फली एस नरीमन ने अपनी पुस्तक द स्टेट आफ द नेशन में दो महत्वपूर्ण चीजें लिखी है. ब्रिटेन और अमेरिका के न्यायालयों में भ्रष्टाचार कैसे कम हुआ? बताया है कि लगभग 50 वर्ष पहले आधुनिक दुनिया के पुराने लोकतंत्र अमेरिका में गलत न्यायिक आचरण के अनेक मामले थे.
उन दिनों जोसेफ बोरकिंग की एक किताब आयी, द करप्ट जज – एन इंक्वायरी इंटू ब्राइबरी एंड अदर हाई क्राइम्स एंड मिसडेमियनर्स इन द फेडेरल कोर्ट (भ्रष्ट न्यायाधीश – संघीय अदालत में रिश्वतखोरी, अन्य उच्च अपराध व दुराचार की जांच) इसमें एक –एक अमेरिकन जज के भ्रष्टाचार और घूसखोरी के तफसील में ब्योरे थे.
राज्य और संघीय, दोनों ढांचों के तहत ही उनके खिलाफ प्रोसिडिंग (अभियोजन) चलाने के विस्तृत ब्योरे भी. 1962 में इसका प्रकाशन हुआ. इसके बाद पांच ऐसे और प्रोसिडिंगस सार्वजनिक किये गये. ज्यूडिशियल काउंसिल आफ यूनाइटेड स्टेट्स के लिए, ताकि गलत अमेरिकन फेडरल जजों की जानकारी सार्वजनिक हो सके. इसी तरह इंग्लैंड की न्यायपालिका में भी व्यापक भ्रष्टाचार था.
एक ग्रामीण अदालत के जज (कंट्री कोर्ट जज) द्वारा लिखित. यह पुस्तक हेनरी सेसिल के छद्म नाम से लिखी गयी. इसमें ज्यूडिशियरी में बैठे सबसे बड़े पदों पर रहे गलत लोगों के कारनामों के ब्योरे थे. तफसील में. इस कदर प्रामाणिक तथ्य थे कि इनमें से हरेक का ट्रायल संसद की एक या दोनों सदनों में हुई.
माना जाता है कि 1865 के बाद इंग्लैंड में या ब्रिटेन में न्यायपालिका भ्रष्टाचार से मुक्त है. इस मान्यता या विश्वास के बाद हेनरी सेसिल का निष्कर्ष था कि इंटिग्रिटी (निष्ठा) धीरे–धीरे सार्वजनिक जीवन में आती है. अगर लोग चौकस न रहे, तो यह फिसल जायेगी. दरअसल, हमारे यहां यानी भारत में न्यायपालिका या माननीय जज कांटेप्ट (मानहानि) के दुर्ग या प्राचीर में अभय मुद्रा में हैं. भारत को गलत चीजों–प्रभावों से मुक्त न्यायपालिका चाहिए, तो जनता को चौकस रहना होगा.