पिछले कुछ महीनों से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय में अलग तरह का प्रयोग किए जा रहे हैं.
इस प्रयोग का मक़सद गर्भ में पल रहे बच्चे पर ‘संस्कारों और शौर्य गाथाओं’ का असर देखना है.
भोपाल के गर्भ संस्कार तपोवन केंद्र का दावा है कि यहाँ गर्भवती महिलाओं को हिंदू संस्कारों और गर्भ संवाद के ज़रिए ‘स्वस्थ’ और ‘बुद्धिमान’ शिशु पैदा करने में मदद की जाती है.
इस केंद्र की प्रेरणा गुजरात के बाल विश्वविद्यालय से ली गई है. केंद्र को चलाने वालों के मुताबिक़ गुजरात में इसके अच्छे नतीजे देखे गए हैं.
असर
गांधीनगर की चाइल्ड यूनिवर्सिटी के साथ क़रार के बाद 2 अक्टूबर 2014 को भोपाल में इस केन्द्र की स्थापना की गई. गर्भवती महिलाओं के लिए पूरा कोर्स नौ महीने का है.
रोजाना तीन घंटे महिलाओं को कई तरह की चीजें बताई जाती हैं. मसलन भारतीय संस्कार, गर्भधारण से पहले की तैयारी, ध्यान, मंत्र, प्रार्थना, गर्भ संवाद वगैरह.
इसके अलावा उन्हें मधुर संगीत भी सुनाया जाता है, ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे का बेहतर विकास हो.
केन्द्र की संयोजक डॉक्टर रेखा रॉय कहती हैं, "संगीत से जच्चा का मन अच्छा और हल्का हो जाता है, लिहाज़ा कोख में पल रहे बच्चे पर उसका असर होना तय है.”
बातचीत के दौरान रेखा अपना उदाहरण साझा करती हैं, " मैंने अपनी गर्भवती बहू के कमरे में अपने बेटे की फोटो लगा दी. इसका असर ये हुआ कि मेरा पोता हूबहू मेरे बेटे जैसा हुआ. आप देखेंगे तो दंग रह जाएंगे.”
इस केंद्र में महिलाओं को योग, आसन, सूक्ष्म व्यायाम की शिक्षा भी दी जाती है. गर्भस्थ शिशु से संबंधित कहानियां, कविता, गीत, भजन, लोरी, कहावतें और मुहावरे सुनाए जाते हैं. गर्भावस्था में वस्त्रों, आभूषण और रंगों के चयन के बारे में बताया जाता है.
केन्द्र की इंस्ट्रक्टर रंजीता शर्मा के अनुसार फिलहाल करीब सोलह महिलाएं नियमित रूप से इस केंद्र में आ रही हैं और ज़्यादातर निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं.
पहला प्रयास
इस काम के लिए केन्द्र में करीब आधा दर्जन महिला प्रशिक्षिकाएं तैनात हैं. इस टीम ने गांधीनगर जाकर तीन दिन की ट्रेनिंग ली और उसके बाद काम शुरू किया है.
बकौल डॉक्टर रेखा रॉय, मध्यप्रदेश में ये पहला प्रयास है.
हालाँकि उनका दावा है कि गुजरात में इसके अच्छे नतीजे आए हैं. उनके मुताबिक जन्म के बाद गर्भस्थ शिशु में वास्तव में क्या परिवर्तन आए, यह गुजरात में पांच साल से चल रहे 210 केन्द्रों का मुआयना करने के बाद महसूस किया जा सकता है.
हालाँकि जो गर्भवती महिलाएं इस प्रयोग का हिस्सा हैं उनसे बात कर कोई साफ़ जवाब नहीं मिलता.
जवाहर चौक इलाके में रहने वाली रानी ठाकुर ने पिछले अक्टूबर में तपोवन केन्द्र जाना शुरू किया था. इस वर्ष सात फ़रवरी को वे मां बन गईं. उन्होंने बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम अनिष्का रखा है.
रानी कहती हैं, "मुझे सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि डिलीवरी नॉर्मल हुई. केन्द्र में एक्सरसाइज़ कराई जाती थी. अच्छी कहानियां सुनने को मिलती थीं. बिटिया में तेज़ी के साथ बदलाव दिखाई दे रहे हैं. वह डेढ़ माह की है पर अभी से खूब हंसती है."
माधुरी पंथी भी लगभग तीन माह तपोवन केन्द्र गईं. 25 जनवरी को उन्होंने बेटी को जन्म दिया.
वो कहती हैं, " पहली संतान है, लिहाजा मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है. यह ज़रूर है कि जैसा मैं सोचती थी, वैसी ही है हमारी बच्ची. उसमें तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं. तपोवन केन्द्र अच्छी जगह है, वहां जाने से मानसिक तौर पर राहत मिलती है. "
हिंदू संस्कार
हालाँकि शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एकलव्य की केन्द्र प्रभारी शशि सबलोक इन सब दावों से इत्तेफ़ाक नहीं रखतीं.
उनके मुताबिक़ यह लोगों को बेवकूफ बनाना भर है. सवालों के जवाब में वो खुद पूछती हैं, " कोख में पल रहे बच्चे को बाहर से श्लोक सुनाकर क्या हासिल होगा? "
वो कहती हैं, "व्यायाम और खान-पान की बात तो समझी जा सकती है, पर 21वीं सदी में यह विचार मेरे हिसाब से हास्यास्पद है. मगर जिस तरह की सरकार यहां चल रही है, उसकी छत्रछाया में यह होना आश्चर्य पैदा नहीं करता."
इस बीच, इस सवाल पर कि इस केंद्र में सिर्फ़ हिंदू संस्कारों की शिक्षा ही क्यों दी जा रही है, डॉक्टार रेखा रॉय कहती हैं कि ऐसा बिलकुल नहीं है.
उनके मुताबिक केंद्र में जो भी आएगा, उसे उसकी इच्छा के मुताबिक शिक्षा दी जाएगी.
प्रशिक्षिका बबीता सोलंकी ने बताया कि शुरू में तीन मुस्लिम महिलाएं आई थीं, लेकिन बाद में उन्होंने आना बंद कर दिया.
न आने की वजह को लेकर उनसे संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि घर के काम के कारण वो वक्त नहीं निकाल पातीं.
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