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आप भी चार तरह से खर्च करें अपने रुपये

दक्षा वैदकर धर्मपुरी के राजा सोमसेन शिकार के बाद नगर लौट रहे थे कि जंगल में सैनिकों से बिछड़ गये. रास्ते में चलते समय उन्होंने एक आदमी को मुरली बजाते हुए अपने नगर की तरफ जाते हुए देखा, तो राजा ने उसके साथ हो लिये और दोनों साथ-साथ चलने लगे. बातों ही बातों में राजा […]

दक्षा वैदकर

धर्मपुरी के राजा सोमसेन शिकार के बाद नगर लौट रहे थे कि जंगल में सैनिकों से बिछड़ गये. रास्ते में चलते समय उन्होंने एक आदमी को मुरली बजाते हुए अपने नगर की तरफ जाते हुए देखा, तो राजा ने उसके साथ हो लिये और दोनों साथ-साथ चलने लगे. बातों ही बातों में राजा ने उस व्यक्ति से पूछा कि वह कौन है और क्या काम करता है? उस आदमी ने कहा कि मैं लकड़हारा हूं और लकड़ी काट कर रोजाना चार रुपये कमा लेता हूं. पहला रुपया मैं कुएं में फेंक देता हूं. दूसरे से कर्जा चुकाता हूं.

तीसरा रुपया उधार देता हूं और चौथे रुपये को जमीन में गाड़ देता हूं. राजा उससे इस बारे मे पूछना ही चाहता था, मगर तभी सैनिक राजा को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते वहां आ गये और फिर राजा उनके साथ चला गया. उसने दूसरे दिन दरबार में सभी लोगों को उस लकड़हारे की बात कही और पूछा कि वह लकड़हारा, जो चार रुपये खर्च करता है, उसको कैसे और कहां खर्चता है, बताओ? कोई भी जवाब नहीं दे सका.

राजा ने सिपाही को आदेश दिया कि जाओ और उस लकड़हारे को दरबार में लाओ. सिपाही ने लकड़हारे को लाकर राजा के सामने पेश किया. राजा ने उससे जवाब का खुलासा करने को कहा, तो उसने कहा कि मैं पहला रुपया कुएं में फेंकता हूं. इसका मतलब यह है कि मैं पहले रुपये से अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूं. दूसरे रुपये से मैं कर्जा चुकाता हूं यानी मेरे माता-पिता बूढ़े हैं, जिनके इलाज और खर्चे को पूरा करता हूं. उनका जो उपकार है, वह कर्जा मेरे ऊपर है. उसको चुकाता हूं. तीसरे रुपये को मैं उधार देता हूं. इसका मतलब है कि मैं एक रुपया अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करता हूं, ताकि जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, तो वह उधार दिया हुआ, मेरे काम आ सके. और चौथे रुपये को मैं जमीन में गाड़ देता हूं. इसका मलतब कि चौथा रुपया मैं धर्म-ध्यान, दान-दक्षिणा और लोगों की सेवा में खर्च करता हूं. ये तब मेरे काम आयेगा, जब मैं इस दुनिया से विदा हो जाऊंगा. राजा और सभी दरबारियों ने लकड़हारे की बातें सुनी और उसकी सराहना की. राजा ने लकड़हारे को सम्मान दिया और काफी धन देकर इज्जत से विदा किया.

daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

बात पते की..

कमाते तो हम सभी हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग हैं, जो जानते हैं कि पैसों का सही इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए. यह कहानी यही सिखाती है.

रुपयों को सोच-समझकर खर्च करें. सच्च इनसान वही है, जो माता-पिता के उपकारों को न भूले. समाज केप्रति अपनी जिम्मेवारियां निभाये.

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