तीन साल पहले मेरे साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था, उस वक्त मैं 17 साल की थी. मेरा नाम और मेरी तसवीर 1983 में मानुशी पत्रिका में प्रकाशित हुई.
जब मेरे साथ यह हुआ था, मैं दुष्कर्म, दुष्कर्म के अभियुक्तों और पीड़ितों को लेकर लोगों में फैली गलत धारणाओं के बारे में समझती थी. मुझे उस ग्रंथि का भी पता था जो पीड़ित के मन के साथ जुड़ जाती हैं. लोग बार-बार यह संकेत देते हैं कि अमूल्य कौमार्य को खोने से कहीं बेहतर मौत है. मगर मैंने इसे मानने से इनकार कर दिया. मेरा जीवन मेरे लिए सबसे कीमती है.
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