मंगलवार को न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और चक्रधारी शरण सिंह के दो सदस्यीय खंडपीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि स्पीकर कोर्ट के फैसले को एकलपीठ द्वारा बदला जाना सही नहीं था. खंडपीठ ने कहा कि याचिका में स्पीकर को पार्टी नहीं बनाया जाना चाहिए था. स्पीकर के कोर्ट का फैसला सही था. इधर, चारों बागियों के वकील ने कहा कि हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे.
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डबल बेंच का फैसला: चार बागियों की सदस्यता नहीं होगी बहाल, स्पीकर के फैसले पर मुहर
पटना: पटना हाइकोर्ट की अपीलीय बेंच ने जदयू के चार बागी विधायकों- ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार सिंह उर्फ बबलू, रवींद्र राय और राहुल कुमार की सदस्यता खत्म करने के विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है. मंगलवार को न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और चक्रधारी शरण सिंह के दो सदस्यीय खंडपीठ ने […]
पटना: पटना हाइकोर्ट की अपीलीय बेंच ने जदयू के चार बागी विधायकों- ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार सिंह उर्फ बबलू, रवींद्र राय और राहुल कुमार की सदस्यता खत्म करने के विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है.
जून, 2014 में बिहार से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव में जदयू के इन बागी विधायकों पर पार्टी के दो अधिकृत उम्मीदवारों मौलाना गुलाम रसूल बलियावी और पवन कुमार वर्मा के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अनिल शर्मा और साबिर अली को खड़ा करने, उनका प्रस्तावक व मतदान एजेंट बनने और उनके पक्ष में वोटिंग की अपील करने के आरोप लगे थे. जदयू के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार ने चारों विधायकों के खिलाफ संज्ञान लेते हुए इनकी सदस्यता समाप्त करने की विधानसभा अध्यक्ष से मांग की थी. जदयू का तर्क था कि चारों सदस्यों ने स्वत: पार्टी की सदस्यता त्याग दी है. चार माह की लंबी सुनवाई के बाद एक नवंबर, 2014 को विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने जदयू के इन चारों विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का फैसला सुनाया था. साथ ही इन्हें 15वीं विधानसभा के सदस्य रहने के नाते पूर्व विधायक के रूप में मिलनेवाली सुविधाओं से भी वंचित कर दिया गया था.
बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के उक्त नियमन के खिलाफ जदयू के इन चारों बागी विधायकों ने तीन नवंबर, 2014 को पटना हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस पर सुनवाई करते हुए न्यायधीश जेपी शरण की अदालत ने छह जनवरी, 2015 को स्पीकर के कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए कहा था कि दल-बदल और मतभिन्नता का समान अर्थ नहीं होता. न्यायधीश जेपी शरण ने सदस्यता रद्द करने के स्पीकर के फैसले को निरस्त करते हुए चारों विधायकों की सदस्यता फिर से बहाल करने के साथ सारी सुविधाएं जल्द मुहैया कराने का निर्देश भी दिया था. एकलपीठ के इस फैसले के खिलाफ बिहार विधानसभा सचिव और संसदीय कार्य मंत्री व सदन में जदयू के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार ने डबल बेंच में अपील की थी. इस पर हाइकोर्ट के न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और न्यायधीश चक्रधारी शरण सिंह ने न्यायधीश शरण के निर्णय को दरकिनार कर दिया और इन चारों विधायकों की सदस्यता बहाल करने से इनकार करते हुए अपनी टिप्पणी में कहा कि हम निर्णय लेने की प्रक्रिया में न तो किसी प्रकार की त्रुटि पाते हैं और न ही अध्यक्ष के निर्णय को दूषित पाते हैं.
चार अन्य बागियों का मामला भी कोर्ट के पास विचाराधीन
राज्यसभा उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवारों का विरोध करने के आरोप में जदयू के चार अन्य बागी विधायकों अजित कुमार (कांटी), राजू सिंह (साहेबगंज), पूनम देवी (दीघा) व सुरेश चंचल (सकरा) की भी विधानसभा की सदस्यता रद्द करने का फैसला स्पीकर के कोर्ट ने 27 दिसंबर, 2014 को सुनाया था. इस फैसले के खिलाफ इन बागियों ने सात जनवरी को हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस पर अभी फैसला आना बाकी है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पक्षधर जदयू के इन सभी आठों विधायकों को मांझी के गत 20 फरवरी को बिहार विधानसभा में विश्वासत मत हासिल करने के दौरान मतदान की अनुमति नहीं दी गयी थी.
पहली बार राहुल और रवींद्र बने थे विधायक, तो दूसरी बार 2010 में विधायक बने थे ज्ञानू और नीरज ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू दूसरी बार बाढ़ विधानसभा क्षेत्र से 2010 में विधायक निर्वाचित हुए थे. समता पार्टी के गठन के समय से हाल तक इन्हें नीतीश कुमार का करीबी माना जाता था. छातापुर के विधायक नीरज कुमार सिंह उर्फ बबलू तीसरी बार 2010 में निर्वाचित हुए थे. इसके पहले वह सुपौल जिले के ही राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से फरवरी और नवंबर, 2005 में विधायक निर्वाचित हुए थे. पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा पहली बार 2010 में घोसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए थे. जबकि, शरद यादव के करीबी माने जाने वाले रवींद्र राय भी 2010 में पहली बार महुआ विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए थे.
स्पीकर का फैसला शत प्रतिशत सही था. कोर्ट ने तय कर दिया कि उन्होंने दूध का दूध और पानी का पानी की तरह निर्णय दिया था.
श्रवण कुमार, विधानसभा में जदयू के मुख्य सचेतक
क्या हैं आरोप
इन पर जून, 2014 राज्यसभा उपचुनाव के दौरान पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशियों को खड़ा करने, उनके प्रस्तावक बनने, उनके निर्वाची पदाधिकारी व पोलिंग एजेंट बनने के आरोप हैं. इन पर जदयू के दूसरे सदस्यों से निर्दलीय प्रत्याशियों के पक्ष में वोटिंग की अपील करने का भी आरोप है. संविधान की 10वीं अनसूची के पैरा 2 (1) (क) के तहत इनकी सदस्यता रद्द की गयी है.
राज्यसभा उपचुनाव से शुरू हुआ मामला
02 जून, 2014 : राज्यसभा उपचुनाव की अधिसूचना
09 जून, 2014 : नामांकन का अंतिम दिन, दो निर्दलीय उम्मीदवारों का नामांकन
19 जून, 2014 : राज्यसभा की तीन सीटों के लिए मतदान, जदयू के 18 बागियों ने किया पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ मतदान
19 जून, 2014 : जदयू के तीनों अधिकृत उम्मीदवार शरद यादव, मौलाना गुलाम रसूल बलियावी और पवन कुमार वर्मा निर्वाचित
21 जून, 2014: चार विधायकों को नोटिस
01 नवंबर, 2014: विधानसभाध्यक्ष कोर्ट का सदस्यता समाप्त करने का फैसला
03 नवंबर, 2014 : स्पीकर के फैसले के खिलाफ चारों बागियों द्वारा हाइकोर्ट में याचिका दायर
06 जनवरी, 2015 : एकलपीठ ने चारों की विधायकी बहाल की
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