– भारत ने समुद्र में अपनी सामरिक क्षमता में इजाफा करने की दिशा में दो महत्वपूर्ण कदम बढ़ाये हैं. परमाणु रिएक्टर से चलनेवाली पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत के एक दिन बाद ही देश के पहले स्वदेश निर्माणाधीन एयरक्राफ्ट कैरियर आइएनएस विक्रांत का कोच्चि में जलावतरण किया गया. समुद्र में भारत की इस सफलता पर केंद्रित आज का नॉलेज. –
।। प्रवीण कुमार ।।
परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत के परमाणु रिएक्टर को चालू कर दिया गया है. इस प्रकार अरिहंत की नौसेना के बेड़े में शामिल होने की दिशा में बढ़ चला है.
यह स्वदेश निर्मित और डिजाइन की गयी पहली परमाणु पनडुब्बी है. इस लिहाज से यह देश के लिए रणनीतिक नजरिये से एक बड़ा कदम कहा जा सकता है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे ‘लंबी छलांग’ बताया है. भारत परमाणु पनडुब्बी क्षमता विकसित करने वाला हिंद महासागर का एकलौता और विश्व का छठा देश है. अब तक इस तरह की पनडुब्बी बनाने की क्षमता अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन यानी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों –पी 5 के पास ही थी.
* ब्लू वाटर नेवी का दरजा
इसके साथ ही भारत ने ‘ब्लू वाटर नेवी’ का दर्जा हासिल कर लिया है. यह उन देशों को मिलता है जिनकी नौसेना खुले समुद्र की गहराई तक पहुंचने और संचालन करने की क्षमता रखती है. हालांकि भारत के पास परमाणु पनडुब्बी चलाने का पहले से अनुभव है. गौरतलब है कि भारतीय नौसैनिकों को परमाणु पनडुब्बी का अनुभव दिलाने के लिए 1988 से 1991 तक रूस से चार्ली क्लास की पनडुब्बी 3 साल की लीज पर ली गई थी.
पिछले साल रूस से ही अकुला क्लास की परमाणु पनडुब्बी 10 साल की लीज पर ली गयी है. भारत इस परमाणु पनडुब्बी जिसे आईएनएस ‘चक्र’ नाम दिया गया है, को समुद्र में उतार कर अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन जैसे परमाणु क्षमता संपन्न पनडुब्बियों का संचालन करने वाले देशों के क्लब में शामिल हो गया था. फिलहाल आइएनएस चक्र पनडुब्बी समुद्र के भीतर से चुपचाप दुश्मनों की गतिविधियों पर निगाह जमाये हुए बैठी है.
* एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि
आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम के नौसैनिक अड्डे पर अरिहंत में लगे 83 मेगावाट के प्रेशराइज्ड लाइट वाटर परमाणु रिएक्टर को पिछले शुक्रवार की रात सक्रिय(क्रिटिकल) किया गया. यह अति संवेदनशील परियोजना समुद्र में परीक्षण के लिए तैयार है, जो करीब एक–डेढ़ साल तक चलेगा. इस रिएक्टर के सैकड़ों परीक्षणों के दौर से गुजरने के बाद इसका समुद्री परीक्षण किया जाएगा.
* क्या है उपयोग
परमाणु पनडुब्बी को महीनों तक गहरे समुद्र में रखा जा सकता है और इस दौरान इसका आसानी से पता भी नहीं लगाया जा सकता है. यानी यह पानी के अंदर से ही मिसाइलें दाग सकती है. साथ ही इसकी गति भी अधिक होती है. फिलहाल भारत के पास डीजल से चलने वाली पारंपरिक पनडुब्बियां हैं जिन्हें आक्सीजन के जरिये अपनी बैटरियों को रिचार्ज करने के लिए बार–बार पानी की सतह पर आना पड़ता है, जिससे वे दुश्मन की नजर में आ सकती हैं. साथ ही ईंधन जरूरतों की वजह से इनकी क्षमता भी सीमित होती है.
शायद यही वजह है कि अमेरिका और रूस भी हथियारों में कमी करने से जुड़े समझौतों के तहत रखे जाने वाले हथियारों में लगभग दो तिहाई पनडुब्बी से छोड़े जानेवाले बैलिस्टिक मिसाइलों के जखीरे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही पी 5 देश और परमाणु पनडुब्बी का विकास कर रहे हैं. इनके अलावा ब्राजील, अर्जेंटीना भी इसी तरह की पनडुब्बी बनाने पर काम कर रहे हैं. इसके साथ ही भारत जमीन और हवा के बाद अब समुद्र के भीतर से भी दुश्मन पर जबरदस्त हमला करने में सक्षम होगा.
* तकनीकी चुनौती
परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक इसमें इस्तेमाल के लिए उपयुक्त छोटे, सुरक्षित और समुद्री परिस्थितियों के अनुकूल रिएक्टर को बनाना एक मुश्किल चुनौती थी. लेकिन परमाणु ऊर्जा विभाग इस परमाणु प्रोपल्शन रिएक्टर को बनाने में सफल रहा. यही वजह है कि परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष आरके सिन्हा ने इस सफलता को पूरे दश की परमाणु ऊर्जा के लिहाज से हर्ष का क्षण बताया है.
हालांकि इस प्रेशराइज्ड लाइट वॉटर रिएक्टर (पीडब्ल्यूआर) की क्षमता किसी छोटे शहर को बिजली आपूर्ति के लिए पर्याप्त है. रिएक्टर सही काम कर रहा है, लेकिन उसे समीक्षा के लिए कुछ समय तक बंद किया जायेगा. समुद्र में उतारे जाने के बाद अरिहंत के संचालन संबंधी परीक्षण होंगे जो कि करीब 18 महीने तक चलेंगे. समुद्री परीक्षण के सफल हो जाने के बाद परमाणु क्षमता संपन्न अरिहंत अगले दो साल में काम करने लगेगी और नौसेना की सेवा में शामिल होने के बाद यह भारत की दूसरी परमाणु पनडुब्बी बन जायेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहली बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है, जिसे पी 5 के अलावा किसी ने बनाया है. यह परमाणु पनडुब्बी भारत की रक्षा क्षमताओं में एक तीसरा आयाम जोड़ेगी. इसके पहले वह केवल हवा और जमीन से ही बैलिस्टिक मिसाइलें छोड़ने में सक्षम था.
* अरिहंत में क्या है खास
भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन (डीआरडओ) ने अरिहंत पर तैनात करने के लिए मध्यम दूरी के परमाणु प्रक्षेपास्त्रों का निर्माण किया है. अरिहंत परमाणु ऊर्जा विभाग, डीआरडीओ और नौसेना की संयुक्त कोशिशों का परिणाम है. इसके अलावा ट्रांबे (महाराष्ट्र) स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) ने पीडब्ल्यूआर रिएक्टर के डिजाइन और विकास में अहम भूमिका निभायी है.
अरिहंत में क्रू मेंबर्स और नौसैनिकों के लिए क्वार्टर, चार समूह में 12 बैलिस्टिक मिसाइल रखने के लिए जगह, जल और स्थल दोनों पर मार करने में सक्षम मिसाइल रखने का स्थान है. साथ ही यह उपग्रह संचालित संचार प्रणाली और दुश्मन की पनडुब्बी की टोह लेने में काम आने वाले सोनार प्रणाली से लैस है. इसे जब तैनात किया जायेगा तो अरिहंत करीब सौ नाविकों को ले जाने में सक्षम होगी.
इसके अलावा तीसरे परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिदमन का निर्माण का काम चल रहा है. इसके लिए करीब 30,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है.
यह सफलता स्वदेशी प्रौद्योगिकी क्षमता बढ़ाने के लिहाज से एक बड़ी छलांग है. साथ ही यह इस बात का प्रमाण है कि हमारे वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों और रक्षा कर्मियों ने देश की सुरक्षा के लिए जटिल प्रौद्योगिकी हासिल करने में मिल कर काम किया है. भारत ने दो दशकों से बन रही स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत को तैनात करने की दिशा में अहम मुकाम पा लिया है.
* परमाणु तकनीक के हिसाब से मील का पत्थर
प्रेशराइज्ड लाइट वाटर रिएक्टर में सवंर्धित यूरेनियम का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर और हल्के जल का इस्तेमाल कूलैंट व मॉडरेटर दोनों के लिए किया जाता है. इस तरह न्यूक्लियर तकनीक के लिहाज से भी यह मील का पत्थर है, क्योंकि देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में प्रेशराइज्ड हेवी वॉटर रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर) पर आधारित है और इसमें प्राक्रतिक यूरेनियम और भारी जल का इस्तेमाल किया जाता है. यानी पीडब्ल्यूआर में अधिक सवंर्धित यूरेनियम की जरूरत पड़ती है, जो चुनौतीपूर्ण था.
* परमाणु पनडुब्बी का विचार
परमाणु पनडुब्बी के बारे में सबसे पहले विचार 1939 में अमेरिका के नेवल रिसर्च लैब के रौस गन ने दिया. इसके बाद अमेरिका में इस पर काम शुरू हुआ और 1954 में दुनिया की पहली परमाणु संपन्न पनडुब्बी यूएसएस नौटिलस का जलावतरण हुआ. यह लगातार चार माह तक पानी के भीतर रह सकती थी. शीतयुद्ध के दौर में भला तत्कालीन सोवियत संघ कैसे पीछे रहता! उसने भी 1950 के दशक में परमाणु पनडुब्बी पर काम ,शुरू किया और 1958 में सोवियत नौसेना में इसे शामिल कर लिया गया.
वहीं परमाणु पनडुब्बी के बारे में भारत 1970 के दशक में ही सोचने लगा था, लेकिन 1990 के अंत तक जब एडवांस टेक्नोलॉजी वेसेल (एटीवी) पर काम शुरू हुआ, इस दिशा में बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई. इसके बाद 2009 में पहले एटीवी यानी आइएनएस अरिहंत का जलावतरण 26 जुलाई 2009 को किया गया और पिछले चार वर्षो में अरिहंत के हार्बर परीक्षण चलते रहे हैं. इसमें लगे हजारों उपकरणों को कड़े परीक्षणों और मानकों से गुजारा गया क्योंकि परंपरागत पनडुब्बी के विपरीत परमाणु पनडुब्बी पानी के भीतर महीनों तक रहती है. ऐसे में उसके हर हिस्से, पुर्जे और खासतौर से परमाणु रिएक्टर की जांच करना बेहद जरूरी होता है.
* समुद्र में हमारा अड्डा होगा आइएनएस विक्रांत
सोमवार को कोच्चि शिपयार्ड से देश के पहले स्वदेशी निर्माणाधीन एयरक्राफ्ट कैरियर आइएनएस विक्रांत का जलावतरण किया गया. हालांकि, जानकारों के मुताबिक इसे सेना में 2018 से पहले शामिल नहीं किया जा सकेगा, लेकिन इसे समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है. विज्ञान के क्षेत्र में सराहनीय प्रगति के बावजूद भारत जिन क्षेत्रों में अब तक पिछड़ा रहा है, उनमें एयरक्राफ्ट कैरियर भी शामिल है. यही कारण है कि भारत को अपने पुराने पड़ते विमानवाहक पोत आइएनएस विराट की जगह रूस से एडमिरल गोर्शकोव नामक एयरक्राफ्ट कैरियर का इंतजार करना पड़ रहा है.
एक तो ऐसी खरीद की लागत ज्यादा आती है (गोर्शकोव की कीमत 2.3 बिलियन डॉलर है), दूसरे अपने पास विमानवाहक पोत के निर्माण की क्षमता न होने से विपरीत परिस्थिति का सामना करने की देश की क्षमता कम होती है. आइएनएस विक्रांत इस लिहाज से भारत के लिए उम्मीद की किरण है. ऑपरेशनल होने के बाद आइएनएस विक्रांत अपने साथ 35 लड़ाकू विमानों को साथ लेकर चल सकेगा. इसमें दो रनवे होंगे, जिससे हर तीन मिनट में उड़ान भरी जा सकेगी. यह मिग-29 के, हल्के स्वदेशी लड़ाकू विमान और कामोव-31 हेलीकॉप्टरों से लैस होगा. इस पर लंबी दूरी तक मार कर सकनेवाली मिसाइलें भी तैनात होंगी, जो दुश्मन का मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता विकसित करेगी.
– अरिहंत एक नजर में
* 26 जुलाई, 2009 को विजय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री की पत्नी गुरशरण कौर ने बटन दबा कर अरिहंत को लॉन्च किया था.
* इसके निर्माण पर 15,000 करोड़ रुपये की लागत आयी है.
* इसका वजन 6000 टन, लंबाई 367 फुट, चौड़ाई 49 फुट है.
* अरिहंत का लघु परमाणु रिएक्टर 83 मेगावाट का दाबित जल (प्रेशराइज्ड वाटर) रिएक्टर है. इसे रूस के सहयोग से विकसित किया गया है. इसमें उच्च संवर्धित यूरेनियम ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है.
* इसकी रफ्तार 44 किलोमीटर प्रति घंटा है.
* इसमें संचालक दल (क्रू मेंबर) के 95 लोग एक साथ सवार हो सकते हैं.
* यह 750 किमी तक मार करनेवाली के-15 श्रेणी की 12 सागरिका मिसाइलों को ढोने में सक्षम है, वहीं 3,500 किलोमीटर मारक क्षमतावाली के-4 श्रेणी की चार मिसाइलों को लेकर सफर पर निकल सकती है.
* इस तरह की चार पनडुब्बियां बनाने की योजना है.
* ट्रायल पूरा करने के बाद बीओ 5 परमाणु मिसाइल भी इस पर लगाने के लिए तैयारी की जा रही है.
– किसके पास कितनी परमाणु पनडुब्बियां
फ्रांस , ब्रिटेन और चीन के पास 8 से 12 परमाणु संचालित पनडुब्बियां हैं. वहीं रूस और अमेरिका के पास इनकी संख्या क्रमश: 30 और 70 है.
अमेरिका की कार्यरत पनडुब्बियां लास एंजिलिस क्लास अटैक पनडुब्बी, ओहियो क्लास बलैस्टिक मिसाइल पनडुब्बी, सीवोल्फ क्लास अटैक पनडुब्बी, वर्जीनिया क्लास अटैक पनडुब्बी. वहीं ओहियो के रिप्लेसमेंट का विकास किया जा रहा है.
* रूस की कार्यरत परमाणु पनडुब्बियां : टाइफून बलैस्टिक मिसाइल पनडुब्बी, सिएरा अटैक पनडुब्बी, ऑस्कर क्रूज मिसाइल पनडुब्बी, डेल्फीन बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी, अकुला, सचुका, बोरेई हैं जबकि गैनी अटैक पनडुब्बी का समुद्री परीक्षण जारी है.
* टाइफून क्लास परमाणु पनडुब्बी : यह दुनिया की सबसे बड़ी डिसप्लेसमेंट पनडुब्बी है, जिसमें 150 क्रू मेंबर सवार हो सकते हैं. इसका जलावतरण 1981 में हुआ था.
* ब्रिटेन के पास कार्यरत पनडुब्बी : ट्रैफग्लर, वैनगार्ड क्लास बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी, एसटूट क्लास अटैक पनडुब्बी. वेनगार्ड रिपलेसमेंट एसएसबीएन का विकास जारी है.
* फ्रांस के पास कार्यरत पनडुब्बी : रूबीस क्लास अटैक, ट्रीउंफैंट क्लास बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी. बाराकुडा क्लास अटैक पनडुब्बी का विकास जारी.
* चीन के पास कार्यरत पनडुब्बी : हान अटैक पनडुब्बी, षिया बलैस्टिक मिसाइल पनडुब्बी, षांग अटैक, जिन बैलिस्टिक पनडुब्बी. साथ ही 095 अटैक पनडुब्बी और तांग बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी का विकास कर रहा है.