।। ब्रजेश कुमार सिंह ।।
– पिछले सात वर्षों में इंडियन मुजाहिदीन पर देश में दस से भी अधिक जगहों पर धमाके करने का मामला दर्ज हुआ है. संगठन ने अब तक जिस सबसे बड़ी हिंसा की वारदात को अंजाम दिया, वो था अहमदाबाद में 26 जुलाई 2008 को हुआ सीरियल ब्लास्ट. बोधगया धमाके में भी इस संगठन की तरफ शक की सुई गयी है, लेकिन एनआइए की रिपोर्ट का हवाला देकर कांग्रेस नेता शकील अहमद ने ताजा राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है. आसार है कि इस पर चर्चा आगे भी जारी रहेगी. विशेषकर तब, जबकि बटला हाउस एनकाउंटर में इससे जुड़े एक आतंकी को दोषी पाया जा चुका है. –
इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों से जुड़े जिस बटला हाउस मुठभेड़ मामले को लेकर वर्ष 2008 में सियासी तूफान खड़ा हुआ था, उस मामले में दिल्ली की विशेष अदालत ने शहजाद नामक आरोपी को अब हत्या का दोषी करार दिया है. 19 सितंबर, 2008 को जब दिल्ली के जामियानगर इलाके के बटला हाउस में दिल्ली पुलिस और इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई, तो दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा जहां आतंकियों की गोली से शहीद हुए, वही दो आतंकी भी उस मुठभेड़ में मारे गये.
एक आतंकी सैफ मौके से गिरफ्तार किया गया, जबकि दो आतंकी वहां से भागने में कामयाब रहे. उन्हीं में से एक शहजाद को बाद में पुलिस ने गिरफ्तार किया और उसके खिलाफ मामला चलाया गया. इसी मामले में दिल्ली की विशेष अदालत का जो फैसला आया है, उसमें शहजाद को हत्या दोषी पाया गया है. यानी जिस मुठभेड़ के फरजी होने का आरोप न सिर्फ कुछ सियासी दलों, बल्किकई स्वयंसेवी संगठनों ने लगाया, वो कोर्ट की कसौटी पर सही पाया गया है.
खैर, कोर्ट का ये फैसला आने से पहले ही एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन यानी आइएम को लेकर विवाद तेज हो गया है. कांग्रेस के महासचिव शकील अहमद ने ताजा विवाद को तब जन्म दिया, जब उन्होंने ये ट्वीट कर डाला कि आइएम 2002 में हुए गुजरात दंगों के कारण ही बना. इसके जवाब में भाजपा मैदान में कूदी और ये तक कह डाला कि न सिर्फ शकील अहमद का ये बयान दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्किपाकिस्तान को फायदा पहुंचाने वाला है, जिसके इशारे पर आइएम काम करता है. भाजपा के कुछ नेताओं ने तो ये तक कह डाला कि शकील अहमद आइएम के प्रवक्ता की तरह बयान दे रहे हैं.
जब इस पर विवाद बढ़ता चला गया, तो कांग्रेस ने ये कह कर शकील के बयान से अपना पल्ला झाड़ लिया कि ये उनकी निजी राय हो सकती है, पार्टी की आधिकारिक लाइन नहीं है ये. इस विवाद में अब जमात–ए–इसलामी हिंद नामक संस्था भी घुस गयी है, जो ये कह रही है कि इंडियन मुजाहिदीन जैसा कोई संगठन तो अस्तित्व में है ही नहीं.
जमात की तरफ से शकील अहमद को चिट्ठी लिखी गयी है और ये कहा गया है कि गुजरात में 2002 में हुए दंगों का बदला लेने के लिए इंडियन मुजाहिदीन की नींव पड़ी, ये बात पूरी तरह भ्रामक है. इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व को नकारते हुए जमात यहां तक इशारा करने में लगा है कि भारतीय मुसलिमों को बदनाम करने के लिए ही सरकार और उसकी एजेंसियों ने इंडियन मुजाहिदीन का भूत खड़ा किया है, ताकि मुसलिमों का चरित्र संदिग्ध बने.
बहरहाल, इन विवादों के बीच तथ्य ये है कि इंडियन मुजाहिदीन को चार जून 2010 से ही केंद्र की यूपीए सरकार ने औपचारिक तौर पर प्रतिबंधित कर रखा है. गृह मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जिन प्रतिबंधित आतंकी संस्थाओं की सूची डाली गयी है, उनमें पैंतीसवीं और सबसे आखिरी संस्था इंडियन मुजाहिदीन ही है. न सिर्फ इंडियन मुजाहिदीन, बल्कि इससे जुड़ी सभी टुकड़ियों को भी प्रतिबंधित किया गया है. इससे पहले स्टूडेंट इसलामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी पर 27 सितंबर 2001 को ही प्रतिबंध लगा दिया गया था.
इंडियन मुजाहिदीन को एक बड़ा तबका सिमी का ही नया संस्करण मानता है, खास तौर पर तब जबकि सिमी के कई पुराने नेता और कार्यकर्ता इंडियन मुजाहिदीन की गतिविधियों में भी सक्रि य पाये गये हैं. खैर, जिस वक्त सिमी पर प्रतिबंध लगाया गया, उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली एनडीए की सरकार थी. 12 साल बाद भी सिमी पर प्रतिबंध जारी है, वो भी तब जबकि पिछले नौ साल में केंद्र में मनमोहन सिंह की अगुआई वाली यूपीए की सरकार है. कहने का मतलब ये है कि राजनीतिक तौर पर अलग–अलग विचारों की सरकार केंद्र में रहने के बावजूद सिमी के मामले में उनकी राय एक ही है.
आतंकवादी संगठन के तौर पर सिमी या फिर इंडियन मुजाहिदीन पर गैरकानूनी गतिविधि निषेध कानून यानी यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगाया गया है. हर दो साल पर इस प्रतिबंध की समीक्षा की जाती है. ऐसे में अभी तक सिमी के खिलाफ छह बार इस प्रतिबंध की समीक्षा कर इसे लागू रखने का फैसला किया गया है.
दरअसल प्रतिबंध लागू रखने की प्रक्रि या के तहत हर दो साल पर विशेष ट्रिब्यूनल के सामने केंद्र सरकार संबंधित आतंकवादी संगठन से जुड़े डॉसियर को सामने रखती है, जिसमें देश की तमाम राज्य सरकारों से मंगायी गयी रिपोर्ट होती है. इसके तहत प्रतिबंधित संगठन की हाल की गतिविधियों और उसके खिलाफ चल रहे मामलों का विवरण होता है. ट्रिब्यूनल इन तमाम दस्तावेजों के आधार पर सुनवाई करता है, जिसमें जो संगठन प्रतिबंधित होता है, उसके वकील की तरफ से भी जिरह की जाती है.
जाहिर है, पिछले बारह वर्षों में सिमी की आतंकी प्रवृत्ति के बारे में विशेष ट्रिब्यूनल के सामने मजबूत केस रखने में सफल रही है केंद्र सरकार, जिसके कारण प्रतिबंध जारी रह पाया है. ध्यान रहे कि अमेरिका ने भी 9/11 के आतंकी हमले के तुरंत बाद यानी सितंबर 2001 में ही सिमी को प्रतिबंधित आतंकवादी संस्थाओं की सूची में डाल दिया. यही नहीं, सितंबर 2011 से इंडियन मुजाहिदीन को भी उसने ऐसी ही संस्थाओं की सूची में डाल रखा है.
इंडियन मुजाहिदीन पर अभी तक देश में दस से भी अधिक जगहों पर धमाके करने का मामला पिछले सात वर्षो में दर्ज हुआ है. इस संगठन ने अभी तक जिस सबसे बड़ी हिंसा की वारदात को अंजाम दिया, वो था अहमदाबाद में 26 जुलाई 2008 को हुआ सीरियल ब्लास्ट. 18 जगहों पर हुए धमाके में कुल 55 लोगों की जान गयी थी. इसके पहले ये संगठन वाराणसी से लेकर जयपुर तक, देश के कई शहरों में धमाकों को अंजाम दे चुका था.
अहमदाबाद के बाद इससे जुड़े आतंकवादियों ने दिल्ली में भी धमाके किये. अभी हाल ही में जब बोधगया के महाबोधि मंदिर परिसर में कई धमाके हुए, तो भी इस संगठन की तरफ शक की सुई गयी. पहले पकड़े गये आइएम के कुछ आतंकियों ने बोधगया की रेकी किये जाने की जानकारी जांच एजेंसियों को पूछताछ के दौरान दी थी. एनआइए बोधगया मामले की जांच कर रही है. लेकिन इसी एनआइए की एक रिपोर्ट का हवाला देकर कांग्रेस नेता शकील अहमद ने इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े ताजा राजनीतिक विवाद को जन्म दिया.
आसार इस बात के हैं ये विवाद आगे भी जारी रह सकता है. खास तौर पर तब, जबकि बटला हाउस एनकाउंटर के केस में एक आरोपी को दोषी पाया जा चुका है और उसकी सजा की अवधि का एलान सोमवार को होना है. ध्यान रहे कि इंडियन मुजाहिदीन से सीधे तौर पर जुड़े किसी आतंकी को अदालत ने दोषी पाया है, इसका ये पहला ही मामला है.
(लेखक एबीपी न्यूज, गुजरात के संपादक हैं)