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अचूक है सबसोनिक क्रूज मिसाइल निर्भय

भारत के पास ‘ब्रह्रोस’ जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल तो पहले से ही मौजूद है, जिसकी नौसेना, थल सेना में तैनाती हो चुकी है. पिछले वर्ष डीआरडीओ ने अपनी पहली सबसोनिक क्रूज मिसाइल भी विकसित कर ली है, जिसे ‘निर्भय’ नाम से जाना जा रहा है. यह रॉकेट की तरह ब्लास्ट के साथ लॉन्च होती है, […]

भारत के पास ‘ब्रह्रोस’ जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल तो पहले से ही मौजूद है, जिसकी नौसेना, थल सेना में तैनाती हो चुकी है. पिछले वर्ष डीआरडीओ ने अपनी पहली सबसोनिक क्रूज मिसाइल भी विकसित कर ली है, जिसे ‘निर्भय’ नाम से जाना जा रहा है. यह रॉकेट की तरह ब्लास्ट के साथ लॉन्च होती है, लेकिन चलती एयरक्राफ्ट की तरह है.
अग्नि जैसी बैलिस्टिक मिसाइल के बजाय इसमें प्लेन की तरह विंग्स और टेल होती हैं. लॉन्च के बाद रॉकेट मोटर इससे अलग होकर गिर जाती है, फिर यह प्लेन की तरह चलती है. इसकी खूबी यह है कि यह कम ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती है. यह पेड़ों से कुछ ही ऊपर उड़ सकती है, जिससे इसे ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है. टारगेट के पास पहुंचकर यह किसी भी दिशा से हमला कर सकती है. परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है.
डीआरडीओ द्वारा इसका पहला परीक्षण 12 मार्च, 2013 को असफल साबित हुआ जब टेस्ट के दौरान यह रास्ता भटक कर चांदीपुर के निकट जमीन पर गिरकर ध्वस्त हो गयी. डीआरडीओ को दूसरी बार 17 अक्तूबर, 2014 को कामयाबी मिली जब इसे ‘आइटीआर’ चांदीपुर, उड़ीसा से दागा गया.
इसने रॉकेट की भांति लंबवत उड़ान भरी और एक वायुयान की भांति 0.7 मैक की गति से हवा में उड़ना शुरू कर दिया. धरती से 4.8 किमी की ऊंचाई पर इसकी उड़ान एक घंटे 10 मिनट की थी. डीआरडीओ के आनुशंगिक संगठन वैमानिक विकास प्रतिष्ठान, बंगलौर द्वारा विकिसत ‘निर्भय’ की मारक क्षमता 1000 किमी से भी अधिक है.
प्रस्तुति : रवींद्रनाथ
मिसाइल की श्रेणी
सबसोनिक का तात्पर्य उस मिसाइल से है, जो ध्वनि के वेग (1मैक) से कम गति से गतिमान हो. सुपरसोनिक मिसाइलें वे होती हैं, जो ध्वनि के वेग से 1.2 से लेकर 5 गुना तीव्र वेग से गतिमान होती हैं. ब्रrाोस वायुमंडल में 2.8 से लेकर 3 मैक की गति से उड़ान भरती है, अत: यह सुपरसोनिक श्रेणी की है. हाइपरसोनिक मिसाइलें 5 से लेकर 10 मैक की गति से उड़ान भरती हैं, जबकि हाइ-हाइपरसोनिक मिसाइलें 10 से लेकर 25 मैक की गति से उड़ान भरती हैं और जब शटलें वायुमंडल में पुनर्प्रवेश करती हैं, तो उनकी गति 25 मैक से भी अधिक होती है.
इन्हें भी जानो
यूरोपीय स्पेस एजेंसी का मिशन रोसेटा
रोसेटा इन दिनों काफी चर्चा में है. यह यूरोपीय स्पेस एजेंसी का मिशन है, जिसने हाल ही में अपनी साइंस लैब फिले को कॉमेट पर उतारा है. पहली बार इनसान की बनायी गयी किसी चीज को कॉमेट पर उतारने में कामयाबी मिली है. सोलर सिस्टम और धरती पर जीवन कैसे आया, फिले इसकी खोज करने गया है.
कॉमेट को ही धूमकेतू या पुच्छलतारा भी कहा जाता है. कॉमेट सोलर सिस्टम का हिस्सा हैं और यह पत्थर, धूल, बर्फऔर गैस आदि को मिलाकर बनते हैं. जब ये सूरज के पास से गुजरते हैं, तो बर्फमें से गैस निकलने लगती है, जो पूंछ जैसी लगती है. इसलिए इन्हें पुच्छल तारा भी कहा जाता है. कई बार ये बिना टेलीस्कोप भी धरती से देखे जा सकते हैं.
कॉमेट प्लानेट्स की तरह की सूरज का चक्कर लगाते हैं. छोटे रास्तेवाले कॉमेट सूरज का एक चक्कर 6 से लेकर 200 साल तक में पूरा करते हैं जबकि लंबे पथवाले कॉमेट्स को हजारों साल भी लग जाते हैं. एस्टेरॉयड और मिटियोरॉएड्स का फर्कजानना भी जरूरी है. 10 मीटर से छोटे साइज की सोलर सिस्टम बॉडी मिटियोरॉएड्स कहलाते हैं, जबकि एस्टेरॉयड को मोटे तौर पर छोटे प्लानेट कहा जा सकता है.

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