।। दक्षा वैदकर ।।
कई मां-बाप को लगता है कि वे अपने बच्चों की परवरिश बहुत अच्छी तरह कर रहे हैं, उनकी सारी जरूरतें पूरी कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. दरअसल वे कई बार अनजाने में ऐसी बातें बोल जाते हैं, जो बच्चों का पूरा जीवन बिगाड़ देती है. उनके व्यक्तित्व पर बुरा प्रभाव डालती है.
एक उदाहरण लें. कोई माता-पिता किसी पार्टी में आपसे अपनी तीन बच्चियों को कुछ इस तरह मिलाते हैं- ‘‘यह है बड़ी बेटी साक्षी, जो अपनी मम्मी की सुनती ही नहीं है. यह है मंझली बेटी तृप्ति, इसे कुछ भी खाने को दो, उसे कुछ पसंद ही नहीं आता. यह है सबसे छोटी बेटी सुकृति, जो दिन भर बेवजह चिल्लाती रहती है.’’ इन तीनों बेटियों के जो गुण माता-पिता ने बताये, वही उनका अपनी बेटियों को देखने का नजरिया था. वे जब भी उनसे कुछ बात करते, उनके साथ खेलते, उनके व्यवहार में उस सोच की झलक दिखती थी. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भविष्य में ये लड़कियां अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करेंगी.
माता-पिता यह तो कह देते हैं कि यह बच्ची बेवजह चिल्लाती है, लेकिन वे इसके पीछे की वजह पता नहीं लगाते कि वह ऐसा क्यों करती है? यह सच है कि हम जैसा बोते है, वैसा ही काटते हैं. और यह भी सच है कि हम वही बोते हैं, जो चीजें हम देखते हैं. इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि हम लोगों में क्या देखते हैं. हमारा उनको देखने का नजरिया ही बहुत हद तक यह तय करता है कि वे भविष्य में क्या बनते हैं. एक कहानी सुनें.
अंजू धीमा सीखेनवाली, बौनी लड़की थी. उसका रंग भी थोड़ा काला था. शिक्षक उसे अजीब तरह से देखते और कहते कि इसका दिमाग थोड़ा कमजोर है. वे उसे सिखाने का प्रयास तक नहीं करते. परिणामस्वरूप अंजू एक ही कक्षा में तीन साल तक लगातार फेल हुई और उसे स्कूल से निकाल दिया गया. तब उसकी मां को एक अनूठे स्कूल का पता चला जहां बच्चों को नये तरीकों से पढ़ाया जाता है. उस स्कूल के शिक्षकों का नजरिया अंजू को ले कर कुछ और था. वे अक्सर यह कहते कि अंजू में काफी प्रतिभा छिपी हुई है. उस पर इसका गहरा असर पड़ा. उसका परफॉर्मेंस सुधर गया और उसने पहले ही प्रयास में परीक्षा पास कर ली.
– बात पते की
* किसी की एक छोटी-सी हरकत पर उसके प्रति अपना नजरिया न तय कर लें. उस व्यक्ति को समझने की कोशिश करें.
* आप चाहें तो लोगों की बुराई कर उन्हें नीचे गिरा सकते हैं और चाहें तो उनकी तारीफ कर उन्हें उठा सकते हैं. यह सब आप पर निर्भर करता है.