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बिहार : पटरी पर राज्य की अर्थव्यवस्था
राज्य सरकार ने बुधवार को बिहार विधानसभा में वर्ष 2014-15 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया. इसमें कहा गया कि बिहार की अर्थव्यवस्था की हाल की विकास प्रक्रिया सशक्त और टिकाऊ रही है. कई तरह की चुनौतियों के बावजूद प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है. सामाजिक सेवाओं पर पहले की तुलना में खर्च बढ़े हैं, लेकिन औद्योगिक […]
राज्य सरकार ने बुधवार को बिहार विधानसभा में वर्ष 2014-15 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया. इसमें कहा गया कि बिहार की अर्थव्यवस्था की हाल की विकास प्रक्रिया सशक्त और टिकाऊ रही है. कई तरह की चुनौतियों के बावजूद प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है. सामाजिक सेवाओं पर पहले की तुलना में खर्च बढ़े हैं, लेकिन औद्योगिक निवेश विकास की राह में अब भी बड़ी चुनौती बना हुआ है. बिजली के मामले में बिहार तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, लेकिन बैंकिंग सेक्टर की पहुंच बढ़ाने का कार्यभार पूरा करना बाकी है.
शैबाल गुप्ता
अर्थशास्त्री
एवं सदस्य सचिव आद्री
2014-15 के बिहार सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिहार की अर्थव्यवस्था ओवर ऑल मजबूत हुई है. कुशल वित्तीय प्रबंधन के चलते एफआरबीएम अधिनियम के प्रावधानों पर बिहार खरा उतरा है. साख जमा अनुपात (सीडी रेशियो) में बढोतरी हुई है.
राष्ट्रीय स्तर पर विकास दर में कमी आने के बावजूद बिहार का विकास दर अभी भी सबसे ऊंचा बना होना इस बात का प्रमाण है कि राज्य की अर्थव्यवस्था पटरी पर है. इसमें लगातार सुधार आया है और कहीं से भी नकारात्मक या नीचे जाने का संकेत नहीं है. यह बिहार के लिए उम्मीद जगाने वाली बात है. एक दशक पहले तक की स्थिति से तुलना करने पर हम पाते हैं कि न केवल योजना आकार बढ़ा है, बल्कि प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ा है. राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार की प्रति व्यक्ति आय का अंतर भी कम हो रहा है.
बिहार की अर्थव्यवस्था स्थिर हो गयी है. इ-रिवर्सेबल नहीं है. इसके संकेत नही दिख रहे. अर्थव्यवस्था का रूझान सकारात्मक दिख रहा है. वित्तीय घाटे का अनुपात एफआरबीएम एक्ट के प्रावधानों के अनुकूल ही है. सरकार के वित्तीय प्रबंधन के चलते सरकार की पूंजीगत ताकत बढ़ी है. एक मायने में यह कहा जा सकता है कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था मैच्योर स्थिति में आ गयी है. साख जमा अनुपात को लेकर बिहार की चिंता बनी रहती थी. इसमें भी अपेक्षित सुधार आया है.
अब यह अनुपात 46 प्रतिशत पर पहुंच गया है. इसका सीधा अर्थ है कि राज्य में निवेश हुए हैं. सीडी रेशियों में बढोतरी का संबंध आम लोगों के निवेश से नहीं होता. वित्तीय लेन-देन से रोजगार के क्षेत्र पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा. ओवर ऑल इकोनोमी के सपोर्ट के कारण ही सरकार ने योजना आकार में भारी बढ़ोतरी की है. 2005 के पहले जो स्थिति थी, उसे मौजूदा समय से तुलना करने पर जमीन-आसमान का फर्क नजर आता है. बजट आकार भी बढ़ा है. वर्ष 2000 में बिहार विभाजन के बाद बिहार की इकोनॉमी को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई थी. लेकिन, अब सीडी रेशियों में बढोतरी, विकास दर का उंचा रहना और वित्तीय घाटे पर नियंत्रण से तसवीर साफ होती जा रही है.
अब इकोनॉमी स्टेबल हो गयी है. निर्माण के क्षेत्र में सुधार आया है. राज्य सरकार का अपना कर राजस्व सालाना 25 प्रतिशत की दर से बढा है. 2009-10 में 8090 करोड़ रुपये की कर उगाही हुई थी. यह वर्ष 2013-14 में बढ कर 19961 करोड़ रुपये हो गया. यह सिलसिला लगातार जारी है. यह कुशल वित्तीय प्रबंधन की ओर इशारा करता है. विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिए नीति का फोकस अधिसंरचना विकास हेतु निवेश पर होरहा है.
शिक्षा, स्वास्थ्य पर जोर जरूरी
डॉ नंदिनी मेहता
विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र, जेडी वीमेंस कालेज
बिहार की अर्थव्यवस्था को बेहतर माना जा सकता. लेकिन, आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र को प्राथमिकता सूची में जगह देनी होगी. यह चुनावी साल है. सरकार को अपनी प्राथमिकता सूची तय करनी होगी और यह भी देखना होगा कि वह अपनी विकास योजनाओं को कैसे पूरा करेगी. इसके लिए पैसे कहां से जुटाये जा सकते हैं.
यह सही है कि वार्षिक विकास दर में कमी आयी है. वह दो अंकों से एक अंक पर सिमट गयी है. बावजूद दूसरे राज्यों से बिहार की स्थिति बेहतर है. विकास दर में कमी आना बिहार जैसे पिछड़े राज्य की सेहत के लिए सही नहीं है. लेकिन, सरकार को प्राथमिकता सूची पर ध्यान केंद्रित करना होगा,तभी विकास की रफ्तार में तेजी आयेगी.
अर्थव्यवस्था पटरी पर रहे, इसके लिए किसी भी प्रदेश में राजनीति, ब्यूरोक्रेसी और कानून व्यवस्था की स्थिति का सही होना आवश्यक होता है. इस दृष्टि से दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार की स्थिति अच्छी मानी जा सकती है. प्रति व्यक्ति आमदनी में अभी भी हम अन्य राज्यों से पीछे बने हुए हैं. प्रति व्यक्ति आय में सुधार आया है लेकिन, राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार बहुत पीछे हैं. यह बड़ी खाई है जिसे भरा जाना आवश्यक है. इसके लिए सरकार को दीर्घकालिक उपाय करने होंगे. आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि खेती, किसानी पर भी सरकार को फोकस करना होगा. सेक्टोरल डेवलपमेंट के मामले में प्रगति हुई है. अब प्राइमरी सेक्टर से सेकेंडरी सेक्टर पर ध्यान केंद्रित हुआ है. प्राइमरी सेक्टर का महत्व कम होता जा रहा है. विकास की परिभाषा में इसे मानक माना जाता है. सर्वेक्षण में फिजिकल डेफिसिट कम होने की बात कही गयी है. इसके बावजूद अभी 54 हजार करोड़ रुपये का कर्ज सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है. कुल मिलाकर राज्य की आर्थिक स्थिति बेहतर कही जा सकती है. शिक्षा के क्षेत्र चाहे प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा क्यों नहीं हो. इसको प्राथमिकता सूची में ऊपर रखना जरूरी होगा. इसे बेहतर किये बिना अर्थव्यवस्था को बेहतर नहीं माना जा सकता. सामाजिक क्षेत्र में खासकर महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में सरकार को कई कदम उठाने होंगे.अस्पतालों की स्थिति पहले से बेहतर हुई है. यहां संस्थागत प्रसव की संख्या भी बढ़ी है, लेकिन अभी भी इस दिशा में कई कदम उठाये जाने की जरूरत है.
सामाजिक सेवाओं पर बढ़ रहा खर्च
हाल के वर्षो में बिहार की अर्थव्यवस्था के विकास की गति काफी तेज रही है. वर्ष 2009-10 से 2012-13 के बीच अर्थव्यवस्था 11.3}की वार्षिक वृद्धि दर से विकसित हुई. इस दौरान राज्य सरकार ने अपना विकास व्यय भी बढ़ाया. इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में मानव विकास अच्छा खासा रहा खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में. पिछले पांच वर्षो के दौरान बिहार में प्रति व्यक्ति विकास की दर व्यय संपूर्ण भारत के औसत (16.8}) के लगभग समान (15.2}) रही है. वर्ष 2009-10 में बिहार ने सामाजिक सेवाओं पर प्रति व्यक्ति 1438 रुपये खर्च किए जो 2013-14 में बढ़कर 2423 रुपये हो गए. फिलहाल कुल व्यय में सामाजिक सेवाओं पर खर्च का हिस्सा 32.5} है.
उद्योग : 1891 प्रस्ताव, सिर्फ 272 शुरू
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक अनेक निवेश प्रस्तावों के बावजूद बिहार अभी भी औद्योगिक रूप से कमजोर बना हुआ है. राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड ने अभी तक 1891 प्रस्तावों को मंजूरी दी है. उनमें से 272 इकाईयों ने काम करना शुरू किया है. इनमें से लगभग 60 प्रतिशत प्रस्ताव खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों के लिए है. बिहार में औद्योगिकरण के लिए जिन क्षेत्रों की पहचान की है उनमें खाद्य प्रसंस्करण, सूचना-प्रौद्योगिकी, पर्यटन, कृषि आधारित उद्योग और वस्त्र उद्योग शामिल है.
सीडी रेशियो में वृद्धि शुभ संकेत
आर्थिक सव्रेक्षण 2014-15 की रिपोर्ट के मुताबिक सीडी रेशियो में पिछले साल के 40 प्रतिशत की तुलना में 46.51 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त विभाग के प्रधान सचिव रामेश्वर सिंह ने बताया कि बैंकों का सीडी रेशियो बढ़ने का मतलब आर्थिक स्थिति में सुधार आना है. यह सही है कि राज्य में कोई बड़ा निवेश नहीं हुआ है, लेकिन छोटे-छोटे स्तर पर निवेश हो रहे हैं. लघु और मध्यम उद्योगों में बढ़ोतरी हुई है. उद्योगों के ग्रोथ में यह अच्छा संकेत है. उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी बैंकों को इससे संबंधित सख्त हिदायत दी है.
कृषि सेक्टर का ग्रोथ निगेटिव
राज्य के जीडीपी में कृषि का योगदान करीब 22 प्रतिशत है. पिछले सालों की तुलना में कृषि क्षेत्र के योगदान में पांच प्रतिशत की कमी आयी है. इसके साथ ही इस साल में 11.58 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है. जबकि पिछले साल इसमें 9.23 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी थी. इसके अलावा पशुपालन, मत्यस्य समेत प्राइमरी सेक्टर में 10.03 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है. जबकि निर्माण, आधारभूत संरचना विकास समेत अन्य सेकेंडरी सेक्टर में 11.57 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है.
‘22 माह में बिहार पिछड़ गया’
पटना : भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने राज्य सरकार के आर्थिक सव्रेक्षण रिपोर्ट आने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में बताया कि भाजपा का यह आरोप प्रमाणित हो गया है कि पिछले 22 महीने में सभी क्षेत्रों में बिहार पिछड़ता चला गया है. पिछले तीन सालों में सबसे कम आर्थिक विकास दर वर्ष 2013-14 में दर्ज की गई . अनेक क्षेत्रों में वर्ष 2013-14 के आंकडे निराशाजनक होने के कारण ही आर्थिक सर्वेक्षण में प्रदर्शित नहीं किये गये है.
छले तीन साल में सबसे कम आर्थिक विकास दर यानी स्थिर मूल्यों पर राज्य सकल घरेलु उत्पाद (जीएसडीपी)वर्ष 2013-14 में मात्र 8.56 प्रतिशत दर्ज की गई . जबकि 2012-13 में यह 9़.31 तथा वर्ष 2011-12 में 8.़82 फीसदी थी. बिहार में कृषि रोड मैप भी बुरी तरह से विफल साबित हुआ है. साल 2013-14 में कृषि विकास दर ऋणात्मक 11. 58 प्रतिशत रही है, जबकि 2012-13 में यह 9. ़23 और 2011-12 में 13़.53 प्रतिशत रही थी.
उर्वरक की खपत भी वर्ष 2012-13 में जहां 31 लाख मीटरिक टन था वहीं 2013-14 में घट कर 26 लाख मीटरिक टन हो गया. भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद राजनीतिक अस्थिरता की वजह से जदयू के शासनकाल में सभी क्षेत्रों में विकास निराशाजनक है. कृषि रोड मैप की विफलता के कारण कृषि में विकास दर ऋणात्मक हो गया. सरकार की विफलता आर्थिक सर्वेक्षण में प्रतिबिंबित हुई है.
‘आंकड़ों के बाजीगर हैं मोदी’
पटना : जदयू के प्रवक्ता और विधान पार्षद संजय सिंह ने कहा कि भाजपा नेता सुशील मोदी आंकड़ों की बाजीगरी खूब जानते हैं और इसमें बिहार की आम जनता को भी खूब फंसाते हैं. वे जो आंकड़े पेश कर रहे हैं उन विकास के आंकड़ों की हकीकत यह है कि नीतीश कुमार ने अपनी सूझ-बूझ और नीति की वजह से ही बिहार जहां माइनस में था उसे प्लस में लाया है. केंद्र सरकार की तरफ से बिहार की अनदेखी करने और केंद्र की उदासीनता के बावजूद इस प्रदेश के विकास को लेकर दृढ़ निश्चय कमजोर नहीं हुआ है.
योजना आयोग के आंकड़े बताते हैं कि साल 1960-61 से 1968-70 के बीच बिहार का देश में सबसे कम 0.7 प्रतशित सकल घरेलू उत्पाद दर था. इससे बिहार को नीतीश कुमार ने बाहर निकालने का काम किया है और बिहार हर क्षेत्र में विकास का नया कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय औसत से बिहार का साक्षरता विकास दर बहुत आगे है. देश का औसत साक्षरता विकास दर 9.28 फीसदी है, वहीं बिहार औसत साक्षरता विकास दर 16.82 फीसदी है. जदयू प्रवक्ता ने कहा कि सुशील मोदी ने खुद माना है बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, विशेष पैकेज की कितनी जरूरत है, लेकिन वे प्रधानमंत्री के साथ मिल कर गाल में गाल बजाते हैं. नीतीश कुमार जब भी केंद्र से ठोस परिणाम की बात करते हैं तब सुशील मोदी केंद्र से मिल कर योजनाओं को कारगर नहीं होने देते हैं.
5. सुधरने लगी सेहत
राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का नतीजा है कि सरकारी अस्पतालों में पहुंचने वाले रोगियों की संख्या में इजाफा हुआ है. वर्ष 2007 में सरकारी अस्पतालों में प्रति माह औसत 3077 रोगी आते थे. वर्ष 2013 इनकी संख्या बढ़कर 11464 हो गई. इसी तरह संस्थागत प्रसव में बढ़ोतरी हुई. वर्ष 2013-14 में संस्थागत प्रसव की संख्या 16.5 लाख थी.
6. विकास पर खर्च 29} बढ़ा
पिछले एक साल में महिला विकास पर खर्च 29 फीसदी बढ़ा है. वर्ष 2014-15 में महिलाओं के लिए चल रही योजनाओं पर कुल बजट का करीब 44 फीसदी खर्च होना है. महिला उत्पीड़न से संबंधित दर्ज और निबटाये गये मामलों की संख्या बढ़ी है. सितंबर, 14 तक महिलाओं के खिलाफ 3901 मामले दर्ज किये गये, जिनमें करीब 74} का निबटारा हुआ.
7. लगाना होगा और जोर
राज्य ग्रामीण जीविका मिशन और मनरेगा के राज्य सरकार सूबे में गरीबों को समाज के मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास करती है. आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार जीविका मिशन के तहत 31 लाख गरीब परिवारों को 2.66 लाख स्वयं सहासता समूहों, 11750 ग्राम संगठनों और 178 संकुल संघों में संगठित किया गया है. मनरेगा के तहत वर्ष 2013-14 तक कुल 131.87 लाख परिवारों को जाब कार्ड जारी किया गया.
8. नामांकन में लड़कियां आगे
पोशाक और साइकिल योजना ने लड़कों से ज्यादा लड़कियों को स्कूल की ओर खींचा है. वर्ष 2007-08 से 2012-13 के बीच लड़कियों के नामंकन की वार्षिक वृद्धि दर 6.7 } थी जबकि लड़कों की 3.6} वर्ष 2012-13 में प्राथमिक स्तर पर लड़कों का कुल नामांकन 79.74 लाख था. लड़कियों का 74.77 लाख था. बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वालों की तादाद अधिक हुआ करती थी.
यह भी जानिए
आर्थिक क्षेत्र
बैंकिंग, बीमा, व्यापार, होटल, रेस्टोरेंट और संचार में 15 प्रतिशत से अधिक विकास दर
जीएसडीपी में प्राइमरी सेक्टर का योगदान 27 प्रतिशत से घट कर 22 प्रतिशत
सेकेंडरी सेक्टर में ग्रोथ दर रही 1 प्रतिशत से 11.57 प्रतिशत
उद्योग क्षेत्र का हाल
जीएसडीपी में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी 2012-13 में 18.1 प्रतिशत थी, जबकि 2013-14 में यह 18.4 प्रतिशत हुई
कृषि आधारित उद्योगों में राष्ट्रीय औसत में पहले 0.76 प्रतिशत थी, जो बढ़ कर 2011-12 में 1.36 प्रतिशत हो गयी
2006-07 में 1.63 लाख लघु और मध्यम उद्योग का रजिस्ट्रेशन, 2013-14 में महज 3133 ने ही निबंधन कराया
28 चीनी मिलो में महज 9 ही चालू
भागलपुर, गया और बांका जिला में 11 हजार पॉवरलूम मौजूद हैं
टैक्स संग्रह
9352 करोड़ रुपये टैक्स में बढ़ोतरी हुई पिछली बार यह 6637 करोड़ रुपये था
राज्य सरकार ने अपना कर राजस्व में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है, 2013-14 में 19 हजार 961 करोड़ पहुंच गया
2013-14 में वेतन पर 14 हजार 36 करोड़ और पेंशन पर 9 हजार 482 करोड़ रुपये खर्च किये गये
कहां खड़े हैं हम
1. आत्मनिर्भरता की राह पर
प्रति व्यक्ति बिजली खपत मामले में बिहार आज भी देश के पिछड़े राज्यों की श्रेणी में ही आता है. राज्य में बिजली की प्रति व्यक्ति खपत 144 किलोवाट घंटा है. वहीं पूरे देश में औसतन प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 927 किलोवाट घंटा है. वर्ष 2012-13 में सर्वोत्तम मांग के समय लगभग 30} बिजली की सर्वोच्च कमी बरकरार थी. हालांकि सरकार के प्रयासों से वर्ष 2013-14 में यह कमी घटकर 22} और वर्ष 2014-15 में 19} पर पहुंच गयी.
बदलाव : खपत 118 से बढ़ कर 144 किलोवाट/घंटा हुआ. उत्पादन बढ़ा. आने वाले दिनों में छह हजार मेगावाट बढ़ेगा.
चुनौतियां : बिजली उत्पादन के स्नेत को विकसित करना, ट्रांसमिशन लाइन दुरुस्त करना और गांवों में बिजली पहुंचाना.
2. मजबूत हो रही अर्थव्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी प्रगति के बीच बिहार की अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक-ठाक रही. 2013-14 में स्थिर मूल्य पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद का विकास दर 9.92 फीसदी था, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की तुलना में काफी अधिक है. वर्ष 2013-14 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद 1.75 लाख करोड़ रुपये था, जिससे प्रति व्यक्ति आय 17294 रुपये थी. वर्तमान मूल्य पर 3.43 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है.
बदलाव : वार्षिक योजना का औसत आकार (2002-07) के मात्र 4200 करोड़ से बढ़ कर 2007-12) में 16700 करोड़ रुपये, प्रति व्यक्ति आय बढ़ी.
चुनौतियां : क्षेत्रीय विषमता, प्रतिव्यक्ति आय का अंतर पाटना.
3. उत्पादन बढ़ा, सिंचाई चुनौती
सरकार द्वारा कृषि के श्रेत्र में मशीनों के इस्तेमाल और उन्नत बीजों के उपयोग को प्रोत्साहन देने का परिणाम है कि सूबे में अनाजों के उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई. वर्ष 2009-10 में अनाजों का कुल उत्पादन 96.16 लाख टन था जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 157.16 लाख टन हो गया. यह छलांग चावल उत्पादन में वृद्धि की वजह से है. गेहूं और मक्का के उत्पादन में भी ठीक ठाक इजाफा हुआ है. 2013-14 में सब्जी का उत्पादन 1.56 करोड़ टन हुआ, 2009-10 में यह 1.39 करोड़ था.
बदलाव : कृषि को लाभदायक बनाने और उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत. कृषि उत्पादन क्षेत्र में दो साल में 0.6 } की बढ़ोतरी.
चुनौतियां : 2017 तक सिंचाई सघनता 158} तक बढ़ाना.
4. सड़क बनने की रफ्तार बढ़ी
सड़कों के निर्माण को रफ्तार देने का जो संकल्प चार-पांच साल पहले लिया गया था, उसके नतीजे अब सामने आ रहे हैं. आíथक सर्वेक्षण 2014-15 के अनुसार सितंबर 2014 में बिहार में सड़कों की कुल लंबाई 2.26 लाख किमी थी जो गत वर्ष की तुलना में 45.75 किमी अधिक है. राज्य उच्च पथों की लंबाई में लगभग 94 किमी की कमी दर्ज की गयी, क्योंकि वे एन एच बन गये.
बदलाव : 120 किमी बढ़ी एनएच की लंबाई. 726 किमी मुख्य जिला पथ की लंबाई बढ़ी.
चुनौतियां : राष्ट्रीय औसत से बिहार पीछे. प्रति लाख की आबादी पर सड़कों की लंबाई 175 किमी है.
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