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हौसला: सार्थक फिल्मों से पूर्णिया के मनीष ने बनायी पहचान

मुजफ्फरपुर: पूर्णिया के मनीष वात्सल्य के लिए फिल्म निर्माण सिर्फ ग्लैमर व रुपये कमाने भर का साधन नहीं है. फिल्मों के जरिये वे समाज में सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं. उनकी कई फिल्मों में बिहार की राजनीति व अपराधीकरण बिल्कुल यथार्थ रूप में प्रस्तुत हुआ है. यही कारण है कि बहुत कम समय में बॉलीवुड […]

मुजफ्फरपुर: पूर्णिया के मनीष वात्सल्य के लिए फिल्म निर्माण सिर्फ ग्लैमर व रुपये कमाने भर का साधन नहीं है. फिल्मों के जरिये वे समाज में सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं. उनकी कई फिल्मों में बिहार की राजनीति व अपराधीकरण बिल्कुल यथार्थ रूप में प्रस्तुत हुआ है. यही कारण है कि बहुत कम समय में बॉलीवुड के युवा निदेशकों में इनकी पहचान बनी है.

वर्ष 2012 में मनीष की निर्देशित फिल्म ‘जीना है तो ठोक डाल’ फिल्म को मैक्सिको में बेस्ट फॉरेन फीचर फिल्म का अवार्ड मिला. इसके बाद से इन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उन्होंने बिहार की पृष्ठभूमि पर दूसरी फिल्म ‘दशहरा’ का निर्माण शुरू किया. राजनीति को बिल्कुल करीब से देखने वाले मनीष ने इस फिल्म में भी समझौता नहीं किया है. बिहार की राजनीति का संपूर्ण चित्रण फिल्म में किया गया है. दशहरा वे मई में रिलीज कर रहे हैं.

अभिनय के प्रति उनकी दीवानगी का ही आलम था कि दरभंगा मेडिकल कॉलेज से डेंटिस्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे डॉक्टरी करने के बजाय दिल्ली जाकर थियेटर करने लगे. फिर मुंबई में जाकर संघर्ष करना शुरू किया. लेकिन इनकी सोच व ऊर्जावान प्रतिभा ज्यादा दिनों तक हाशिये पर नहीं रही. अब मनीष के पास बतौर निर्देशक कई ऐसी फिल्में है, जिससे वे यथार्थवादी सिनेमा को नयी दिशा देना चाहते हैं.

प्रभात खबर से बातचीत में मनीष ने कहा कि जिमी शेरगिल, रितेश देशमुख व सनी लियोन अभिनीत ‘कैश है तो ऐश है’ की आधी शूटिंग हो चुकी है. उन्होंने कहा कि बबलू श्रीवास्तव की किताब ‘अधूरा ख्वाब’ पर केंद्रित गैंगस्टर फिल्म बना रहे हैं, जिसमें मुख्य किरदार में अरसद वारसी हैं. मलयेशिया में 24 फरवरी से शूटिंग होगी.

देवेंद दूबे पर बनेगी ‘मोतिहारी लोकल’

मनीष कहते हैं कि बतौर निर्देशक वे देवेंद्र दूबे पर केंद्रित फिल्म ‘मोतिहारी लोकल’, ‘बाहुबली’ व ‘डिस्ट्रिक्ट अलीगढ़’ पर काम कर रहे हैं. वे कहते हैं कि वे बिहार का नाम ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं. लेकिन सार्थक सिनेमा के जरिये लोगों को संदेश देना चाहते हैं. वे कहानी के बाद निर्णय दर्शकों पर छोड़ते हैं. उनकी कोशिश रहती है कि फिल्म सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं बने, बल्कि फिल्म लोगों की मानसिकता में भी बदलाव लाएं.

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