।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
– 678 करोड़ रुपये
40 मंत्रियों ने 2011-12 में अपने विदेश दौरे पर खर्च किये
– 100 करोड़ रुपये
तीन साल में सिर्फ मंत्रियों के बंगले की मरम्मत पर खर्च किये गये
– विदेश में इलाज
आइएएस, आइपीएस या आइएफएस अधिकारी को इलाज की चिंता नहीं है. दो–दो माह तक विदेश में सरकारी खर्च पर इलाज करा सकते हैं
पटना निवासी संजय कुमार की दो बेटियों ने रांची के कांके डैम में आत्महत्या कर ली. पत्नी और दो बेटियों की खोज हो रही है. पता नहीं, वे जीवित भी हैं या नहीं. आर्थिक तंगी के बाद पारिवारिक विवाद के कारण यह घटना घटी.
संजय एक निजी कंपनी में काम करते हैं. वेतन है सिर्फ आठ–साढ़े आठ हजार. इतने कम पैसे में परिवार का गुजारा नहीं हो रहा था. पिता गंभीर बीमारी से ग्रस्त. पिता पर ध्यान दिया, तो परिवार उपेक्षित होने लगा. पत्नी को तीज में पैसे की जरूरत पड़ी. पति से विवाद हुआ. फिर पत्नी ने बेटियों के साथ यह अप्रत्याशित कदम उठा लिया.
यह घटना भले ही रांची की हो, पर हर दिन देश के किसी न किसी कोने में ऐसी घटनाएं घट रही हैं. समाज के एक बड़े वर्ग को दोनों शाम का खाना नसीब नहीं होता. पैसे के अभाव में बच्चे की पढ़ाई छूट रही है, इलाज नहीं करा पा रहे, बेटियों की शादी नहीं हो रही, तनाव बढ़ रहा है, परिवार टूट रहा है, इस हालात से लड़ने के बजाय लोग आत्महत्या कर रहे हैं. एक ओर समाज में यह हालत है.
दूसरी ओर देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. महंगाई तेजी से बढ़ रही है. रुपया लगातार कमजोर हो रहा है. पेट्रोल–डीजल का दाम तेजी से बढ़ रहा है. ईंधन बचाने की अपील की जा रही है, पर देश के नेताओं और बाबुओं को इसकी चिंता नहीं है. वे फिजूलखर्ची, अय्याशी और अपनी जिंदगी जीने में व्यस्त हैं.
पहले संजय जैसे लोगों की बात करें. कड़ी मेहनत के बावजूद इतना पैसा भी नहीं मिल पाता कि परिवार का भरण–पोषण कर सकें. पेट भर खाना खा सके, बीमार परिजनों का इलाज करा सकें. सच है कि हर व्यक्ति को बेहतर जीवन जीने का अधिकार है. पर कम पैसे में यह संभव नहीं होता. उनका हक कोई और मार ले रहा है.
भ्रष्ट नेता और अफसर अगर उनका हक मारना बंद कर दें, तो एक आम आदमी भी बेहतर जीवन जी सकता है. उसका वेतन भी बढ़ सकता है. उसकी आय बढ़ सकती है. हम सभी टैक्स देते हैं, वह व्यक्ति भी टैक्स देता है, जो आठ–दस हजार कमा रहा है. इसी टैक्स के पैसे से नेता–अफसर अय्याशी करते हैं.
एक ओर किसी को आठ हजार वेतन मिलता है, तो दूसरी ओर विधायकों (कुछ राज्यों में) को प्रतिमाह इससे तीन गुना ज्यादा यानी 25 हजार रुपये सिर्फ तेल भत्ता मिलता है. गरीब जनता भूखे सोती है, पर नेता हर माह आलीशान गाड़ियों में 25 हजार का तेल उड़ाते हैं. यह किसी एक राज्य का मामला नहीं है.
पूरे देश का लगभग एक जैसा हाल है. एक अफसर 500 किलोमीटर लेकर एसी कार से जा सकता है और उसे सिर्फ 700 रुपये देने पड़ते हैं. यह निर्णय 1999 में हुआ था. तेल का दाम कई गुना बढ़ गया, पर अफसरों के लिए नियम नहीं बदला.
आंकड़े बताते हैं कि 40 मंत्रियों ने 2011-12 में अपने विदेश दौरे पर 678 करोड़ रुपये खर्च किये. एक साल में उनका भत्ता 12 गुना बढ़ गया. यूपीए के मंत्रियों ने एक साल में 750 विदेश दौरे किये. तीन साल में 100 करोड़ रुपये सिर्फ मंत्रियों के बंगले की मरम्मत पर खर्च किये गये. यह तो सिर्फ केंद्रीय मंत्रियों का आंकड़ा है, राज्य के मंत्रियों का आंकड़ा जोड़ दिया जाये तो कई गुना बढ़ जायेगा.
कहीं मंत्रियों के फर्नीचर हर साल बदले जाते हैं, कहीं नये–नये गेट लगते हैं तो कहीं नये और कीमती पर्दे लगते हैं. जिसे जब मन किया, जहां मन किया, दौरा कर लिया. सिर्फ मंत्री या अधिकारी ही क्यों? कर्मचारी भी इसमें पीछे नहीं हैं.
2000-01 में जहां 32 लाख कर्मचारियों का टीए बिल 1100 करोड़ का था, 2011-12 में 30 लाख कर्मचारियों के लिए यह बिल 3513 करोड़ हो गया. कर्मचारी घट गये, पर टीए बिल तीन गुना बढ़ गया.
नेता–अफसर या कर्मचारी जनता का पैसा फूंक रहे हैं. इन्हें नियंत्रित करनेवाले खुद लुटेरे बन गये हैं. आइएएस तो देश चलाते हैं. इनकी सुविधाओं की तो सीमा नहीं है. आम आदमी बीमार पड़े तो इलाज के अभाव में मर जायेगा. सरकार मुंह ताकती रहेगी पर आइएएस, आइपीएस या आइएफएस को इलाज की चिंता नहीं है. दो–दो माह तक विदेश में इलाज करा सकते हैं.
मन करे तो अमेरिका, इंग्लैंड में इलाज करा सकते हैं. जितना खर्च होगा, सरकार देगी. कोई सीमा नहीं. उनके साथ जो अटेंडेंट जायेगा, उसका विमान किराया भी सरकार देगी. देश में अगर इलाज कराना है तो एम्स के प्राइवेट वार्ड का खर्च सरकार वहन करेगी. विधायकों की तो बात ही अलग है.
लगभग हर राज्य में मस्ती. एक बार विधायक बन जाइये, राज भोगिए. जितना मन है, अपने क्षेत्र में घूमिए. सात रुपये से 20 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से तेल का पैसा सरकार से वसूलिए.
सरकार अधिकारियों को ड्राइवर समेत गाड़ी देती है सरकारी काम करने के लिए. ये सरकारी गाड़ियां उनकी पत्नी को बाजार कराती हैं, सिनेमा घर/पार्क या क्लब ले जाती हैं, बच्चों को स्कूल पहुंचाती हैं. देश के किसी भी शहर में शाम में निकल जाइए, वीआइपी गाड़ियां ‘साहब’ की फैमिली को ढोते दिख जायेंगी. कुछ अफसर अपवाद हो सकते हैं, पर इनकी संख्या नगण्य है.
जनता के पैसे पर ये ऐश करते हैं. पर कहीं कार्रवाई नहीं होती. कौन कार्रवाई करेगा? कार्रवाई करनेवाले खुद ही यही काम करते हैं. सिर्फ गोवा में हाल में ऐसा प्रावधान बना है कि सरकारी गाड़ी का निजी उपयोग करने से प्रतिमाह 500 रुपये कट जायेगा. जनता के टैक्स के पैसे से नेताओं/अधिकारियों को ऐश करना बंद करना चाहिए. यह इसलिए हो रहा है क्योंकि जनता जागी नहीं है. विरोध नहीं करती.
सोचती है कि कौन बैर लेगा. जिस दिन जनता जाग गयी, हिसाब मांगने लगेगी, पत्नी/बच्चों को सरकारी गाड़ियों में घुमाने के समय गाड़ी को घेरने लगे तब जनता की असली ताकत का पता चलेगा.