कई बार लोग अपनी चादर देखे बिना क्षमता से ज्यादा पैर फैला देते हैं, जिसका नतीजा होता है कि उन पर मासिक किस्तों (इएमआइ) का बोझ बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. इससे डिफॉल्ट की स्थिति आ सकती है. यानी, आपको कर्ज चुकाने में विफल करार दिया जा सकता है. डिफॉल्ट की वजह से आपकी बंधक संपत्ति नीलाम हो सकती है. साथ ही, क्रेडिट स्कोर खराब होने से भविष्य में भी कर्ज लेने में मुश्किल आ सकती है.
जब लगे कि आप किसी सूरत में कर्ज तय शिड्यूल के मुताबिक नहीं चुका पायेंगे, तो कर्जदाता से दूर भाग कर बचने की कोशिश बेवकूफी ही होगी. बैंक और कर्ज देनेवाली संस्थाएं यह समझते हैं कि कर्जदार के सामने कुछ बहुत वाजिब वजहें हो सकती हैं, जिसकी वजह से वह समय पर भुगतान नहीं नहीं कर पा रहा है. मसलन वह बीमार हो सकता है, उसकी नौकरी चली गयी हो सकती है, किसी हादसे की वजह से वह बिस्तर पर पड़ा हो सकता है. अगर आपने बुरा समय शुरू होने से पहले हमेशा मासिक किस्तों का भुगतान समय पर किया है, तो कर्ज देनेवाले आपके मामले में हमदर्दी से विचार कर सकते हैं. तो सबसे पहले आपको कर्ज देनेवाले बैंक या वित्तीय संस्थान से बात शुरू करनी चाहिए. आपके इरादे और आपका मामला कितना वाजिब है, इसके आधार पर बैंक ऐसे संभावित समाधानों पर गौर कर सकते हैं जो दोनों पक्षों को स्वीकार हों. इससे कर्ज लेनेवाले को यह फायदा होगा कि बंधक रखी संपत्ति पर उसे फिर से अधिकार मिल जायेगा. वहीं बैंक को यह लाभ होगा कि उसकी गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में और इजाफा होने से बच जायेगा.
क्या हो सकते हैं विकल्प
अवधि में बदलाव : आपकी वित्तीय स्थिति का विेषण करने के बाद अगर बैंक को लगता है कि मासिक किस्त का बड़ा होना आपके लिए समस्या है, तो वह कर्ज की मियाद को बढ़ा सकता है. इसके आपकी मासिक किस्तें नीचे आ जायेंगी. हालांकि इससे आपको ब्याज के रूप में ज्यादा रकम चुकानी पड़ेगी. लेकिन मुश्किल हालात में फौरी राहत का अपना महत्व होता है. जब दिन बदलें और आपका वक्त ठीक चल रहा हो, तब आप अपने बैंक से बातचीत कर अपनी किस्तों को बढ़वा कर पहले की तरह करवा लें. आप आंशिक पूर्व-भुगतान भी कर सकते हैं. इससे आप ब्याज के रूप में ज्यादा रकम चुकाने से बचेंगे. ऐसा करने से पहले पूर्व-भुगतान दंड का हिसाब लगा लें. गृह ऋण पर पूर्व-भुगतान दंड समाप्त किया जा चुका है, लेकिन अन्य तरह के कर्जो पर यह लागू होता है.
भुगतान टालना : अगर नौकरी बदलने या अन्य कारण से आनेवाले समय में आपकी आमद में बड़ा उछाल आने की उम्मीद हो, तो आप कुछ महीनों के लिए कर्ज के भुगतान से मोहलत ले सकते हैं. बैंक इसके लिए सहमत हो सकता है, पर तयशुदा समय पर भुगतान नहीं करने के लिए कुछ दंड वसूल सकता है.
कर्ज का पुनर्गठन : अगर बैंक को डिफॉल्ट की वजह वाजिब लगती है, तो बैंक गृह ऋण के मामले में कर्ज का पुनर्गठन (रीस्ट्रक्चरिंग) कर सकते हैं. रिजर्व बैंक ने इस बारे में कुछ दिशानिर्देश भी जारी किये हुए हैं. उदाहरण के लिए, अधिकतर मामलों में कर्ज की मियाद एक साल से ज्यादा के लिए नहीं बढ़ायी जा सकती. इसके बाद अगले कदम के रूप में सलाह दी जाती है कि कर्जदार के सहयोग से जमानत के रूप में रखी गयी संपत्ति को बेच कर कर्ज को समय से पूर्व ही चुकता कर दिया जाये.
एकमुश्त निबटारा : अगर आप कर्ज से छुटकारे की इच्छा जाहिर करें और बैंक को अपनी मौजूदा वित्तीय स्थिति से अवगत करायें, तो बैंक इस पर गौर करते हुए एकमुश्त निबटारे के बारे में सोच सकता है. हालांकि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके मामले में कितना दम है. बैंक आपको कुछ राशि और शुल्कों से छूट भी प्रदान कर सकता है. लेकिन अगर किसी भी तरह से कर्ज का निबटारा संभव नहीं है, तो आपको खुद को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया में जाना पड़ेगा.
कुल मिला कर समस्या से भागना कोई समाधान नहीं है. इससे आपको न सिर्फ मानसिक परेशानी उठानी पड़ेगी, बल्कि आप संबंधित संपत्ति से भी हाथ धो देंगे. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप कर्जदाता को इस बात से संतुष्ट कर पायें कि आपका इरादा कर्ज चुकाने का है. कर्ज बिगड़े नहीं, यह बैंकों के भी हित में होता है. इसलिए जैसे ही आपको यह महसूस होना शुरू हो कि कर्ज आपके लिए मुश्किल बनता जा रहा है, अपने बैंक से बातचीत शुरू करें. बिल्कुल अंतिम क्षणों का इंतजार न करें.