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गुड न्यूज: अब लड़कियां नहीं बनेंगी बालिका वधु !

गिरिडीह से लौट कर संजय गिरिडीह जिले के गिरिडीह प्रखंड स्थित अलगुंदा पंचायत की सलमा तरन्नुम पांच किमी दूर लेदा के टिकैत रामेश्वर प्रसाद हाई स्कूल में पढ़ती है. दसवीं कक्षा की सलमा उन किस्मतवाली बच्चियों में शामिल है, जिनको गिरिडीह जिले की हजारों बच्चियों की तरह बालिका वधु नहीं बनना पड़ता. झारखंड के देवघर […]

गिरिडीह से लौट कर संजय

गिरिडीह जिले के गिरिडीह प्रखंड स्थित अलगुंदा पंचायत की सलमा तरन्नुम पांच किमी दूर लेदा के टिकैत रामेश्वर प्रसाद हाई स्कूल में पढ़ती है. दसवीं कक्षा की सलमा उन किस्मतवाली बच्चियों में शामिल है, जिनको गिरिडीह जिले की हजारों बच्चियों की तरह बालिका वधु नहीं बनना पड़ता.

झारखंड के देवघर जिले के बाद गिरिडीह में सर्वाधिक बाल विवाह होता है. यहां लड़कियों की शादी 14 से 17 साल के बीच कर दी जाती है. यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि पिछले वर्ष 2013 में गिरिडीह जिले में करीब 25 हजार शादियां हुई. इनमें से 15 हजार मामले बाल विवाह के थे. लड़कियों की सुरक्षा या परंपरा के नाम पर मां-बाप बच्चियों की शादी कर देते हैं. यह कुप्रथा व अज्ञानता के साथ-साथ लैंगिक भेदभाव का मामला भी है.

अलगुंदा पंचायत के कुल 17 गांवों सहित सहित जिले की कुल 10 पंचायतों की सैकड़ों लड़कियां अब इस माहौल से बेखौफ हैं. इनके मां-बाप ने संकल्प लिया है कि वे अपनी बच्चियों की शादी 18 साल से पहले नहीं करेंगे. सलमा के पिता गुल मोहम्मद अंसारी ने भी संकल्प पत्र भरा है. वह अपनी बेटी को कई दूसरी लड़कियों की तरह कराटे सीखने गांव के ही मध्य विद्यालय भेजते हैं.

यही नहीं शादियां कराने वाले जिले के मौलवी, पंडित व अन्य धर्माचार्यो ने भी तय कर लिया है कि वे बाल विवाह का गवाह नहीं बनेंगे. यही वजह है कि जिले के बराकर धाम के पुजारी नरेश पांडेय ने वैसी कई लड़कियों की शादी कराने से इनकार कर दिया, जो कानूनन अवयस्क थीं. बराकर धाम के मंदिर में बाल विवाह निषेध का सूचना-पट भी लगा दिया गया है. गिरिडीह के सामाजिक व जातीय संगठन भी बाल विवाह के खिलाफ गोलबंद हो रहे हैं. यादव महासभा के लोगों ने लिख कर दिया है कि उनके यहां लड़कियों की शादियां 18 वर्ष के बाद ही होगी. अन्य जातियों सहित मुसलिम समाज भी अब इस फैसले के पक्ष में है. अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ एक स्थानीय गैर सरकारी संस्था जागो फाउंडेशन के सहयोग से इसे अंजाम दे रही है. बाल विवाह रोकने का काम जिले के तीन प्रखंडों (गिरिडीह, जमुआ व बेंगाबाद) में छह माह पहले शुरू किया गया है. इन प्रखंडों के कुल 10 पंचायत (अलगुंदा, जीतपुर, पतरोडीह, अकदोनी कला, बेरहाबाद, कारोडीह, चितरडीह, मेढ़ोचपरखो, मलुआटांड व मोतीलेदा) के 65 गांवों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूक किया जा रहा है. इस मुहिम का असर भी दिख रहा है. ग्रामीण, पंचायती राज प्रतिनिधि, धार्मिक गुरु व सामाजिक संगठन कम उम्र की बच्चियों की शादी के खिलाफ खड़े होने लगे हैं. झारखंड के यूनिसेफ प्रमुख जॉब जकारिया ने कहा कि इस मुहिम का असर एक-दो लगन (शादी के मौसम) के बाद दिखेगा.

कैसे चल रही मुहिम

लक्षित गांवों के सौ स्कूलों की बच्चियों को जागरूक व समझदार बनाया जा रहा है. संस्था के लोग पंचायत प्रतिनिधियों, शिक्षक-शिक्षिका, सहिया व आंगनबाड़ी सेविकाओं से चर्चा कर गांव स्तर पर किशोर-किशोरियों के समूह का गठन कर रहे हैं. नुक्कड़ नाटक, दीवार लेखन व परचा वितरण का भी सहारा लिया जा रहा है. जातीय व धार्मिक संगठन सहित सरकारी अधिकारियों को भी इस मुहिम से जोड़ा जा रहा है. अलगुंदा के दिल मोहम्मद अंसारी के एक गीत – बाल विवाह होता है बिल्कुल कानूनन अपराध.. और जिंदगी हो जाती है घुट- घुट कर बरबाद.. आओ मिल कर करें पहल..सुनिश्चित निकेलगा कोई हल..लड़की 18 की हो, शादी तभी रचायें.. 21 से पहले लड़का को भी दूल्हा नहीं बनाएं.. सुन कर लगा कि गिरिडीह के लोगों में बाल विवाह निषेध का मानस बन चुका है.

झारखंड में बाल विवाह

जिले मामले (} में)

देवघर 63.5

गिरिडीह 62.8

गोड्डा 58.0

दुमका 56.8

कोडरमा 54.0

पाकुड़ 51.4

चतरा 49.9

गढ़वा 49.0

पलामू 46.2

साहेबगंज 45.6

हजारीबाग 42.7

धनबाद 42.4

प.सिंहभूम 33.8

पू.सिंहभूम 32.8

गुमला 30.5

बोकारो 29.8

रांची 29.3

लोहरदगा 24.4

(आंकड़े एनुअल हेल्थ सर्वे (एएचएस) 2012-13 के आधार पर)

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