अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में पहली बार मानव निर्मित कोई यान किसी धूमकेतु पर उतरा है. इस अंतरिक्ष यान के धरती से धूमकेतु तक पहुंचने की कहानी, इस मिशन की टाइमलाइन, इसके उपकरणों, डिजाइन, वजन, आकार और लागत के अलावा इस मिशन से संभावित लाभ जैसे तमाम पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज..
नयी दिल्ली: पहली बार किसी धूमकेतु पर अंतरिक्ष यान उतारने में वैज्ञानिकों को कामयाबी मिली है. यूरोपीय स्पेस सेंटर द्वारा भेजा गया रोसेटा अंतरिक्ष यान धूमकेतु की सतह पर ऐतिहासिक लैंडिंग करने में कामयाब रहा. पृथ्वी से लगभग 50 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित धूमकेत ‘पी67 चुयरुमोव गेरासिमेंको’ पर यह यान उतरा है. इस धूमकेतु की परिधि दो किलोमीटर है. यूरोपीय स्पेस सेंटर के हवाले से ‘बीबीसी’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अंतरिक्ष यान के इस धूमकेतु पर पहुंचने से यहां मौजूद बर्फ और मिट्टी के करीब चार अरब साल पुराने रहस्यों के बारे में जाना जा सकेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस नये अध्ययन से सौर-मंडल और ब्राह्मण के बारे में नयी चीजों को जानने में मदद मिल सकती है.
इस अभियान की भूमिका 1980 के दशक में बनी थी और उपग्रह को 10 साल पहले प्रक्षेपित किया गया था. इस अभियान पर अभी तक एक अरब डॉलर से ज्यादा की रकम खर्च हुई. रोबोट यान फिलाइ के एक धूमकेतु की सतह पर पहुंचने के बाद इसे शुरुआती समस्याओं का सामना भी करना पड़ा है.
हालांकि, शनिवार को इसका लैंडर बैट्री डिस्चार्ज होने की वजह से काम नहीं कर रहा था, लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सूर्य की रोशनी मिलने के बाद यह चालू हो सकता है. मालूम हो कि यूरोपियन स्पेस एजेंसी द्वारा 10 साल पहले भेजे गये इस यान का मिशन यह जानना था कि सौरमंडल की उत्पत्ति कैसे हुई.
मिशन की सफलता के बाद अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब इंसान द्वारा निर्मित कोई मशीन किसी धूमकेतु पर उतरी है. करीब 10 वर्षो की यात्रा के बाद फिलाइ को ले जा रहा रोजेटा यान इस वर्ष छह अगस्त को धूमकेतु के निकट पहुंचा था. तब से वह चुयरुमोव गेरासिमेंको धूमकेतु की कक्षा में चक्कर काट रहा था. ‘डोयचे वेले’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 12 नवंबर (बुधवार) को रिसर्च रोबोट हापरून की मदद से वह अगिल्किया नाम के लैंडिंग स्टेशन पर उतरा. फिलाइ को इस तरह प्रोग्राम किया गया था कि वह धूमकेतु पर उतरते ही पहली तस्वीर खींचे. लैंडिंग स्टेशन पर उतरते ही फिलाइ ने दो भाले जमीन में गाड़े ताकि वह स्थिर हो सके.
फ्रेंच गुयाना से भेजा गया यान
इस समय रोसेटा हमारी धरती से तकरीबन 50 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है. हालांकि, सौर मंडल की परिक्रमा करते हुए धूमकेतु तक पहुंचने में यह यान अब तक एक अरब किमी से ज्यादा की यात्रा कर चुका है. उसे 2004 में फ्रेंच गुयाना के अंतरिक्ष केंद्र कौरू से आरियान 5 रॉकेट की मदद से भेजा गया था.
रोजेटा मिशन के साथ वैज्ञानिक सौर पद्धति के बनने के बारे में और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए डाटा जमा करना चाहते हैं. धूमकेतु पर अब भी उस समय के तत्व हैं. वैज्ञानिकों को जीवन की शुरुआत के बारे में जानकारी पाने की उम्मीद है.
2004 में रवाना हुआ था रोसेटा
किसी धूमकेतु की परिक्रमा करने और उसकी सतह पर उतरनेवाला रोसेटा अपनेआप में ऐसा पहला मिशन है. इसमें 11 वैज्ञानिक उपकरण के साथ एक लैंडर भी है, जिसे ‘फिलाइ’ नाम दिया गया है. फिलाइ के साथ 10 अतिरिक्त उपकरण जुड़े हैं, जो धूमकेतु के अध्ययन के लिए व्यापक जानकारी मुहैया कराने में सक्षम हो सकते हैं. यूरोपियन स्पेस एजेंसी की अधिकृत वेबसाइट ‘इएसए डॉट इएनटी’ के मुताबिक, रोसेटा को एरियन-5 रॉकेट से पहली बार जनवरी, 2003 में लॉन्च करने की योजना थी. लेकिन, दिसंबर, 2002 में परीक्षण के दौरान इसे असफल होने के कारण इसे टाल दिया गया. कई अन्य परीक्षणों के बाद मार्च, 2004 में इस स्पेसक्राफ्ट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया. उस समय ही यह निर्धारित किया गया था कि ‘67पी चुयरुमोव गेरसिमेंको’ 2014 में अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब होगा.
समुद्र और वायुमंडल की रचना के बारे में मिलेगी जानकारी
अंतरिक्ष यान रोसेटा करीब एक वर्ष तक धूमकेतु की परिक्रमा करेगा. धूमकेतु ‘67पी चुयरुमोव गेरसिमेंको’ जब सूर्य के सबसे नजदीक होगा, तब रोसेटा एक बार फिर अगले छह माह तक उसकी परिक्रमा करेगा. और इस दौरान धूमकेतु बृहस्पति की कक्षा की ओर बढ़ रहा होगा.
सौर मंडल में बतौर प्राचीन पदार्थ धूमकेतु से हमारे जीवन की उत्पत्ति के बारे में अनेक जानकारियां प्राप्त हो सकती हैं. धूमकेतु एक प्रकार से जटिल कार्बनिक अणुओं का वाहक है, जिसका असर धरती से जुड़ा हो सकता है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन की उत्पत्ति में इसकी भूमिका हो सकती है. कमोबेश, अस्थिर प्रकाश तत्वों वाले धूमकेतुओं से धरती पर समुद्र और वायुमंडल की रचना के बारे में जाना जा सकता है.
नील नदी से लिया गया नाम
अंतरिक्ष यान का नाम ‘स्टोन ऑफ रोजेटा’ से लिया गया है. ‘यूरोपियन स्पेस एजेंसी’ के मुताबिक, यह पत्थर लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में रखा गया है. उस पर लिखित अक्षरों से प्राचीन मिस्र की हीरोग्लिफ लिपि का पता चला था. धूमकेतु चुयुर्मोव गेरासिमेंको पर उतरने वाले रोबोट फिलाइ का नाम नील नदी के फिलाइ द्वीप से लिया गया है. यहां एक चौकोर स्तंभ मिला था, जिस पर ग्रीक और हीरोग्लिफ लिपि में क्लियोपैट्रा और प्टोलेमेउस का नाम लिखा था. इसी की वजह से हीरोग्लिफ लिपि का पता करने में मदद मिली. अब फीले सौरमंडल के इतिहास का पता करने में मानवजाति की मदद करेगा. धूमकेतु पर उतरने की जगह का नाम अगिल्किया रखा गया है. यह नाम भी नील नदी के ही एक द्वीप से लिया गया है. वह 1980 से फिलाइ के मंदिर की नयी जगह है. पहले यह मंदिर फिलाइ द्वीप पर था, लेकिन नदी पर बैराज के निर्माण के बाद यह जगह पानी से भर गया.
मिशन की टाइमलाइन
लॉन्चिंग : 2 मार्च, 2004
धरती से पहला स्विंगबाइ : 4 मार्च, 2005 (धरती से दूरी : 1955 किमी)
मंगल से स्विंगबाइ * : 25 फरवरी, 2007 (मंगल से दूरी : 250 किमी)
धरती से दूसरा स्विंगबाइ : 13 नवंबर, 2007 (धरती से दूरी : 5301 किमी)
धरती से तीसरा स्विंगबाइ : 13 नवंबर, 2009 (धरती से दूरी : 2480 किमी)
गहरे अंतरिक्ष में प्रवेश : 8 जून, 2011
गहरे अंतरिक्ष से बाहर : 20 जनवरी, 2014
धूमकेतु पर आगमन : 6 अगस्त, 2014
लैंडर की डिलीवरी : 12 नवंबर, 2014
कॉमेट एस्कोर्ट फेज : दिसंबर, 2014 से
मिशन का अंत : दिसंबर, 2015
* किसी आकाशीय पिंड के गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा अंतरिक्ष यान के पथ में परिवर्तन की प्रक्रिया. (स्रोत : यूरोपियन स्पेस एजेंसी)
तीन हजार किलोग्राम वजन है रोसेटा का
डिजाइन : रोसेटा को एक बड़े ब्लैक बॉक्स में एसेंबल किया गया है. पेलोड सपोर्ट मॉड्यूल समेत तमाम वैज्ञानिक उपकरण इसके ऊपरी हिस्से में सेट किये गये हैं. इसके एक हिस्से में वहनीय 2.2 मीटर डायमीटर के संचार डिश लगा हुआ है, जबकि दूसरे हिस्से में लैंडर को जोड़ा गया है. इसे ऊर्जा की आपूर्ति करने के लिए दो विशालकाय सोलर विंग (सौर पंखे) लगे हुए हैं. इसके दोनों ही पैनल दोनों ही ओर 180 डिग्री तक घूमने में सक्षम हैं. इस कारण यह ज्यादा से ज्यादा सूर्य की ऊर्जा को हासिल करने में सक्षम है.
वजन : इसका वजन करीब तीन हजार किलोग्राम है. इसमें प्रोपेलेंट का वजन 1670 किलोग्राम, ऑर्बिटर के लिए साइंटिफिक पेलोड 165 किलोग्राम और लैंडर का वजन करीब 100 किलोग्राम है.
आकार : इसके मुख्य स्पेसक्राफ्ट का आकार 2.8 गुणा 2.1 गुणा 2 मीटर है. इसी में सभी सबसिस्टम और पेलोड संबंधी उपकरण फिट किये गये हैं. इसके अलावा, इसमें 14 मीटर लंबा सोलर पैनल लगा हुआ है, जो कुल 64 वर्ग मीटर इलाके को घेरता है.