युवा काल अच्छी वस्तुओं को सीखने का समय है. लक्ष्य वही, जो समय को बदल दे. बेहतर करने के लिए अनोखी चिंता व पैशन दिखाना चाहिए. बड़े-बुजुर्गो का उचित सम्मान, उनकी सही देख-रेख हमारी प्राचीन परंपरा है. इन्हें जीवित रखना होगा. उच्च कोटि के इन आदर्शो को आत्मसात करना होगा. अपने बच्चों के हाथों में रुपये नहीं, संस्कारों की पोटली थमानी होगी. ताकि वरिष्ठ नागरिक खुशहाल रहें.
पश्चिमी सभ्यता की नकल, मॉडर्न होता समाज व विकास की अंधी दौड़ ने जीवन की रफ्तार को इतनी गति दी है कि लोग अपनों को भी पहचान पाने में असमर्थ हो रहे हैं. मौजूदा आर्थिक विकास मॉडल ने भोग के सपने जगाये हैं. विकास सुख, एशोआराम व पैसा अजर्न की अबोधगम्य हवा प्रचंड वेग से सर्वत्र बह रही है. इस जीवन दर्शन ने परिवार व समाज की हर मर्यादा तोड़ दी है. हर रिश्ता पीछे छूट गया है. दरअसल, आज समस्या सामाजिक पतन की है. आज बुजुर्ग अपने बच्चों के ऊपर बोझ हैं. अपने वर्तमान से दुखी व भविष्य को लेकर आशंकित हैं. तनाव व अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदयरोग से ग्रसित हो रहे हैं. यह चिंता का विषय है.
बुढ़ापा जीवन का एक अटूट सत्य है. परिवार बुजुर्गो का ऐसा सहारा बने, ताकि वे अपना शेष जीवन स्वस्थ रह कर सुखमय शांति पूर्वक व सम्मानजनक व्यतीत कर सकें. सेवा की ऐसी पवित्र और उदात्त भावना मनुष्य को धरातल से ऊपर उठाती है. परंतु आज वृद्धों की दुर्दशा देख सबकी आखें कोहरा जाती है. बोङिाल मन से भार स्वरूप किया गया उनकी सेवा-सत्कार तनाव व मानसिक पीड़ा देता है. युवाओं को इससे बचने की आवश्यकता है.
प्यार में अद्भुत शक्ति है, जो जीवन को हर्ष व उल्लास के सागर में गोते लगाने को प्रेरित तो करती ही है. अनगिनत रिश्तों का सृजन करती है. मानवीय रिश्ते तभी बनते हैं, जब लोग दिल से बुजुर्गो की सेवा करें, उन्हें उचित सम्मान दें. निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि सांवेगिक अनुभूति, वृहत्तर सहानुभूतियां अधिक उदार दृष्टि व भूतकाल का अधिक गंभीर मूल्यांकन हमारी उन्नत सोच व संस्कार के यथार्थ मूल्य हैं. अपने बच्चों के हाथों में रुपये नहीं, संस्कारों की पोटली थमानी होगी. वरिष्ठ नागरिक खुशहाल रहें. इसका ख्याल परिवार व समाज द्वारा सम्यक तौर किया जाना अपेक्षित है.