उत्तराखंड त्रासदी के दौरान लावारिस मृतकों की पहचान किये बिना उनका अंतिम संस्कार करना एक बड़ी बाधा थी. हालात की भयावहता को देखते हुए शवों की डीएनए सैंपलिंग करते हुए उनका दाह-संस्कार करने का फैसला लिया गया. डीएनए सैंपल को सुरक्षित रखते हुए भविष्य में मृतकों की पहचान करने में आसानी होगी.
डीएनए हमारे शरीर की कोशिकाओं में पाया जाता है. इसके अणु किसी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे तक पहुंचते रहते हैं. इनसान में डीएनए का आधा हिस्सा माता से और आधा हिस्सा पिता से पहुंचता है.
किसी मृतक का डीएनए टेस्ट करने के लिए उसके शरीर से खून, टिस्सू या बालों की जड़ों को निकाल लिया जाता है. यदि मृतक का शव सही अवस्था में नहीं हो, जिससे ये चीजें हासिल नहीं की जा सकती हैं, तो ऐसी स्थिति में हड्डियों से ही अवशेष लिये जाते हैं.
हालांकि, दांत से भी ऐसा कर पाना अब मुमकिन हो गया है. जहां तक इसके परिणाम की विश्वसनीयता का सवाल है तो इसे 99.99 फीसदी तक सही माना जाता है. हां, इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि इकट्ठा किये गये डीएनए सैंपल को टैंपर प्रूफ तरीके से सुरक्षित रखना चाहिए.
आमतौर पर इस टेस्ट का इस्तेमाल पारिवारिक रिश्तों को निर्धारित करने या उनकी पहचान करने के लिए किया जाता है. भविष्य में किसी तरह की अनहोनी घटना होने यथा अपहरण या दुर्घटना से मृत्यु के मामले में कानूनी तौर पर साक्ष्य के रूप में पहचान के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है.