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पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करे झारखंड

पंचायती राज व्यवस्था अभी झारखंड में प्रारंभिक अवस्था में है. राज्य में 4,400 पंचायतें हैं, इसमें से 1000 पंचायतों के साथ यूनिसेफ काम कर रहा है. अगर पंचायती राज व्यवस्था को पूरा अधिकार दें और उनके फंड, फंक्शन और फंक्शनरी को ठीक से विकेंद्रीकृत करें, तो इससे राज्य को काफी मजबूती मिलेगी. झारखंड में प्राकृतिक […]

पंचायती राज व्यवस्था अभी झारखंड में प्रारंभिक अवस्था में है. राज्य में 4,400 पंचायतें हैं, इसमें से 1000 पंचायतों के साथ यूनिसेफ काम कर रहा है. अगर पंचायती राज व्यवस्था को पूरा अधिकार दें और उनके फंड, फंक्शन और फंक्शनरी को ठीक से विकेंद्रीकृत करें, तो इससे राज्य को काफी मजबूती मिलेगी.

झारखंड में प्राकृतिक संसाधनों की पर्याप्तता है और इसका इतिहास भी काफी पुराना है. प्रदेश की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है, जहां परंपरागत आदिवासियों की बहुत बड़ी संख्या है. देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी यूनिसेफ लंबे समय से काम कर रहा है. हम सरकार के साथ मिल कर आम जनता से विभिन्न मुद्दों और जनता से जुड़ी समस्याओं पर काम करते हैं. हम पोषण, एचआइवी एड्स, स्वास्थ्य संरक्षण, मातृ स्वास्थ्य, शिशु स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल विवाह आदि मसलों पर सरकार के साथ मिल कर काम करते हैं. झारखंड के निर्माण के बाद से विभिन्न सामाजिक मानकों पर उल्लेखनीय बदलाव आये हैं, तो कई मामलों में अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं, और जितनी प्रगति की अपेक्षा थी, अभी वह नहीं हो पायी है.

अगर हम उदाहरण के लिए विभिन्न इंडिकेटरों को सामने रख कर बात करें, तो काफी चीजें स्पष्ट होती हैं. शिशु मृत्यु दर, जो कि आज से 10 वर्ष पहले प्रति 1000 बच्चे 70 हुआ करता था, अब वह घट कर प्रति हजार बच्चों पर 37 हो गया है. शिशु मृत्यु दर के आंकडों के लिहाज से झारखंड उत्तर भारत में सबसे अच्छा है. इसी तरह टीकारकरण, जो कि आज से 10 वर्ष पहले 15-20 फीसदी हुआ करता था, आज यह बढ़ कर 70 फीसदी तक पहुंच गया है. अगर हम संस्थागत प्रसव की बात करें, तो उस दौर में यह मात्र 10-12 फीसदी था, जो कि अब बढ़ कर 45 फीसदी हो गया है.

झारखंड की लगभग 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है. अगर आंकड़ों को देखें तो कुपोषण की दर में काफी बदलाव नहीं आया है. आज भी यहां 55 फीसदी कुपोषण है. वैसे तो यह आंकड़ा भी पुराना है, लेकिन यह स्थिति चिंताजनक जरूर है. हाल के दिनों तक झारखंड में महिलाएं बच्चों को ठीक ढंग से स्तनपान नहीं करा पाती थीं. परंपरागत मान्यताओं के अनुरूप बच्चों के जन्म के तुरंत बाद निकलनेवाला कोलस्ट्रोम बच्चों के जन्म के तुरंत बाद दिया जाना चाहिए था, नहीं देती थीं, लेकिन धीरे-धीरे अब इस विषय में महिलाओं में जागरुकता आयी है. राज्य में आदिवासियों के कल्याण के लिए यूनिसेफ के सहयोग से ‘दुलार’ के नाम से योजना शुरू की गयी है. इसके तहत ग्रामीण महिलाओं, माताओं और लड़कियों को स्तनपान, पोषाहार, कुपोषण, शिक्षा की कमी और विभिन्न सामाजिक भ्रांतियों, सेवाओं की प्राप्ति में आनेवाली समस्याओं को दूर करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. गौरतलब है कि यह कार्यक्रम राज्य में सफल रहा है.

महिलाओं, किशोरियों और बच्चों में एनीमिया की समस्या बहुत व्यापक है. हालांकि एनिमिया के मामलों में पहले की तुलना में अब गिरावट आयी है.

अगर शिक्षा, विशेष रूप से बालिका शिक्षा, के आंकड़ों को समेकित रूप से देखें, तो प्राथमिक शिक्षा में दाखिले की दर 100 फीसदी है. जबकि 15 वर्ष पहले यह आंकड़ा 18 फीसदी था. राज्य में साक्षरता दर 66 फीसदी है. गरीबों, महिलाओं और आदिवासी बच्चों में ड्रापआउट का अनुपात ज्यादा है. कक्षा 8 के बाद शिक्षा के साधन पर्याप्त मात्र में नहीं हैं. राज्य के 40,000 बच्चों के लिए हाइस्कूलों की संख्या मात्र 2000 है. राज्य में माध्यमिक स्तर के शिक्षा के लिए बच्चों को दूर जाना पड़ता है. ऐसे में बड़ी संख्या में बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. शिक्षकों की संख्या और शिक्षक-छात्र अनुपात को व पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में प्रक्रियागत परेशानी जिस तरह से अन्य राज्यों में है, झारखंड में भी कमोबेश यही सारी समस्याएं हैं. पेयजल में उपलब्धता राज्य के मात्र 38 फीसदी आबादी को है. राज्य के कई जिलों में कुओं में आर्सेनिक और दूसरे प्रकार के प्रदूषण की समस्या है.

स्वच्छता एक महत्वपूर्ण इंडिकेटर है. केंद्र सरकार ने स्वच्छता और शौचालय को बढ़ावा देने के लिए प्रयास शुरू किया है. अगर इस मानक पर झारखंड की स्थिति देखें, तो 9 साल पहले मात्र 5 फीसदी घरों में शौचालय थे. अभी भी इस आकड़े में उल्लेखनीय सुधार नहीं आया है और मात्र 8 फीसदी घरों में शौचालय है. आज भी राज्य के 92 फीसदी लोगों के पास शौचालय नहीं है और वे खुले में शौच करते हैं. झारखंड के गावों में खुले में शौच करने और इसके लिए घर के आस-पास के खेतों को इस्तेमाल करने की आम प्रथा है. यह पानी के प्रदूषण और लोगों के खराब स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण कारण है. राज्य में पलायन और लड़कियों की तस्करी की आम समस्या है. यहां बाल मजदूरी भी है.

इन सब समस्याओं के समाधान के लिए एक ही मैजिक बुलेट साबित हो सकता है, यदि राज्य में 18 साल तक की सभी लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित की जाये, तो यह राज्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है. यदि शिक्षा का कार्यक्रम ठीक से चलाया जाये और कौशल विकास का उत्तम प्रबंध हो, तो लोगों को रोजगार मिलेगा और पलायन रुकेगा. पंचायती राज व्यवस्था अभी झारखंड में प्रारंभिक अवस्था में है. राज्य में 4,400 पंचायतें हैं, इसमें से 1000 पंचायतों के साथ यूनिसेफ काम कर रहा है. अगर पंचायती राज व्यवस्था को पूरा अधिकार दें और उनके फंड, फंक्शन और फंक्शनरी को ठीक से विकेंद्रीकृत करें, तो इससे राज्य को काफी मजबूती मिलेगी.

(संतोष कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)

जॉब जकारिया

प्रमुख, झारखंड स्टेट ऑफिस, यूनिसेफ

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