।। दक्षा वैदकर ।।
मेरे एक दोस्त ने कुछ दिनों पहले फोन लगा कर अपनी खुशी जाहिर की. उसने कहा, ‘आज मैं बहुत खुश है. पता है इस साल मेरा इंक्रीमेंट चार हजार हुआ. मैंने तो इतना सोचा भी नहीं था. मुझे तो लग रहा था कि सिर्फ दो हजार ही होगा.’ मैंने उसे बधाई दी और फोन रख दिया. अब कल उस दोस्त का दोबारा फोन आया. इस बार वह उदास था. उसने कहा, ‘पता है मेरे साथ काम करनेवाला जो एक और बंदा था, उसका इंक्रीमेंट छह हजार हुआ. जबकि वो कुछ भी काम नहीं करता. मेरा दिमाग खराब हो गया है जब से सुना है कि उसका इंक्रीमेंट मुझसे ज्यादा हुआ है.’
यहां सोचनेवाली बात यह है कि आज के जमाने में कुछ लोग इस बात की खुशी नहीं मना रहे हैं कि उन्हें उम्मीद या क्षमता से ज्यादा मिला, वे इस बात का दुख मना रहे हैं कि सामनेवाले को मुझसे ज्यादा कैसे मिला? आज हम सभी का लक्ष्य दूसरों से आगे जाना हो गया है, जबकि हमारा लक्ष्य खुद का विकास होना चाहिए. हमें बस इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कल जो हम थे, क्या हम आज उससे आगे बढ़े हैं? आज सब उल्टा हो गया है. लोग दूसरों से दौड़ लगा रहे हैं और नहीं जीत पाने पर दुखी हो रहे हैं.
अक्सर देखने में आता है कि कोई बच्च तीन साल से कक्षा में फस्र्ट आ रहा होता है, लेकिन वह तब भी खुश नहीं रहता, क्योंकि उसके ऊपर चौथे साल ये दबाव नहीं होता कि नंबर अच्छे आये, उसके ऊपर दबाव होता है कि फस्र्ट पोजीशन न चली जाये. वह सेकेंड न आ जाये. एक और उदाहरण लें. आप अपने परिवार के साथ कहीं घूमने जा रहे हैं. कोई दूसरा परिवार भी उसी दिन घूमने निकलता है.
आप परिवार के लोगों के साथ बात करते हुए, खाते–पीते, गाना गाते हुए, मस्ती करते हुए बड़े मजे से गाड़ी चला रहे हैं. तभी आपके दिमाग में विचार आता है कि मुझे दूसरी वाली गाड़ी में जो परिवार है, उससे आगे निकलना है. तब क्या होगा? आपकी सारी खुशियां एक तरफ हो जायेंगी और आपका ध्यान बस जीतने में लग जायेगा. तब आप पर तनाव, गुस्सा, हारने का डर, चिड़चिड़ापन सब हावी हो जायेगा. पूरा सफर इसी में निकल जायेगा.
– बात पते की
यह हमें तय करना है कि हम अपने जीवन का सफर खुशी–खुशी पूरा करना चाहते हैं या आगे बढ़ने की होड़, जलन, दुख व तनाव में गुजारना चाहते हैं.
यदि आप दौड़ में अपने लक्ष्य पर ध्यान न देकर आजू–बाजू के प्रतियोगियों को देखेंगे कि वे कहां तक पहुंचे, तो आपका उस दौड़ में हारना तय है.