– इन दिनों गरीबी को परिभाषित करने को लेकर हाय–तौबा मची हुई है. अंतरराष्ट्रीय फलक पर देखें, तो दुनिया से गरीबी खत्म करना मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (सहस्राब्दी लक्ष्य) का सर्वाधिक प्रमुख एजेंडा रहा है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि गरीबी खत्म करना अब दूर की कौड़ी नहीं है. अगर विकासशील देश इसके लिए कमर कस कर उतरें, तो 2030 तक दुनिया से गरीबी खत्म की जा सकेगी. प्रस्तुत है पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ में छपे आलेख के मुख्य अंश. –
सितंबर 2000 में 147 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने इस बात की हामी भरी थी कि वे धरती पर अति निर्धनता (एक्सट्रीम पावर्टी) में रहने वाले लोगों की संख्या को 2015 तक आधी कर सकेंगे. इसमें गरीबी दर का निर्धारण 1990 के आधार पर किया जाना था. संयुक्त राष्ट्र द्वारा तय किये गये सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (मिलेनियम डेवलपमेंट गोल) की सूची में यह सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य रहा था. एमडीजी के कई लक्ष्य जैसे मातृत्व मृत्यु दर को तीन चौथाई तक नीचे लाने और शिशु मृत्यु दर में दो तिहाई तक की कमी करने आदि को अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है. लेकिन खुशी की बात यह है कि समय से पांच साल पहले ही निर्धनता में 50 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. इसलिए अर्थशास्त्रियों की राय है कि 2030 तक दुनिया गरीबी से बाहर आ सकेगी.
* बीस वर्षो में आया बदलाव : 1990 में विकासशील देशों की 43 प्रतिशत जनसंख्या अति निर्धनता की श्रेणी में थी. यानी विश्व में गरीबों की कुल संख्या 1.9 अरब थी. तब यह माना जाता था कि जिस व्यक्ति की प्रतिदिन की आय एक डॉलर है, वह गरीबी रेखा से नीचे है. 2000 में इसमें एक तिहाई की कमी आयी. 2010 तक निर्धनों की संख्या 21 प्रतिशत पर पहुंच गयी. इसका मतलब यह हुआ कि पिछले 20 वर्षो में वैश्विक स्तर पर गरीबी में 50 प्रतिशत तक की गिरावट आयी है. अब यह प्रश्न उठना चाहिए कि आखिर जब पिछले 20 वर्षो में गरीबी को आधा कर दिया गया, तो फिर 2030 तक गरीबी को क्यों नहीं खत्म किया जा सकता है?
* विकास आधारित सिद्धांत : 1990 से 2010 तक दुनियाभर में घटी गरीबी के पीछे विकास (ग्रोथ) मुख्य कारक रहा है. एक मुख्य अवधारणा यह है कि यदि जीडीपी में एक प्रतिशत की भी वृद्धि होती है, तो गरीबी में 1.7 प्रतिशत की गिरावट होती है. पिछले दशक की बात करें, तो विकासशील देशों की जीडीपी में छह प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.
यह 1960-90 के बीच इन देशों में प्रतिवर्ष होनेवाली वृद्धि दर से 1.5 प्रतिशत अधिक रही. यह भी महत्वपूर्ण है कि 1930 के दशक में जैसी मंदी हुई थी, वैसी ही मंदी का चक्र 1990-2010 के बीच भी देखी गयी. पूर्वी एशिया के देशों में जीडीपी की रफ्तार 8 प्रतिशत रही, दक्षिण एशिया के देशों में 7 प्रतिशत और अफ्रीका में 5 प्रतिशत रही.
हालांकि लिविंग स्टैंडर्ड और गरीबी घटाने जैसे तथ्यों को नापने में जीडीपी अनिवार्य रूप से जरूरी नहीं है. हालांकि एक दूसरा पैमाना उपभोग की दर है, जिसके आधार पर गरीबी घटने की बात का सही अनुमान लगाया जा सकता है. वर्ल्ड बैंक के हेड ऑफ रिसर्च रहे मार्टिन रैवेलियन ने 125 विकासशील देशों में 900 सर्वे किया. उन्होंने अपने अध्ययन में बताया कि 1980 से 2000 तक उपभोग की दर में महज दो प्रतिशत की वृद्धि हुई. पर 2000 के बाद प्रतिवर्ष उपभोग की दर में 4.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी.
* गरीबी घटाने में बड़ी भूमिका : ग्रोथ इस बात की गारंटी नहीं देता कि इससे गरीबी घटेगी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आय का वितरण कैसा है. एक अनुमान के अनुसार, गरीबी कम होने में (दो तिहाई तक) ग्रोथ की भूमिका है, पर एक तिहाई गरीबी में कमी तो आय की समानता के कारण संभव हुई. यह पाया गया है कि जिन देशों में आय में समानता अधिक है, वहां गरीबी घटाने में ज्यादा मदद मिली. रैवैलियन के अनुसार, अधिक असमान आय वाले देशों में आय में एक प्रतिशत की वृद्धि से गरीबी में 0.6 प्रतिशत की कमी आती है, जबकि अधिक समान आय वाले देशों में यदि आय में एक प्रतिशत की वृद्धि होती है, तो गरीबी में 4.3 प्रतिशत की कमी आती है.
* चीन ने घटायी गरीबी : जिस देश में निर्धनता में सबसे अधिक गिरावट आयी, वह चीन है. 1980 में दुनिया में सबसे अधिक निर्धन चीन में ही थे. हाल के वर्षो में चीन में आय असमानता में बेतहाशा वृद्धि हुई है, पर साथ ही ग्रोथ की रफ्तार भी तेज रही. यह जानना दिलचस्प है कि 1981 से 2010 के बीच चीन ने 68 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला. यह जनसंख्या पूरे लैटिन अमेरिका की जनसंख्या के बराबर है. 1980 में जहां चीन में गरीबी दर 84 प्रतिशत थी, वहीं अब यह 10 प्रतिशत है.
पिछले 30 वर्षो में दुनियाभर में अति निर्धनों की संख्या में जो कमी आयी, उसकी तीन–चौथाई संख्या चीन में थी. जब भी गरीबी घटाने की बात की जाती है, तो प्राय: चीन की भूमिका को नजरअंदाज किया जाता है. पर सच्चाई यह है कि अगर चीन को छोड़ दिया जाये, तो 1980-2000 के बीच विकासशील देशों में विकास दर प्रतिवर्ष 0.6 प्रतिशत रही. 2000-2010 के बीच ग्रोथ का पैर्टन लगभग वैसा ही था, जैसा चीन का. यानी इस बीच प्रतिवर्ष 3.8 प्रतिशत की वृद्धि होती रही. केवल 2000 की बात की जाये, तो तब से लेकर अब तक चीन को छोड़ कर दूसरे विकासशील देशों में ग्रोथ के कारण अति निर्धनों की संख्या में 28 करोड़ की कमी आयी है.
* मिल कर काम करना होगा : इसी साल अप्रैल में दुनियाभर के वित्तीय संस्थानों (फाइनेंसियल इंस्टीटय़ूशंस) की एक मीटिंग में विश्व बैंक के प्रेसिडेंट जिम योंग किम ने कहा था कि हमें गरीबी को 2030 तक समेट देना चाहिए. यही वैश्विक लक्ष्य होना चाहिए. यह भी खबरें हैं कि ब्रिटेन, इंडोनेशिया और लाइबेरिया संयुक्त राष्ट्र में 2015 के बाद (पोस्ट 2015) सहस्राब्दी लक्ष्यों की सूची रखेंगे और किसी भी हालत में 2030 में गरीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा जायेगा.
जब 2005 में टोनी ब्लेयर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने कहा था कि हमारे पास गरीबी को खत्म करने का एक ऐतिहासिक अवसर है. उस समय दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थाबो मबेकी ने कहा था कि मानव इतिहास में यह पहला मौका है, जब समाज के पास इतनी क्षमता, ज्ञान और तकनीक है कि गरीबी को इतिहास का विषय बनाया जा सकेगा.