थित है. यहां से जुड़कर दस लोग अपना परिवार चला रहे हैं.
ऐसे खुली डेयरी
रश्मि भी आम गृहिणी की तरह पति-बच्चे और घर तक को ही अपनी दुनिया मानती थी. पति का बलियापुर में ट्रेड प्वाइंट पेट्रोल पंप था. गृहस्थी आराम से चल रही थी. अचानक 2005 में कारोबार में लगभग एक करोड़ का नुकसान हो गया. काफी पैसा मार्केट में फंस गया. पति मेंटली डिस्टर्ब रहने लगे. इसी बीच दो साल निकल गये. 2007 में इनके पति चिरकुंडा से एक गाय खरीद लाये. यहीं से जिंदगी फिर से पटरी पर आने लगी. गौ माता की सेवा में पति का समय निकलता. धीरे-धीरे वे टेंशन से उबरने लगे. गाय दस किलो दूध देती थी. पड़ोसियों के आग्रह पर उन्हें दूध देना शुरू किया. और यहीं से डेयरी करने का विचार मन में आया.
इनके पास है 35 गायें
आज इनके पास पैंतीस गाय है. 2009 में मिलनेवाली सरकारी योजना का लाभ उठाया. सरकार बीस गाय खरीदने पर बीस प्रतिशत की छूट दे रही थी. इनके सात लाख के प्रोजेक्ट पर एक लाख अठत्तर हजार की छूट मिली और डेयरी को नयी दिशा मिली. आलेस्टीन फ्रिजियन, जर्सी, शाहीवाल नस्ल की गायें डेयरी में है. एक गाय एक टाइम में दस से बारह किलो दूध देती है. दूध को सिटी फ्रेश डेयरीवाले पॉली पैक में सील किये जाते हैं. आधा लीटर अठारह रुपये, एक लीटर 36 रुपये के पैक में उपलब्ध हैं.
पैंकिंग को मंगायी मशीन
रश्मि बताती हैं. डेयरी की सफलता के पीछे चार साल की कड़ी मेहनत और कभी न भूलनेवाले ऐसे कई मोड़ हैं जिनके अनुभव मुङो संबल देते है. दूध की पैकिंग के लिए केरला से सेमी ऑटोमेटिक मशीन मंगायी गयी. इसके बाद पॉली बैग में दूध पैक होने लगे.
गायों के हैं नाम
डेयरी में रहनेवाली सभी गायों के नाम हैं. गौरी, लक्ष्मी, पूर्णिमा, गंगा गोदावरी, सिंधु, गीता जैसे नाम हैं. दिलचस्प बात यह है कि जिसका नाम पुकारा जाता है वही गाय सामने आती है. एकदम आज्ञाकारी बच्चे की तरह. इनकी देखभाल के लिए हमेशा सचेत रहना पड़ता है. बीमार पड़ने पर बच्चों की तरह सेवा करनी होती है.
पर्सनल प्रोफाइल
रश्मि 1998 में व्यवसायी शैलेंद्र सिंह से परिणय सूत्र में बंधकर धनबाद आयीं. इनके दो बच्चे हैं. बेटी श्रेया सिंह कार्मेल स्कूल की नौंवी की छात्र है. बेटा अनिश सिंह डी- नोबिली सिंफर में चौथी कक्षा का छात्र है. रश्मि ने स्नातक तक की पढ़ाई पटना से की. पटना इनका पीहर है.
बुरे वक्त की यादें इस तरह शेयर करती हैं : जब पेट्रोल पंप डूब गया तब ऐसा लगता था यहां की प्रापर्टी सेल कर सारा कर्ज चुका कर ऐसी जगह बच्चों को लेकर चले जायें जहां कोई हमें पहचानने वाला न हो. छोटी सी चाय की दुकान चलाकर बच्चों को पाल लेंगे. लेकिन आंतरिक शक्ति हौसला देती, कदम आगे बढ़ाओ कामयाबी तुम्हें आवाज दे रही है. मैंने उस आवाज पर कदम आगे बढ़ाये और आज इस मुकाम पर हूं.