बीती जुलाई में कार बाजार में बिक्री लगभग साढ़े सात फीसदी गिरी है. सिर्फ यूवी सेगमेंट ही इस उठापटक से अछूता दिख रहा है. ऐसा लग रहा है कि ग्राहक अब सिर्फ किफायती और पैसा वसूल सवारी नहीं चाह रहे हैं. वह या तो गाड़ी खरीदने के फैसले को रोक कर बैठे हैं या फिर अपने बजट को थोड़ा बढ़ा कर वो कार ले रहे हैं, जो उन्हें कुछ एक्स्ट्रा दे.
एक जलवा था, एक हंगामा था.. जब हर छोटी कार के एक-एक पहलू, एक-एक सेंटीमीटर को लेकर लंबी चर्चाएं होती थीं. लेकिन अब मार्केट की सच्चाई कुछ और बयान कर रही है. कम से कम ग्राहकों के बीच छोटी कारों को लेकर वैसी उत्सुकता नहीं है, जैसी पहले थी, जिसमें गाड़ियों की माइलेज के आंकड़े की रेस लगी थी. अब सवाल यही उठ रहा है कि क्या स्मॉल कार की कहानी खत्म हो गयी है भारत में?
पिछले कई महीनों से कारों की बिक्री लगातार गिर रही है. 2012 के हर महीने के मुकाबले 2013 के हर महीने में बिक्री के आंकड़े कार बाजार की दर्दनाक कहानी बयान कर रहे हैं. जुलाई में कार बाजार में लगभग साढ़े सात फीसदी बिक्री गिरी है. और यह लगातार नौवां महीना था, जब बिक्री गिरी है. चौंकानेवाली बात यह है कि यूटिलिटी गाड़ियों के सेगमेंट में, जहां पर कुछ गरमी दिख रही थी, भी जुलाई में 18 फीसदी की गिरावट आयी. और यह चौंकानेवाली खबर इसलिए, क्योंकि हाल के वक्त में अगर कोई सेगमेंट ऐसा है जो बाजार की उठापटक से अछूता था, तो वह यूवी सेगमेंट ही था. खास कर फोर्ड की इकोस्पोर्ट जैसी गाड़ियों की बुकिंग इस बात की गवाही दे रही थी और लग रहा था कि पूरा हिंदुस्तान एसयूवी ही खरीद रहा है.
होंडा की अमेज को देख कर भी ऐसा ही लग रहा था, जो एक छोटी सेडान कार है. बिक्री के आंकड़े फिलहाल कुछ और कह रहे हैं. लेकिन लग रहा है कि आनेवाले वक्त में ऐसा ही ट्रेंड रहेगा. अब ग्राहक कुछ एक्स्ट्रा चाह रहे हैं अपनी गाड़ी में. यहां तक कि सबसे सस्ती नैनो भी अपने इमेज बदलने की कोशिश कर रही है. टू-व्हीलर ग्राहकों को कार बाजार में खींचने की कोशिश का नतीजा तो टाटा मोटर्स देख चुका है. अब नये ऐड के जरिये समझ सकते हैं कि कंपनी नैनो को एक छोटी कूल कार बनाने की कोशिश में है. लेकिन वहां भी कुछ ऐसा धमाल नहीं दिख रहा है.
अभी हाल में मेरी मुलाकात हुई डैटसन के प्रोग्राम डायरेक्टर अश्विनी गुप्ता से. डैटसन दरअसल निसान का एक ब्रांड है, जिसे कंपनी ने सालों बाद फिर से जिंदा किया है. डैटसन छोटी, सस्ती और किफायती कारों वाला ब्रांड है. कंपनी भारत में भी कुछ ऐसा ही नाम कमाना चाहती है, जिसके लिए वह अगले साल अपनी छोटी कार गो लेकर आ रही है. लेकिन मेरे जेहन में सवाल यह था कि कंपनी ने भारतीय मार्केट को अपने इस ब्रांड को वापस लाने के लिए क्यों चुना? मेरे इस सवाल के जवाब में अश्विनी गुप्ता ने कहा कि भारत अब भी स्मॉल कारों का हब है और आनेवाले वक्त में यह मार्केट और बड़ा होगा. फिलहाल यह मार्केट करेक्शन के दौर से गुजर रहा है और जल्द तसवीर ज्यादा साफ होगी. कंपनी का दावा है कि अभी भी बहुत से पहलू ऐसे हैं, जो अब तक अनछुए हैं. छोटी कारों में भी कई ऐसे फीचर्स हैं, जो ग्राहक चाहते हैं और उन्हें मौजूदा कारों में वे मिल नहीं रहे हैं. कंपनी अपनी कार गो के साथ ऐसा ही कुछ करना चाहती है अगले साल, जिसकी कीमत 3 लाख से 4 लाख रुपये के बीच होगी.
सवाल यह भी है कि बाकी की कार कंपनियां, जो अपनी छोटी कारों के साथ कार बाजार पर कब्जा जमाये हुए हैं, क्या सोच रही हैं इनके बारे में. इस हिसाब से तो लग रहा है कि अभी भी बहुत कुछ एक्शन बाकी है इस सेगमेंट में. मारुति, जो अपनी छोटी कारों की बदौलत इस सेगमेंट पर कब्जा जमाये हुए है, वह भी कुछ नये वेरिएंट्स पर काम कर ही रही है, जिससे उसकी कारें ग्राहकों की नजर में फ्रेश रहें.
वहीं हुंडई, जो छोटी कारों के बाजार में मारुति को पीछे छोड़ना चाहती है, भी कई छोटी कारों को भारत में लॉन्च करनेवाली है. इनमें सबसे पहले तो ग्रैंड 10 आनेवाली है सितंबर में. भारतीय बाजार को खास तवज्जो देते हुए कंपनी इस कार को पहले भारत में उतार रही है. जर्मनी में डिजाइन की गयी इस नयी आइ 10 का नाम हालांकि ग्रैंड जुड़ने से बहुत नया तो नहीं हो गया है, लेकिन कंपनी इसे बिल्कुल नये प्रोडक्ट के तौर पर उतार रही है. लुक में तो इसके बदलाव है ही, साथ में इसके अंदर भी कंपनी ने कई तब्दीलियां की हैं. सबसे ज्यादा जोर दिया जा रहा है स्पेस पर. फिलहाल इसे मौजूदा आइ 10 और आइ 20 के बीच उतारा जायेगा. इसे ड्राइव करने के बाद मैं इसके बारे में और तफ्सील से बता पाऊंगा. फिलहाल तो इसके लॉन्च और कीमत का ही इंतजार है. इसके अलावा कुछ और कंपनियां कॉम्पैक्ट कारों पर काम कर रही हैं.
बाजार और ग्राहकों को लेकर मेरी जानकारी का एक खास जरिया है लोगों से बातचीत, कंपनियों से बातचीत. टीवी-अखबार की खबरें एक हद तक जानकारी देती हैं. तसवीर का एक पहलू. गाड़ी खरीदने से लेकर उनसे जुड़ी आम जानकारी तक के लिए मेरे पास दर्शक, सहयोगी और जानकारों के जो सवाल आते हैं वो मुङो एक आइडिया देते हैं कि इन दिनों ग्राहकों के जेहन में क्या चल रहा है. और इस तरीके से जो भी जानकारी मैं जुटा रहा था, उससे यही लग रहा था कि ग्राहक अब सिर्फ किफायती और पैसा वसूल सवारी नहीं चाह रहे हैं. अपनी पहचान और पर्सनैलिटी स्टेटमेंट को लेकर पहले से सतर्क आज के ग्राहक या तो गाड़ी खरीदने के फैसले को रोक कर बैठे हैं या फिर अपने बजट को थोड़ा बढ़ा कर वो कार ले रहे हैं, जो उन्हें कुछ एक्स्ट्रा दे. इन सबके बीच बहुत दिनों से छोटी कारों की चर्चा और उत्सुकता बिल्कुल कम हो रही थी. मेरे सवाल का आधार वही था कि आखिर क्या वाकई छोटी कारों के सेगमेंट में नये प्रोडक्ट की गुंजाइश है? और कार कंपनियों से जो जानकारी मिल रही है, उसके हिसाब से लग रहा है कि गुंजाइश है. नयी सवारी की भी और बाजार में बढ़ोतरी की भी.