कोलंबो : श्रीलंकाई संसद द्वारा जिस महत्वपूर्ण संशोधन को पिछले सप्ताह स्वीकार किया है, वह राष्ट्रपति की कार्यपालक शक्तियों को समाप्त करने की दिशा में एक अधूरा प्रयास मात्र है क्योंकि इससे इस शीर्ष पद की शक्तियों में महज 60 से 65 प्रतिशत की ही कटौती हुई है. यह जानकारी कानून के एक रचनाकार ने दी है. 19ए का मसौदा तैयार करने में शामिल रहे संवैधानिक वकील जे. विक्रमरत्ने ने कहा, ‘सरकार खुद भी सार्वजनिक तौर पर कह चुकी है यह पूरी तरह कारगर नहीं हो सकता.’
225 सदस्यीय संसद में 19वें संशोधन (19ए) के पक्ष में 215 वोट पडे जबकि इसके खिलाफ महज एक ही वोट पडा. विक्रमरत्ने ने कहा, ‘यदि आप राष्ट्रपति पद की शक्तियों के प्रतिशत की बात करें तो इसमें 60 से 65 प्रतिशत की कमी आई है. यह पहला महत्वपूर्ण कदम मात्र है.’ 19ए लेकर आना एक बडा चुनावी संकल्प था, जो राष्ट्रपति मैत्रिपाल सिरीसेना ने अपने चुनावी अभियान में लिया था.
उन्होंने लोकतांत्रिक सुधार के वृहद कार्यक्रम के आधार पर महिंदा राजपक्षे को हराया था. इस विधेयक ने किसी राष्ट्रपति द्वारा एक तय कार्यकाल से पहले संसद भंग किये जाने का अधिकार छीन लिया है. राष्ट्रपति तब तक संसद भंग नहीं कर सकते, जब तक अपने पांच वर्षीय कार्यकाल के साढे चार साल वह पूरे नहीं कर लेते.
विक्रमरत्ने ने कहा कि शासन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों का अराजनीतिकरण करने के लिए 11 आयोगों का गठन 19ए का एक प्रमुख बिंदु है. वर्ष 1978 में संविधान अंगीकार किये जाने के बाद से ही जनता इस व्यवस्था को खत्म करने की मांग करती रही है.