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हाथों में रुपये नहीं संस्कारों की पोटली थमानी होगी

धवल के घर से लौट कर पायल और धर्मेश ने शीना को बताया कि धवल के साथ उसकी शादी की बात पक्की कर आये हैं, तो वह बिना कुछ बोले मां से लिपट गयी. उसकी मां ने उससे धीरे से पूछा शीना, अब तो तुम खुश हो न? शीना ने मां की तरफ देख कर […]

धवल के घर से लौट कर पायल और धर्मेश ने शीना को बताया कि धवल के साथ उसकी शादी की बात पक्की कर आये हैं, तो वह बिना कुछ बोले मां से लिपट गयी. उसकी मां ने उससे धीरे से पूछा शीना, अब तो तुम खुश हो न? शीना ने मां की तरफ देख कर धीरे से सिर हिलाया. मां ने उसके पिता से कहा कि अच्छा हुआ समय रहते आपने मुझे मेरी गलती का एहसास करा दिया, वरना शीना के चेहरे पर मैं यह मुस्कान नहीं देख पाती.

नहीं पायल, मैंने कुछ नहीं किया. तुम्हारा बेटा ही इस बधाई का असली हकदार है और वह इसलिए कि ये संस्कार तुमने ही उसे दिये हैं. तुम्हारी बातें, जो तुम खुद ही भूल गयी थीं, लेकिन वह नहीं भूला और उसने हार भी नहीं मानी. सबसे बड़ी बात कि शीना ने जो समझदारी दिखायी, इसमें भी कहीं-न-कहीं तुम्हारे दिये संस्कार ही हैं. गलती करना जुर्म है, तो गलती सहना, उसका विरोध न करना उससे भी बड़ा अपराध है और पति-पत्नी दोनों का ये फर्ज बनता है कि दोनों में से कोई भी गलत रास्ते पर हो तो उसे सही रास्ता दिखाये.

मैंने अकसर तुम्हारी बातें मानी हैं लेकिन इस बात में मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सका, क्योंकि तुम्हारी सोच गलत दिशा में जा रही थी, आशु के पापा ने कहा. तभी तो कह रही हूं कि आपने समय रहते संभलने का मौका दिया मुझे. यही समझदारी पति-पत्नी की पहचान होती है. एक गलती करे तो दूसरे का फर्ज बनता है कि उसे सही रास्ता बताये, पायल ने कहा.

आशु और झिलमिल भी खुश थे. आखिर इतने दिनों के तनाव के बाद घर में खुशी का माहौल था. आशु ने कहा कि एक बात बिलकुल स्पष्ट है कि वही घर खुशहाल हो सकते हैं जहां परिवार के सदस्य मसलन माता-पिता और बच्चे एक-दूसरे को बेहतर तरह से समझते हों. जहां दोनों ही एक-दूसरे की खुशियों का ख्याल रखते हों.

जहां पर बच्चे उतावलापन दिखाते हैं, वहीं स्थितियां खराब होती हैं. आजकल के बच्चे तो चाहते हैं कि उनके मुंह से कुछ भी निकले, वह उसी समय पूरा हो जाये और जब पूरा नहीं होता तो भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करते हैं. गलत रास्ते अपनाते हैं. नहीं आशु, ऐसा आज के बच्चों में नहीं हममें भी ये बात थी. जब तक हमारी बात पूरी नही होती थी हम खाना-पीना छोड. देते थे. रोते रहते थे. अपनी बात मनवाकर दी दम लेते थे. दीपा ने कहा. नहीं दीपा दीदी, उस समय और आज के समय में फर्क है.

तब हमारी जायज जिद ही पूरी होती थीं और अगर हमारी जिद पूरी नहीं होती थी, तो हम कोई ऐसा कदम नहीं उठाते थे जिससे किसी को तकलीफ हो. सबसे बड़ी बात हम घरवालों के समझाने पर मान जाते थे. ऐसा आज क्यों नहीं है? आज अगर माता-पिता बात नहीं मानते तो बच्चे ऐसा कदम उठा लेते हैं जिससे माता-पिता और घरवालों को जिंदगी भर का अफसोस रहता है कि काश बात मान ली होती. इस तरह की घटनाओं से तो माता-पिता पर दबाव बना रहता है कि उनके बच्चे कहीं कोई गलत कदम न उठा लें और इस डर में उन्हें कभी-कभी गलत मांगों के आगे भी झुकना पडता हैं.

हमारे माता-पिता ने भी तो हमें संभाला है फिर हम क्यों नहीं संभाल पा रहे हैं अपने बच्चों को? फर्क यह है दीदी कि पहले हमारे मां-पापा हमारे ऊपर ध्यान रखते थे. हमें समय देते थे. अच्छी-अच्छी ज्ञानवर्धक कहानियां सुनाते थे और कहानी की कितनी ही किताबें और मैगजीन लाते थे. आज क्या है काटरून, वीडियो गेम या इंटरनेट पर गेम खेलने के सिवाय? पापा-मम्मी दोनों जॉब करते हैं और बच्चों को नौकर ही संभालता है और उसकी हिम्मत कहां कि बच्चों को मनमानी करने से रोके.

आज माता-पिता के पास बच्चों की फरमाइश पूरा करने के लिए रुपया है लेकिन उनके साथ समय गुजारने के लिए वक्त नहीं है. निचले तबके के लोग भी काम के चक्कर में सुबह से शाम तक बाहर रहते हैं. मध्यमवर्गीय परिवार भी कमाने के चक्कर में बाहर रहते हैं और उवर्ग के लोगों के पास इतने सारे अप्वाइंटमेंट होते हैं कि उन्हें घर में साथ बैठ कर खाना खाने तक की फुर्सत नहीं होती. वो बच्चों को रुपयों के ढेर पर बड़ा करते हैं. आप जानती हैं दीदी, हमारे एमडी हैं मिस्टर बरुआ. उनका बड़ा बेटा जो 19 साल का है वो ड्रग एडिक्ट हो गया है. साथ ही मि बरुआ के ऑफिस जाने के बाद उनके ही बार में बैठ कर ड्रिंक करता है.

उनकी महंगी-महंगी सिगरेट पीता है. एक बार स्कूल से रेस्टीकेट भी हो चुका है. बच्चों के हाथ में रुपये नहीं संस्कारों की पोटली थमानी होगी तभी वो बेहतर इनसान बनेंगे और इसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेवारी मां की बनती है कि वो किस तरह से बच्चों को पालती है. किस तरह के संस्कार देती है. कैसे बच्चों की आदतों में सुधार लाती है.

अच्छे-बुरे का ज्ञान कराती है. आशु बात ही कर रहा था कि धवल का फोन आ गया. उसने कहा भइया एक बात कहना चाहता हूं. आंटी-अंकल से तो मां-बाबा बात नहीं कर सके मगर वो एक बात कहना चाह रहे हैं. इतना कह कर धवल चुप हो गया. आशु ने कहा कि बेझिझक बोलो और मुझे अपना बड़ा भाई समझो.

बताओ बात क्या है. उसने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा कि मां-बाबा चाहते हैं कि शादी दिन में हो, रात में नहीं. रात में शादी होने से अनावश्यक बिजली खर्च होगी और रुपये भी. इसलिए शादी दिन में हो और दोनों परिवारों की तरफ से मिल कर एक पार्टी दे दी जाये, जिससे खर्च भी कम पडे.गा. आशू ने कहा. ठीक है लेकिन मैं एक बार मां-पापा से बात कर लूं क्योंकि घर में उनका फैसला ही अंतिम फैसला होगा. आशु ने तभी पापा को फोन कर उन्हें पूरी बात बतायी, तो उसके पापा ने भी सहमति दे दी.

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