रजनीश आनंद, प्रभात खबर.कॉम
यूं तो झारखंड के आदिवासी समाज में लिंग भेद नहीं किया जाता है, बावजूद इसके आज भी समाज लड़कियों को खासकर खेल में रुचि रखने वाली लड़कियों को उतना प्रोत्साहन नहीं देता कि वे आसानी से आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लें. ऐसे में अगर सुदूर ग्रामीण इलाके से निकलकर कोई लड़की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ले, तो इसे महिला सशक्तीकरण और उनकी जागरूकता का अनूठा उदाहरण ही माना जायेगा. जी हां, हम बात कर रहे हैं पश्चिम सिंहभूम जिले के बंदगांव, कटवा गांव निवासी बिगन सोय की.
20 वर्षीय बिगन सोय ने जर्मनी के मोंशेंग्लाबाख में आयोजित जूनियर हॉकी विश्व चैंपियन में देश को कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभायी. इंग्लैंड के साथ खेले गये रोमांचक मैच में बिगन ने अद्भुत खेल दिखाते हुए फाइनल शूट आउट में विपक्षी टीम की ओर से दागे गये आठ में से छह गोल को रोका और अपनी टीम को 3-2 से जीत दिलायी. चौंकाने वाली बात यह है कि इस चैंपियनशिप के किसी भी मुकाबले में बिगन को खेलने का मौका नहीं मिला था, यहां तक की निर्णायक मैच में भी उन्हें कुछ मिनटों के लिए उतारा गया. लेकिन वे हतोत्साहित नहीं हुईं और अपने अंदर खेल के जज्बे को जीवित रखा.
बिगन सोय बचपन से ही काफी मेधावी थीं, न सिर्फ पढ़ाई में बल्कि खेलकूद के प्रति भी उनका काफी रुझान था. हालांकि उनके घर वाले उन्हें खेलने-कूदने से रोकते थे, लेकिन बिगन के मन में खेल को लेकर जुनून था. बिगन जब दूसरी कक्षा में पढ़ती थीं, उसी समय से वह हॉकी खेल रही हैं. लेकिन उनकी खेल की औपचारिक शिक्षा तब शुरू हुई, जब वह कक्षा पांच में पहुंची. बिगन बंदगांव के लंबई स्थित कन्या आश्रम में दूसरी कक्षा से पढ़ रही थीं, तब वे हॉकी के साथ-साथ फुटबॉल भी खेलती थीं, लेकिन प्रशिक्षकों ने ऐसा महसूस किया कि उन्हें हॉकी में ज्यादा रुचि है, इसलिए उन्हें हॉकी में ही भविष्य बनाने की सलाह दी गयी.
बिगन बताती हैं कि वे अपने गांव में बांस की बनी स्टिक से हॉकी खेलती थीं, उस समय उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिलता था. लोग अक्सर कहते थे कि लड़की को खेलकूद का क्या फायदा. घर वाले भी उन्हें खेल की बजाय घर के कामकाज में ध्यान लगाने की सलाह देते थे. घर की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी, अत: बिगन के पास संसाधनों की कमी थी, लेकिन बिगन ने हार नहीं मानी और जब उन्हें अपने स्कूल में प्रतिभा निखारने का मौका मिला, तो वे पीछे नहीं हटीं. बिगन कन्या आश्रम के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहीं थीं.
उनकी प्रशिक्षक बेला मुंडारी कहती हैं कि बिगन में हॉकी को लेकर जुनून है, जिसे हमने महसूस किया है, इसलिए जब वह अच्छा खेल दिखाने लगी तो हमने उसे रांची के बरियातू में स्थित प्रशिक्षण सेंटर भेज दिया और जिसका नतीजा आज हमारे सामने है. बिगन जब ग्रामीण इलाकों में मशहूर खस्सी टूर्नामेंट खेला करतीं थीं, तो उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि वे कभी विदेश जाकर अपने अद्भुत खेल का प्रदर्शन करेंगी. जब झारखंड सरकार ने बिगन को पांच लाख की राशि पुरस्कार स्वरूप दी, तो उन्होंने कहा कि मैंने कभी सोचा नहीं था कि यह दिन मेरे जीवन में आयेगा. बिगन ने बताया कि वह पहले मैदान पर फॉरवर्ड खिलाड़ी के रूप में खेलती थीं, लेकिन इस रूप में उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली. तब प्रशिक्षकों की सलाह पर उन्होंने गोलकीपर के रूप में भाग्य आजमाया और आज वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छे गोलकीपरों में शामिल हो गयी हैं.
गौरतलब है कि बंदगांव पश्चिम सिंहभूम का काफी सुदूरवर्ती इलाका है, जहां जीवन की बुनियादी सुविधाएं भी आसानी से मयस्सर नहीं है. खेल को बढ़ावा देने के लिए न तो पर्याप्त संस्थान हैं और न ही सुविधाएं. ऐसे में बिगन सोय का खेल के मैदान में अपना नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंकित करना उनकी अपनी प्रतिभा और परिश्रम का परिणाम है. बिगन की इच्छा है कि वह देश के सीनियर टीम के लिए खेले और अपने देश को ओलिंपिक में स्वर्ण दिलाये, ताकि उनके प्रदेश झारखंड का नाम रोशन हो. बिगन का मानना है कि अगर झारखंड की लड़कियों को भेदभाव के बिना सही प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मिले, तो वे किसी से भी कम नहीं हैं.
बिगन की प्रशिक्षक बेला मुंडारी : बेला बताती हैं कि बिगन जब छह वर्ष की थीं, उस वक्त उनके स्कूल में आयीं थीं. खेल के प्रति उसकी रुचि उसी समय से जाहिर होती थी. लेकिन उसे औपचारिक प्रशिक्षण कक्षा पांच से मिलना शुरू हुआ. यूं तो बिगन फुटबॉल भी खेलतीं थीं, लेकिन हॉकी ज्यादा बेहतर खेलती थी. अत: आठवीं कक्षा के बाद उन्हें प्रशिक्षण के लिए रांची के बरियातू स्कूल में भेज दिया गया. बेला बताती हैं कि बिगन मैदान पर आक्रामक खेल का प्रदर्शन करती हैं. स्वभाव से वह काफी मिलनसार भी हैं. मेरी यह ख्वाहिश है कि बिगन सीनियर टीम के लिए खेले और देश के लिए ओलिंपिक में स्वर्ण लेकर आये.