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लगन: जलती है हेडलाइट तो पढ़ता है भोला

भागलपुर: भागलपुर शहर के सराय चौक के समीप सड़क किनारे नाले के ढक्कन पर हर शाम छह बजे एक बच्च पिछले कई वर्षो से कॉपी और किताब लेकर पहुंचता है. वह भी इस उम्मीद के साथ कि गाड़ियां लगातार चलती रहेंगी और वह उसकी हेडलाइट की रोशनी में पढ़ाई कर लेगा. हेडलाइट का जो भी […]

भागलपुर: भागलपुर शहर के सराय चौक के समीप सड़क किनारे नाले के ढक्कन पर हर शाम छह बजे एक बच्च पिछले कई वर्षो से कॉपी और किताब लेकर पहुंचता है. वह भी इस उम्मीद के साथ कि गाड़ियां लगातार चलती रहेंगी और वह उसकी हेडलाइट की रोशनी में पढ़ाई कर लेगा. हेडलाइट का जो भी साथ मिलता है, उसमें वह रात नौ बजे तक पढ़ाई करता रहता है.

मिट्टी की दीवार पर कपड़े और बोरे की छत से बनी झोपड़ी में रहनेवाले 10 साल के भोला कुमार की पढ़ाई के प्रति भूख देख कचरा चुननेवाली उसकी मां को उम्मीद है कि एक दिन भोला बड़ा मुकाम हासिल कर लेगा.

अंगरेजी माध्यम स्कूलों के फर्राटेदार अंगरेजी बोलनेवाले बच्चे के सामने भले ही भोला न टिक पाये, पर बगैर किसी सुविधा और आधे पेट खाकर नियमित रूप से पढ़ने के मामले में शायद ही कोई भोला की बराबरी कर सके. भोला ने बताया कि अब तक कई अध्याय वह इसी हेडलाइट में पढ़ कर याद कर चुका है और कॉपी में लिख भी चुका है. लिखते-लिखते वाहन गुजर जाने पर उनकी लिखावट बिगड़ जाती है. लेकिन फिर दूसरी गाड़ियां आती हैं, तो सुधार कर लेते हैं. एक सवाल पर भोला का कहना था कि एक ही घर में वह, उसकी मां और उसका बड़ा भाई राजा कुमार रहता है. उसी में रोज शाम को खाना पकता है. चूल्हे से धुआं निकलने के कारण वह घर में बैठ कर पढ़ाई नहीं कर पाता और दूसरा डिबिया भी नहीं कि थोड़ा दूर हट कर पढ़ाई कर सके. गुरुवार को नाले के ढक्कन पर पढ़ रहे भोला की फोटो लेते वक्त कैमरा का फ्लैश जैसे जला, उसकी मां दौड़ी चली आयी. भोला की मां मीना देवी का कहना था कि कुछ ऐसा मत कर देना बाबू कि मेरा घर उजड़ जाये और भोला की पढ़ाई बरबाद हो जाये.
काफी समझाने के बाद वह कहती है कि भोला के पिता सुरेश पोद्दार खड़गपुर स्थित घर में व्यवसाय करते हैं. भोला की बेहतर पढ़ाई के लिए उसे उसके पिता के पास दो साल के लिए भेजे थे, लेकिन उम्र कम होने के कारण मां के बगैर नहीं रह पाता. भाग कर सराय चौक स्थित झोपड़ी में आ जाता है. खड़गपुर के एक सरकारी स्कूल में वह चौथी कक्षा में नामांकित है. भोला के पिता का सहयोग उनलोगों को नहीं मिलता है. इसी कारण पिछले 18 वर्ष से यहीं झोपड़ी बना कर रह रहे हैं.

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