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यादों में नेतरहाट

एक वरिष्ठ नौकरशाह ने लिखी रोचक किताब नेतरहाट झारखंड के सबसे खूबसूरत पर्यटक स्थलों में से एक है. यह लातेहार जिले में है. नेतरहाट अपने प्राकृतिक सौंदर्य से ज्यादा नेतरहाट आवासीय विद्यालय के लिए जाना जाता है. एक समय में इस विद्यालय में पढ़ने का आकर्षण बहुत ज्यादा था, आज भी यह कम नहीं हुआ […]

एक वरिष्ठ नौकरशाह ने लिखी रोचक किताब
नेतरहाट झारखंड के सबसे खूबसूरत पर्यटक स्थलों में से एक है. यह लातेहार जिले में है. नेतरहाट अपने प्राकृतिक सौंदर्य से ज्यादा नेतरहाट आवासीय विद्यालय के लिए जाना जाता है. एक समय में इस विद्यालय में पढ़ने का आकर्षण बहुत ज्यादा था, आज भी यह कम नहीं हुआ है. इसी नेतरहाट पर हाल ही में ‘नेतरहाट और जीवन’ पुस्तक आयी है. इसके लेखक हैं डॉ त्रिनाथ मिश्र. उन्होंने अपनी पुस्तक नेतरहाट और जीवन में स्कूल के दिनों की अनेक रोचक घटनाओं का जिक्र किया है.
इस पुस्तक में उन दिनों के नेतरहाट, वहां के घने जंगल और वहां रह रहे जंगली जानवरों, स्कूल के आश्रम, वहां की जीवन शैली, छात्रों की दिनचर्या का रोचक वर्णन किया है. किताब में नेतरहाट के अजरुन के पेड़ और आसपास के पहाड़ों, सरहुल त्योहार का भी जिक्र है.
पुस्तक में इस बात का भी जिक्र है कि किस तरीके से शिक्षा दी जाती है कि वहां से प्रतिभाशाली बच्चे देश में महत्वपूर्ण पद पर जाते हैं, ज्ञान के साथ-साथ उनकी भाषा समृद्ध होती है, उनका आचरण मजबूत होता है. कैसे वहां रहनेवाले छात्रों को आत्मनिर्भर बनाया जाता है, वे किसी काम को छोटा नहीं समझते.
वैसे तो किताब में कई रोचक घटनाओं का जिक्र है लेकिन एक घटना है जंगली जानवरों के बारे में. आज खोजने से बाघ नहीं दिखता लेकिन उन दिनों बाघ-तेंदुआ, काले रीछ और लकड़बग्घा आसानी से दिख जाते थे. एक-दो बार तो शेर के भी दिखने की सूचना मिली थी.
कभी-कभार तो जंगली जानवर स्कूल कैंपस में घुस जाते थे. लेखक अपनी पुस्तक में एक ऐसी ही घटना का रोचक विवरण बताते हैं. स्कूल के आश्रम की खिड़कियां बड़ी-बड़ी होती थीं. उनमें सलाखें नहीं होती थीं. जाड़ा अधिक पड़ता था, कुहासा अंदर तक आ जाता था. लेखक जब प्रथम वर्ष के छात्र थे तो वे शांति आश्रम में रहते थे. तीन रिहायशी कमरे थे. एक दस बिछौने का कमरा था. दूसरे में चार और तीसरे में छह बिछौने (बेड) थे.
लेखक का बिछौना खिड़की के पास था. एक दिन सुबह उन्होंने देखा कि उनका गद्दा फटा है. नारियल के रेशे चारों ओर बिखरे पड़े हैं. लगा कि किसी जंगली जानवर को कुछ खाना नहीं मिला था तो उसने बिछौने पर खीझ निकाली थी. खिड़की के चौखट के पास कुछ पदचिह्न् थे लेकिन स्पष्ट नहीं थे. किसी ने शेर की आंशका जतायी तो किसी ने तेंदुआ की. इस घटना के बाद खिड़कियों में सलाखें लगा दी गयीं.
लेखक बताते हैं-कुछ दिनों बाद अचानक शोर सुना. बाहर आये तो देखा कि वहां लोग लाठी-डंडा लेकर खड़े हैं. वहां एक लंबा-चौड़ा आदमी खड़ा था. हाथ में टांगी और कंधे पर तेंदुआ का शव. उस आदमी का नाम भुक्खा था. उसने कुछ समय पहले ही तेंदुआ को मारा था और इस वीर काम के लिए इनाम पाने के लिए तेंदुआ को लेकर स्कूल आ गया था. कुछ लोग उसे अठन्नी-चवन्नी दे रहे थे. उसी समय पता चला कि जब वह शौच के लिए गया था तो एक तेंदुआ ने उस पर छलांग लगा दी थी.
भुक्खा फुर्तीला था. उसके पास ही टांगी थी. तेंदुए से तेज गति उसने हमला कर तेंदुआ को अधमरा कर दिया. फिर वह घर लौट गया. लालटेन लेकर वह फिर वहां गया और घायल तेंदुए का सिर कुचल दिया. फिर उसे कंधे पर लाद कर स्कूल के पास की कॉलोनी में आया था. प्रधानजी ने उसे पचास रु पये दिये थे.
लेखक डॉ मिश्र ने आगे एक और रोचक बात लिखी है. प्रधानजी के सहायक थे अक्षयवर नाथ मिश्र. उन्होंने भी भुक्खा को 50 रु पये दिये और तेंदुआ उससे ले लिया. फिर उन्होंने तेंदुआ के बगल में खड़ा होकर शिकारी की तरह फोटो खिंचवायी. उसे फ्रेम कर टांग दिया. जो भी आता, उसे वे बहादुरी का किस्सा सुनाते कि कैसे उन्होंने तेंदुआ को मारा था. एक बार लेखक जब उनसे मिलने गये तो उन्हें भी वही कहानी सुनाने लगे. इस पर लेखक ने उन्हें धीरे से कहा, यह तो भुक्खा वाला तेंदुआ लगता है.
परिचय
डॉ त्रिनाथ मिश्र नेतरहाट आवासीय विद्यालय के पहले बैच (1954) के छात्र रहे हैं. 1960 तक वे उसी विद्यालय के छात्र थे. नेतरहाट से पढ़ाई करने के बाद वह आइपीएस के लिए चुने गये. वह देश के चार प्रधानमंत्रियों- राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर और पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में एसपीजी के चीफ रहे. देश में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया. वह सीबीआइ के निदेशक भी रहे. डॉ मिश्र की पुस्तक का नाम है- नेतरहाट और जीवन.

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