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पशुपालन से नस्ल सुधार तक की पहल

एएससीएडी प्रशिक्षण योजना यह भी सौ फीसदी केंद्र प्रयोजित योजना है. इसके तहत पशु चिकित्सकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, ताकि वे पशु के रोगों, उनके रोगों की पहचान और चिकित्सा को लेकर अपने ज्ञान का स्तर बढ़ा सकें. इस पर होने वाले सभी खर्च भारत सरकार देती है. इसका मकसद है […]

एएससीएडी प्रशिक्षण योजना

यह भी सौ फीसदी केंद्र प्रयोजित योजना है. इसके तहत पशु चिकित्सकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, ताकि वे पशु के रोगों, उनके रोगों की पहचान और चिकित्सा को लेकर अपने ज्ञान का स्तर बढ़ा सकें. इस पर होने वाले सभी खर्च भारत सरकार देती है. इसका मकसद है कि पशु चिकित्सा विज्ञान की जानकारी ग्रामीण स्तर पर कार्य कर रहे पशु चिकित्सों को दी सके, ताकि पशुओं को बेहतर इलाज वे कर सकें.

पशुधन गणना कार्यक्रम
आप जानते हैं कि जिस प्रकार हर दस साल पर आदमी की गिनती या जनगणना होती है, उसी प्रकार हर पांच साल पर देश भर में पशुधन की गणना की जाती है. यह राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम होता है और इस कार्य में होने वाला सारा खर्च भारत सरकार देती है. यह बेहद महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, क्योंकि इससे देश में पशुधन, उनकी नस्ल, उनकी स्थिति आदि की जानकारी इकट्ठा की जाती है और उसी के आधार पर उनके लिए राष्ट्रीय स्तर पर योजनाएं बनती हैं.मोबाइल पालीक्लिनिक एवं

रेफरल पशु चिकित्सालय योजना
राज्य में पशु चिकित्सा व्यवस्था को सुगम और प्रभावी बनाने के लिए यह योजना चल रही है. इसके तहत राज्य में चार चलंत चार चिकित्सालय रांची, जमशेदपुर, धनबाद और गढ़वा तथा एक रेफरल पशु अस्पताल दुमका को आधारभूत सुविधा व संसाधन तथा इनके संचालन पर होने वाला खर्च वहन किया जाना है.

पशु रोगों का नियंत्रण
इस योजना का मुख्य उद्देश्य रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी से पशुओं को बचाना है. इसके लिए इन रोगों के जनक विषाणुओं की पड़ताल के लिए संगठित और संगठित पॉल्ट्री फॉर्म में पक्षियों की जांच की जाती है. जांच में रोगों के लक्षण मिलने पर तुरंत कार्रवाई की जाती है और किसानों को सावधान किया जाता है.

फ्रोजन सीमेन बैंक
इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय गैर क्रमित दुधारू पशुओं में आनुवंशिक सुधार करना है. इसके लिए पशुपालन विभाग द्वारा 405 कृत्रिम शुक्र सेचन केंद्रों बनाये गये हैं. इन केंद्रों में तरल नाइट्रोजन और जमे हुए वीर्य की निर्बाध आपूर्ति की जाती है. यही दोनों ही इस योजना की जीवन रेखा है. इस योजना का लाभ कोई भी पशुपालक ले सकता है.

पशु संवर्धन योजना
झारखंड में आम तौर पर दुधारू और अन्य पशुधन ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जिनका नस्ल कमजोर है. इस नस्ल में सुधार के लिए उन्नत किस्म के और विदेशी बैलों कर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अंधाधुन क्रॉस से अब स्थिति विपरीत बन गयी है. एक तो ऐसे बैलों की अपनी क्षमता कम होती है. दूसरा कि उन्नत नस्ल के बैलों की संख्या कम है. इस कमजोर बैलों के क्रॉस से पैदा होने वाले बछड़ों में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो रहे हैं. वे कमजोर भी पैदा हो रहे हैं और नस्ल सुघारने का लक्ष्य पूरा होने की बजाय इसका उलटा प्रभाव पड़ रहा है. इस स्थिति से निबटने और समस्या के समाधान के लिए कृषि विभाग ने यह योजना शुरू की है. इसमें विकारमुक्त पशुधन प्रजनन की व्यवस्था है. इसके तहत उन्नत किस्म के और विदेशी नस्ल के बैलों के पालन एवं विकास पर जोर है.

कुक्कुट – विकास
कुक्कुट पालन राज्य के किसानों की अतिरिक्त आय और बेरोजगारों के लिए रोजगार का एक बेहतर जरिया है. राज्य में कुक्कुट पालन की सभी संभावनाएं हैं और यहां का जलवायु भी इसके अनुकूल है, लेकिन इसके बाद भी राज्य में कुल मांग के अनुपात में उत्पादन कम है. इस मांग को दूसरे राज्यों से मुर्गा-मुर्गी लाकर पूरा किया जा रहा है. कृषि विभाग ने राज्य में अनुदानित दर पर कुक्कुट पालन को बढ़ावा देने की योजना चला रहा है. राज्य में रांची और बोकारो में पोल्ट्री फॉम है.

पशुपालन व मत्स्य विभाग का ढांचा

सचिवालय स्तर

प्रधान सचिव

उप सचिव

निदेशालय स्तर

निदेशक (पशुपालन)

निदेशक (मत्स्य)

निदेशक (डेयरी विकास)

सहायक निदेशक (डेयरी)

संयुक्त निदेशक (पशुपालन)

उप पशुपालन निदेशक (योजना)

उप पशुपालन निदेशक (सूअर विकास)

जिला स्तर (पशुपालन)

जिला पशुपालन पदाधिकारी

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