पति की विरासत म्यूजिक स्टोर संभाल रहीं कविता बोस
लता रानी
आइये जानें कैसे शुरू हुआ उनका यह सफर :
कविता के पति को दिल की बीमारी थी. लिहाजा, कविता ने उनका साथ देने के लिए दुकान पर आकर समय बिताने लगीं और इसी दौरान उन्होंने वाद्ययंत्र बजाना सीखा. दुर्भाग्यवश जनवरी 2013 में उनके पति की मृत्यु हो गयी. पति अपने पीछे दो बेटियों को छोड़ गये थे. कविता और प्रणव के पहले बेटे की मृत्यु हो चुकी थी और इस सदमे से कविता संभली भी नहीं थीं कि उन्हें पति की मृत्यु के सदमे का भी सामना करना पड़ा.
कहती हैं कविता
मेरे पति की इच्छा थी कि रांची वासियों को हमेशा संगीत और संगीत के वाद्ययंत्रों की सुविधा मिले और कभी उनकी कमी ना खले, इसी वजह से उन्होंने अपने पिता की दुकान को आगे बढ़ाया. उनकी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए मैं इस उम्र में उनकी याद के सहारे यह दुकान चला रहीं हूं. अब मेरी इच्छा है कि रांची के लोग संगीत और अपनी संस्कृति से जुड़े रहें. जब किसी कलाकार के बिगड़े हुए वाद्ययंत्र को बनाने में कामयाब हो जाती हूं और जब वह उसे फिर से बजाने लगता है तो उसे देख मुङो बहुत खुशी और सुकून मिलता है.
बजाती हैं माउथ ऑर्गन और वॉयलिन की सुकूनभरी धुन
कविता बोस रवींद्र संगीतकार भी हैं. रवींद्र संगीत के हर पहलू को वह जानती व समझती हैं. वैसे तो कविता हारमोनियम, तबला, ढोलक, गिटार व अन्य वाद्ययंत्र बजाना जानती हैं, पर इनके द्वारा बजाये गये माउथ ऑर्गन व वॉयलिन की धुन दिल को सुकून देने वाली होती है. बकौल कविता, माउथ ऑर्गन बजाना आसान नहीं होता. इस इंस्ट्रमेंट को बजाने के लए सांसों को सुर के साथ जोड़ना पड़ता है, जिसमें बहुत ज्यादा स्ट्रेस लगता है. 45 वर्ष की उम्र में कविता माउथ ऑर्गन बजा कर श्रोताओं के दिलों का जीत लेती हैं.
जहां आमतौर पर पुरुष कलाकारों को माउथ ऑर्गन बजाने में सोचना पड़ता है, वहीं कविता बड़ी आसानी से इसे बजा लेती हैं. पति के सपने को पूरा करने की ख्वाहिश और संगीत को सुर देने वाले म्यूजिकल इंस्ट्रमेंट के प्रति इनके प्रेम देखा जा सकता है. अपने शहर में कला के आयाम को जिंदा रखने वाली कविता को कला जगत सलाम करता है.